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________________ १६३ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र-दर्शन यह पहाड़ी साधारण ऊंची है। यहाँ ३६ जिनालय पहाड़ीके ऊपर हैं और १५ जिनालय मैदानमें सरोवरके निकट हैं । इस प्रकार यहां जिनालयोंकी कुल संख्या ५१ है तथा १ मानस्तम्भ है। इनमें से ३७ मन्दिर शिखरबद्ध हैं। एक मन्दिर सरोवरके मध्यमें पावापुरीके समान बना हुआ है। इसे जल-मन्दिर कहते हैं । . तलहटीके मन्दिर एक परकोटेके अन्दर बने हुए हैं। __ यह क्षेत्र अपनी प्राकृतिक सुषमाके साथ आध्यात्मिक साधनाका केन्द्र रहा है। इसी प्राकृतिक वैभवसे आकर्षित होकर इस एकान्त निर्जन स्थानमें बरदत्त आदि मुनीश्वरोंने इसे अपनी साधना-स्थली बनाया और यहाँसे मुक्ति प्राप्त करके इसे सिद्धक्षेत्र होनेका गौरव प्रदान किया। पर्वतके मन्दिर १. पार्श्वनाथ मन्दिर-भगवान् पार्श्वनाथकी बादामी वर्णकी यह खड्गासन प्रतिमा ११ फुटको ( आसनसहित १६ फुट ) है । इसकी प्रतिष्ठा वीर सं. २४७८ ( विक्रम सं. २००९ ) में हुई। इस प्रतिमाके सिरपर सर्प-फणावली नहीं है। चरण-चौकीपर सर्पका लांछन है जो पार्श्वनाथ तीर्थंकरका लांछन है। सिरके पृष्ठभागमें सुन्दर भामण्डल है तथा ऊपर छत्रत्रयी सुशोभित है। परिकरमें विमानमें बैठे हुए देव, चमरेन्द्र और वाद्यवादक हैं। ____ मुख्य वेदियोंके अतिरिक्त ६ वेदियाँ और २२ लघु वेदिकाएँ ( आले ) हैं, जिनमें २४ तीर्थकरोंकी संवत् २४८२ की प्रतिमाएं हैं। इसके अलावा पाश्वनाथके गर्भगृहके दरवाजेपर एक ओर ५ फुट ६ इंच ऊंचो बाहुबली स्वामीकी खड्गासन प्रतिमा है । एक वेदीमें यहाँसे मुक्त हुए मुनिराज मुनीन्द्रदत्त, इन्द्रदत्त, वरदत्त, गुणदत्त और सायरदत्तकी खड्गासन श्वेत वर्णकी मूर्तियां विराजमान हैं । इस मन्दिरमें मूर्तियोंकी कुल संख्या ३८ है। भक्तजन इस मन्दिरको 'बड़े बाबाका मन्दिर', 'चौबीसी जिनालय' आदि कई नामोंसे पुकारते हैं । यह मन्दिर बहुत विशाल है। २. पार्श्वनाथ मन्दिर-ऊपर दूसरी मंजिलपर यह मन्दिर है। इसमें भगवान् पार्श्वनाथकी कृष्ण पाषाणकी १ फुट ४ इंच अवगाहनावाली पद्मासन प्रतिमा विराजमान है, जिसकी प्रतिष्ठा वीर संवत् २४६५ ३. नेमिनाथ मन्दिर-भगवान् नेमिनाथकी श्वेतवर्ण पद्मासन प्रतिमा है। इसकी प्रतिष्ठा सं. २०१२ में हुई। ४. चन्द्रप्रभ मन्दिर-चन्द्रप्रभ भगवान्की श्वेतवर्ण पद्मासन प्रतिमा है, जिसकी अवगाहना १ फुट ३ इंच है। ५. अजितनाथ जिनालय कृष्ण पाषाणकी अजितनाथ भगवान्को १ फुट १० इंच ऊंची प्रतिमा है । मूर्ति-लेख नहीं है । ६. आदिनाथ जिनालय-१ फुट ६ इंच अवगाहनावाली आदिनाथ भगवान्को कृष्ण पाषाणकी यह पदमासन प्रतिमा संवत १८५८ में प्रतिष्ठित हुई। ७. आदिनाथ जिनालय-आदिनाथ भगवान्की श्वेत पाषाणकी यह प्रतिमा आसनसहित ३ फुट ७ इंच है। यह पद्मासन है और इसकी प्रतिष्ठा संवत् १८५८ में हुई है। इसके आगे वरदत्तादि मुनियोंके दो चरण-चिह्न विराजमान हैं।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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