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________________ १७२ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ सदाशिवके राज्यमें संवत् १८३२ फाल्गुन शुक्ला १३ बुधवारको परवार-ज्ञातीय गोहिल-गोत्री बीनानगर निवासी मोदी हरिसेवकके पुत्र मतिरामने इस मूर्तिकी प्रतिष्ठा करायी। यह मूर्ति ६ फुट ९ इंच ऊंची है। यह लिखना अप्रासंगिक न होगा कि बीना-बारहामें दो बातें विशेष उल्लेख योग्य हैं। प्रथम तो यह कि यहाँ ईंट-चूनेसे मूर्ति निर्मित की गयी है। दक्षिण भारतमें इस प्रकारको अनेक मूर्तियां मिलती हैं, जिनकी भावाभिव्यंजना और कमनीयताको देखकर कोई यह कल्पना भी नहीं कर सकता कि मूर्तियां इंट-चूनेको बनी हुई हैं। किन्तु उत्तर भारतमें इस प्रकारकी मूर्तियोंका प्रचलन प्रायः नहीं रहा । इधर यह ऐसा प्रथम प्रयोग था, ऐसा लगता है। मूर्तिको देखकर यह भी प्रतीत होता है कि इस मूर्तिको गढ़नेवाला सम्भवतः मूर्तिकार न होकर कोई राजशिल्पी रहा होगा। द्वितीय उल्लेखनीय बात, जिसकी ओर दर्शकका ध्यान सहज ही आकर्षित हो जाता है, यह है कि यहाँ केशोंकी लटें केवल ऋषभदेवकी मूर्तियों तक ही सीमित नहीं रहीं, बल्कि मूर्तिशिल्पीने अन्य भी कई तीर्थंकर-मतियोंके स्कन्धों तक लटोंका अंकन कर दिया है। इसीलिए यहाँ ऋषभदेवके अतिरिक्त महावीर, अजितनाथ, चन्द्रप्रभ, नेमिनाथ और पाश्वनाथकी मूर्तियोंपर भी लटें और केश-किरीट दिखाई देते हैं। शास्त्रीय नियमों और परम्पराओंको स्वतन्त्रचेता कलाकारकी यह एक खुली चुनौती थी। बड़ी मूर्तिके दोनों ओर दीवारमें दो मूर्तियां हैं, दायीं ओर भगवान् ऋषभदेवकी और बायीं ओर भगवान् अजितनाथकी। ऋषभदेवकी मूर्ति कत्थई वर्णकी है। सिरके दोनों पाश्र्यों में गजलक्ष्मी हैं तथा देवियाँ पारिजात पुष्पोंकी माला लिये हुए आकाशमें दृष्टिगोचर हो रही हैं । भगवान्के दोनों ओर चमरेन्द्र सेवामें खड़े हुए हैं। भगवान् अजितनाथका वर्ण और परिकर भी ऐसा ही है। ___ बायीं ओरकी दीवारमें तीन पैनल हैं। दायीं ओरके पैनल में ऋषभदेवकी कायोत्सर्गासन प्रतिमा है। सिरके पीछे भामण्डल सुशोभित हो रहा है और सिरके ऊपर छत्रत्रयी है। छत्रोंके ऊपर दुन्दुभिवादक हैं। उसके दोनों ओर गज हैं। सिरके दोनों पावों में पुष्पमाल लिये नभचारी देव दीख पड़ते हैं। नीचे चमरवाहक खड़े हैं। पीठासनपर मध्यमें लांछनके रूपमें ऋषभ बना हुआ है तथा कोनोंपर दो भक्त बैठे हुए हैं। - मध्य पैनलमें भगवान् पार्श्वनाथ खड्गासन मुद्रामें विराजमान हैं । अवगाहना ३ फुट ३ इंच है। परिकरमें छत्र, पुष्पमाल लिये गन्धर्व और चमरेन्द्र हैं। बायीं ओरके पैनलमें नेमिनाथकी खड्गासन मूर्ति है। अवगाहना ३ फुट ५ इंच है। भगवानके ऊपर तीन छत्र सुशोभित हैं। छत्रोंके ऊपर पद्मासन अर्हन्त प्रतिमा है। उसके दोनों ओर फूलमाला लिये हुए गन्धर्व आकाशमें दिखाई पड़ रहे हैं। भगवान्के चरणोंके दोनों ओर चमरवाहक खड़े हैं। दायीं ओरकी दीवारमें भी तीन पैनल बने हुए हैं। बायीं ओरके पैनलमें ऋषभदेवकी ३ फुट उत्तुग पद्मासन प्रतिमा है। कन्धेपर जटाओंकी लटें बिखरी हुई हैं । छत्र, गन्धर्व और चमरवाहक परिकरमें यथापूर्व हैं। . मध्य पैनलमें भी ऋषभदेवकी जटायुक्त प्रतिमा है। अवगाहना २ फुट १० इंच है। परिकरमें छत्र, गज, मालाधारी गन्धर्व और चमरवाहक इन्द्र हैं। __दायीं ओरके पैनलमें पाश्वनाथकी ३ फुट ऊंची पद्मासन प्रतिमा है। मूर्तिके सिरपर सप्तफणावली है। उसके ऊपर तीन छत्र हैं। उनके दोनों ओर पुष्पवर्षा के लिए पुष्प लिये हुए देव हैं तथा अधोभागमें चमरवाहक खड़े हैं।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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