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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ १७३ मुख्य वेदीपर मुख्य प्रतिमाके अतिरिक्त ६ पाषाण-मूर्तियां हैं, जिनमें से दो मूर्तियां संवत् १५४८ की हैं। धातुके दो मेरुओंमें चौबीस तीर्थंकर-मूर्तियाँ बनी हुई हैं। इस मन्दिरके गर्भगृहके नीचे इसके समान आकारवाला कमरा बना हुआ है। इसे भोयरा कहते हैं । आपत्कालीन स्थितिमें इसका प्रयोग मूर्तियोंकी सुरक्षाके लिए किया जाता था। इसमें जानेके लिए मन्दिरके उत्तरी हिस्सेमें, सहनमें जीना बना हुआ है। कहा जाता है, यह एक सुरंग है जो नदी तक गयी है । सुरंगका द्वार अलंकृत है । इसके सिरदलपर ११ यक्ष-मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं । चौखटोंपर मिथुन बने हुए हैं। चौखटोंके अधोभागमें देवियां बनी हुई हैं। दीवारमें एक यक्ष बना हुआ है। मन्दिरमें गर्भगृहके बाहर प्रदक्षिणा-पथ बना हुआ है। मन्दिरके चारों ओर ऊंची दीवार है । मन्दिरके चारों कोनों और द्वारपर लघु शिखर बने हुए हैं तथा मन्दिरके ऊपर विशाल शिखर है। द्वारपर क्षेत्रपाल बने हुए हैं। __ मन्दिर नं.२-प्रथम मन्दिरसे निकलकर दूसरे मन्दिरमें प्रवेश करते हैं। यहाँ एक चबूतरानुमा वेदीपर मूलनायक भगवान् सुपार्श्वनाथ विराजमान हैं। मूर्ति पद्मासन है और ३ फुट २ इंच ऊँची है । मूर्तिके आसनपर स्वस्तिक चिह्न अंकित है। मूर्तिके हाथ खण्डित हैं। मूर्ति प्राचीन है। इसके अतिरिक्त दो पद्मासन मूर्तियाँ और हैं। एक १० इंचकी है और दूसरी ९ इंचकी । इसके बरामदेके स्तम्भों और बाहरी दीवारपर २ तीर्थंकर मूर्तियां पद्मासन मुद्रा में हैं। कुछ मूर्तियाँ शासन-देवताओंको भी हैं। - इसकी बगलमें एक टिन शेडमें तीन वेदियां बनी हुई हैं। मध्य वेदीपर ऋषभदेव भगवान्की ३ फुट ८ इंच ऊंची पद्मासन प्रतिमा है। प्रतिमाके परिकरमें भामण्डल, छत्र, दुन्दुभिवादक, ऊपर कोनोंपर एक देव और देवी पुष्पमाल लिये हुए और भगवान्के दोनों ओर चमरवाहक हैं। दायीं वेदीमें भगवान् शीतलनाथकी ३ फुट १० इंच ऊँची पद्मासन प्रतिमा है। परिकर पूर्व मूर्तिके समान है। अन्तर इतना है कि सिंहासनके सिंहोंके इधर-उधर शीतलनाथका सेवक ब्रह्मा यक्ष और मानवी यक्षी सुखासनमें बैठे हुए हैं। बायीं वेदीमें भगवान् नेमिनाथकी २ फुट ९ इंच ऊंची पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। भगवानके सिरके पृष्ठभागमें भामण्डल है। मन्दिर नं. ३-टिन शेडके पृष्ठभागमें भगवान् शान्तिनाथका मन्दिर है। यह गर्भगृह १५ फुट ४ इंच लम्बा और ११ फुट ३ इंच चौड़ा है। इसमें भगवान् शान्तिनाथकी १५ फुट उत्तुंग खड्गासन प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा देशी पाषाणकी है। मध्यप्रदेशमें अहार, थूबौन, बजरंगढ़, पावागिरि, खजुराहो आदि अनेक स्थानोंपर शान्तिनाथकी विशालकाय प्रतिमाएं विराजमान हैं । बीना-बारहाकी यह भव्य सातिशय प्रतिमा उसी शृंखलाकी एक समर्थ कड़ी है। इस मूर्तिपर निकटवर्ती प्रदेशमें सर्वसाधारणकी बड़ी श्रद्धा है। लोगोंका विश्वास है कि शान्तिनाथके दर्शन करनेसे समस्त चिन्ता और दुःख दूर हो जाते हैं। स्त्रियाँ तो मनौती मानकर मन्दिरकी बाहरी दीवारपर हल्दीके छापे लगाती हैं। इस गर्भगृहमें दायीं और बायीं ओरकी दीवारोंमें ९ प्रतिमाएं जड़ी हुई हैं, जिसमें ८ खड्गासन हैं और १ पद्मासन है । सभी मूर्तियां कृष्णवर्ण हैं। इनके ऊपर कभी-कभी घीका अथवा नारियलको जली हुई जटाओंको धीमें मिलाकर उसका लेप किया जाता है। प्रथम मन्दिरकी महावीर स्वामीकी प्रतिमा तथा इन प्रतिमाओंका अभिषेक नहीं किया जाता। कभी-कभी केवल लेप ही किया जाता है।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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