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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ ६. पार्श्वनाथ मन्दिर-यहां पाश्वनाथकी सिलेटी वर्णकी, २ फुट २ इंच ऊँची पद्मासन मूर्ति है और इसका प्रतिष्ठा-काल संवत् १९१७ है। इस वेदीपर मूलनायकके अतिरिक्त २ पाषाणकी और ५ धातुको प्रतिमाएं हैं। ७. पार्श्वनाथ मन्दिर-यहां चाँदीकी एक वेदीमें धातुकी साढ़े-सात इंच ऊँची एक पाश्वनाथकी प्रतिमा विराजमान है। यह संवत् १८८१ की है। इस प्रतिमाके अतिरिक्त इस वेदीमें २ तीर्थंकर मूर्तियाँ और दो चमरवाहकोंको धातु-मूर्तियां हैं। ८. चन्द्रप्रभ मन्दिर-मूलनायक भगवान् चन्द्रप्रभकी प्रतिमा श्वेत पाषाणकी है। इसकी अवगाहना २ फुट है। इसका प्रतिष्ठा-काल संवत् १९६७ है। यह पद्मासन मुद्रामें है। इसके अतिरिक्त ३ पाषाणकी और २१ धातुकी मूर्तियां हैं। ९. चन्द्रप्रभ मन्दिर-इसमें श्वेत पाषाणकी १ फुट ४ इंच उन्नत पद्मासन मूर्ति है। यह संवत् १९५५ में प्रतिष्ठित हुई है। १०. नेमिनाथ मन्दिर-इसकी वेदीपर मूलनायक नेमिनाथकी तथा ४ अन्य पाषाणप्रतिमाएं विराजमान हैं। मूलनायकका वर्ण श्वेत है। इसकी माप १ फुट ३ इंच है। संवत् १९४८ में यह प्रतिष्ठित हुई। यह पद्मासन है। ११. पार्श्वनाथ मन्दिर-यहाँकी पार्श्वनाथकी प्रतिमा पूर्वोक्त नेमिनाथ प्रतिमाके साथ प्रतिष्ठित हुई। इसका वर्ण कृष्ण है और इसकी अवगाहना २ फुट २ इंच है। यह भी पद्मासन है। १२. पाश्वनाथ मन्दिर-यहाँको पार्श्वनाथकी मूर्ति भी संवत् १९४८ में प्रतिष्ठित हुई। यह श्वेतवर्ण, पद्मासन और १ फुट ९ इंच अवगाहनाकी है। १३. ऋषभदेव मन्दिर--ऋषभदेवकी इस पाषाण-प्रतिमाकी प्रतिष्ठा भी संवत् १९४८ में हुई है। इसका वर्ण श्वेत है। १४. पीतलकी एक वेदीमें कृष्ण वर्णकी तीन पाषाण-प्रतिमाएं विराजमान हैं। १५. ऋषभदेव मन्दिर-इसकी भी प्रतिष्ठा संवत् १९४८ में हुई थी। यह श्वेतवर्ण एवं पद्मासन है और इसकी माप १ फुट ८ इंच है। इसके अतिरिक्त वेदोपर तीर्थक्ररोंकी ४ पाषाणप्रतिमाएं हैं और सिद्ध भगवान्की २ धातु-प्रतिमाएं हैं। अतिशय ___कभी-कभी इस क्षेत्रपर ऐसी घटना भी घटित हो जाती है जिसके कार्य-कारणका पता साधारण बुद्धि द्वारा नहीं चल पाता। ऐसी असाधारण घटनाको ही बोलचालको भाषामें अतिशय या चमत्कार कहा जाने लगता है। घटना अद्भुत है। यह प्रत्यक्षदर्शियोंसे सुनी हुई है। ४० वर्ष पहलेकी बात है। एक बैल मन्दिर नं. २ में जीनेसे ऊपर चढ़ गया और कार्निशपर आ गया। जब लोगोंको पता चला तो वहाँ एकत्र हो गये, किन्तु सभी किंकर्तव्यविमूढ़ थे। बैल न पीछे लौट सकता था, न मुड़ सकता था, और गिरते ही उसके मरनेका भय था। लाचार होकर उपद्रवकी शान्तिके लिए मन्दिरमें शान्तिविधान और हवन किया गया। हवन करते समय आवाज आयी-तुम लोग चिन्ता मत करो, बैल सकुशल उतर जायेगा। सब लोग निश्चिन्त होकर धर्मशालामें लौट आये। जब लोग लौट रहे थे, तब सबने आश्चर्यसे देखा कि बैल तालाबमें चर रहा था। - इस प्रकारकी अद्भुत बातें यहां अनेक बार देखनेको मिली हैं।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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