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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ ३२. ऋषभदेव मन्दिर-यहां ऋषभदेव भगवान्की श्वेतवर्ण, २ फुट ३ इंच ऊंचो पद्मासन मूर्ति है । संवत् १९५२ में प्रतिष्ठित हुई है।
३३. चन्दप्रभ मन्दिर-इसमें चन्द्रप्रभ भगवान्की श्वेतवर्ण तथा १ फुट ३ इंच उत्तुंग पद्मासन प्रतिमा है । मूर्तिलेख न होनेसे प्रतिष्ठा-काल ज्ञात नहीं हुआ।
३४. अभिनन्दननाथ मन्दिर-श्वेतवर्णको वीर संवत् २४७८ में प्रतिष्ठित और २ फुट २ इंच ऊँची अभिनन्दननाथको पदमासन प्रतिमा इस मन्दिर में विराजमान है।
३५. मेरु मन्दिर-इस मन्दिरमें चरणचिह्न विराजमान हैं।
३६. मेरु मन्दिर-इस मन्दिरमें अन्तःप्रदक्षिणा-पथसे गन्धकुटो तक पहुंचते हैं । गन्धकुटीमें चन्द्रप्रभकी श्वेत पाषाणकी १ फुट २ इंच ऊंची प्रतिमा विराजमान है। यह पद्मासन है और संवत् २००८ में प्रतिष्ठित हुई है।
मानस्तम्भ-मेरु मन्दिरके निकट ही मानस्तम्भ बना हुआ है। - इस पहाड़ीपर जैन मन्दिरोंका यह गुच्छक अधिक विस्तृत भूभागमें फैला हुआ नहीं है। इसलिए दर्शन करने में अधिक समय नहीं लगता। यहाँको प्रबन्ध समितिकी उदारताके कारण एक हिन्दू बाबाने जैन मन्दिर-गुच्छकके प्रायः मध्यमें एक हनुमान मन्दिर बना लिया है और कुछ ही वर्षों में उसे काफी बढ़ा लिया है, अस्तु । मन्दिरों तक जानेका मार्ग पक्का है । प्रथम मन्दिरके बाहर कुछ प्राचीन मूर्तियां रखी हुई हैं जो भूगर्भसे प्राप्त हुई हैं। उनमें अम्बिकाकी भी एक सुन्दर मूर्ति है। ये मूर्तियाँ प्रायः ११वीं शताब्दीकी प्रतीत होती हैं। ये समस्त मन्दिर एक अहातेके अन्दर हैं। - पहाड़ीपर खड़े होकर सरोवरको ओर दृष्टिपात करनेपर दृश्य बड़ा आकर्षक प्रतीत होता है। मध्यमें जल-मन्दिर, उस ओर मैदानके शिखरबद्ध जिनालय और इस ओर पवंतकी मन्दिरमाला, जिनपर उत्तुंग शिखर शोभायमान हैं। तलहटीके मन्दिर
१. जल-मन्दिर-एक विशाल सरोवरके मध्यमें एक भव्य मन्दिर बना हुआ है। मन्दिर तक जानेके लिए पुल है। पुलसे जानेपर सर्वप्रथम चबूतरा मिलता है। चबूतरेपर एक पक्का कुआँ बना हुआ है। मन्दिरमें मूलनायक भगवान् महावीरकी श्वेत वर्णको पद्मासन प्रतिमा है जो २ फुट ऊंची है और वीर सं. २४८२ में प्रतिष्ठित हुई है। समवसरणमें ५ पाषाणको और ९ धातुकी मूर्तियां हैं।
पुलके पास सड़क किनारे पाषाणका एक सूचना-पट लगा हुआ है । उसमें राज्यकी ओरसे सरोवरमें मछली पकडने तथा पर्वत और जंगलमें किसी पश-पक्षीका शिकार करनेपर कडा प्रतिबन्ध लगाया गया है और इसकी अवहेलना करनेपर कठोर दण्डकी व्यवस्था है। - २. सुमतिनाथ मन्दिर-यहां भगवान् सुमतिनाथकी श्वेत वर्णकी २ फुट ऊंची प्रतिमा संवत् २००८ में प्रतिष्ठित हुई। यह पद्मासनासीन है। वेदोपर एक धातु-प्रतिमा भी है।
३. नेमिनाथ मन्दिर-नेमिनाथकी कृष्ण पाषाणकी १ फुट ८ इंच ऊँची यह पद्मासन मूर्ति संवत् १९७९ में प्रतिष्ठित हुई।
४. नेमिनाथ मन्दिर-यह मूर्ति १ फुट ५ इंच ऊँची है और इसकी प्रतिष्ठा संवत् १९६६ में हुई। शेष सब कुछ मन्दिर नं. ३ की मूर्तिके समान है।
५. चन्द्रप्रभ मन्दिर-श्वेतवर्ण, १ फुट १० इंच ऊंची इस पद्मासन मूर्तिकी प्रतिष्ठा संवत् १९५५ में हुई। इस मन्दिरमें ४ पाषाणको तथा २० धातुकी छोटी मूर्तियाँ हैं।