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________________ १६४ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ ८.शान्तिनाथ जिनालय-भगवान शान्तिनाथकी श्वेतवर्ण पदमासन प्रतिमा २ फूट ५ इंच उन्नत है। यह वीर सं. २४९० में प्रतिष्ठित हुई है। इसके आगे तीन प्रतिमाएं विराजमान हैं। तीनों ही साढ़े सात इंच ऊंची हैं और सं. १५४८ में प्रतिष्ठित हुई हैं। इनमें चन्द्रप्रभकी दो श्वेत वर्णकी हैं और पार्श्वनाथकी एक कृष्ण वर्णकी है। ९. शान्तिनाथ जिनालय-इसमें शान्तिनाथ भगवान्की श्वेत पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा है। इसकी अवगाहना १ फूट ७ इंच है तथा इसकी प्रतिष्ठा संवत् १९४३ में हुई। १०. चन्द्रप्रभ मन्दिर-मुंगिया वर्णको चन्द्रप्रभ भगवान्को यह प्रतिमा १ फुट ४ इंच ऊंची है और संवत् १९४२ को प्रतिष्ठित है। इसके पार्श्वमें नमिनाथ भगवान्की साढ़े नौ इंच ऊंची श्वेत वर्णकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है । इसकी प्रतिष्ठा संवत् १५४८ में हुई है। ११. यह मन्दिर 'बड़ा मन्दिर' कहलाता है। यह उत्खननके फलस्वरूप भूगर्भसे १०० वर्ष पर्व निकला बताया जाता है। यही वह मन्दिर है जिसको चर्चा जैन पुरातत्त्वके सन्दर्भमें पूर्व में की जा चुकी है। मन्दिरके साथ १३ मूर्तियां भी भूगर्भसे प्राप्त हुई थीं और वे भी इसी मन्दिरमें विराजमान हैं। इस मन्दिर और मूर्तियोंकी प्राचीनता बतानेवाला एक शिलालेख इस मन्दिरकी एक दीवारमें लगा हुआ है जिसमें प्रतिष्ठा-काल संवत् ११०९ अंकित है। ___मन्दिरकी मूलनायक प्रतिमा भगवान् पार्श्वनाथकी है। यह ४ फुट ७ इंच उन्नत है, खड्गासन है और संवत् २०१५ में इसको प्रतिष्ठा हुई। भूगर्भसे प्राप्त १३ मूर्तियोंमें से ९ मूर्तियाँ मुख्य वेदीपर विराजमान हैं और शेष ४ मूर्तियां अलग-अलग चबूतरोंपर हैं। इन मूर्तियोंमें एक गोमेद यक्ष और अम्बिकाकी मूर्ति है जो ३ फुट ऊँची है। यह देशी पाषाणको और भूरे वर्णकी है। देवी गोदमें बालक लिये हुए है। यक्ष-यक्षी दोनों ही अलंकारोंसे सज्जित हैं। दोनोंके किरीट अत्यन्त कलात्मक हैं । दोनोंके ऊपर जो आम्र-स्तवक है, उसकी कला भी असाधारण है। आम्रशाखाओंपर एक बानर चढ़ता हुआ दिखाई देता है। उसके ऊपर नेमिनाथ तीर्थंकरको पद्मासन प्रतिमा है । मूर्तिके हाथ खण्डित हैं। ___ एक मूर्ति ४ फुट ऊँची है। यह ऋषभदेवकी पद्मासन प्रतिमा है। प्रतिमाके सिरपर तीन छत्र हैं। सिरके दोनों ओर गजराज खड़े हुए हैं। छत्रोंके दोनों पार्यों में माला लिये हुए नभचारी गन्धर्व हैं । उनके नीचे ४ खण्ड्गासन तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं। चरणोंके दोनों ओर चमरेन्द्र विनयमुद्रामें खड़े हैं। एक मूर्तिकी अवगाहना ३ फुट ८ इंच है। इस शिलाफलकमें दोनों ओर जो हाथी बने हैं, उनमें से एक खण्डित है। चमरवाहकोंके नीचे दो भक्त हाथ जोड़े हुए बैठे हैं। मूर्तिके अधोभागमें यक्ष-यक्षी भी उत्कीर्ण हैं । मूर्तिकी छातीपर श्रीवत्स है । मूर्तिका एक कान खण्डित है। ५ फुटकी एक अन्य मूर्ति ऋषभदेवकी है। परिकर अन्य मूर्तियोंके समान है। मूर्तिके हाथ, पैर, नाक वगैरह खण्डित हैं। छत्रत्रयीके बगलमें एक ओर गज नहीं है। एक चमरेन्द्रका सिर खण्डित है। १२. चन्द्रप्रभ जिनालय-इसमें भगवान् चन्द्रप्रभकी २ फुट ऊँची कृष्णवर्ण पद्मासन प्रतिमा है जो संवत् २००२ में प्रतिष्ठित की गयी। इस वेदीमें दो मूर्तियां और हैं। इनके अतिरिक्त दो प्राचीन मूर्तियाँ अलग-अलग वेदियोंमें विराजमान हैं। १३. अभिनन्दननाथ मन्दिर-यहाँ अभिनन्दननाथ भगवान्की कृष्ण पाषाणकी २ फुट ७ इंच ऊँची पद्मासन मूर्ति है। इसका संवत् पढ़ा नहीं गया। इसके अतिरिक्त ३ पाषाण-मूर्तियां और हैं।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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