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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ जिनालयका निर्माण हो रहा है जिसमें बाहुबली स्वामीके अतिरिक्त २४ तीर्थंकर मूर्तियां विराजमान की जायेंगी। क्षेत्रपर शिकार-निषेधका राजकीय आदेश
विजावर-नरेश राजा भानुप्रताप (रियासतोंके विलीनीकरणसे पूर्व ) के समयसे इस तीर्थपर शिकार आदि खेलना राज्यकी ओरसे निषिद्ध है। इससे सम्बन्धित फरमान, जो राजदरबारसे जारी किया गया था, इस प्रकार है
_ "नकल हुकम दरवार विजावर इजलास जनाव येतमाहराम मुंशी शंकरदयाल साहब दीवान रियासत मुसवते दरख्वास्त जैन पंचान सभा संधपा जरिये दुलीचन्द वैशाखिया अजना संरक्षक जैन सभा मारु जे २२ मई सन् १९३१ ( ईसवीय दरख्वास्त फर्माये जाने हुक्म न खेलने शिकार क्षेत्र द्रोणगिरि वाकै मौजा सेंधपापर अनीज इसके कि विला इजाजत जैन सभा दीगर कौमके लोग क्षेत्र मजकूरपर न जा सकें हुक्मो इजलास खास रकम जदे २५ मई सन् १९३१ ईसवीय ऐमाद कराये जाने मुश्तहरी कोई शख्स वगैर इजाजत जैन सभा पर्वतपर न जाये न शिकार खेले।
(मुहर) हुक्म हुआ जरिये परचा मुहकमा जंगल अ मुहकमा पुलिसके वास्ते तामील इत्तला दी जावे। तारीख २८ मई सन् १९३१ ई।"
इस फरमान द्वारा द्रोणगिरि पर्वतपर जैन समाजका पूरा अधिकार माना गया है तथा जैन सभाको आज्ञाके बिना शिकार खेलनेपर पाबन्दी लगा दी गयी है। यद्यपि रियासतोंके समाप्त होनेपर उनके कानून और आदेश भी समाप्त हो गये हैं किन्तु यह आदेश कानूनके रूपमें नहीं, परम्पराके रूपमें अब भी प्रचलित और मान्य है। दुखद घटनाएं
इस शताब्दीमें क्षेत्रपर दो अत्यन्त दुखद घटनाएं घटित हुई। एक तो वीर संवत् २४२० में। इस समय एक चरवाहेने पार्श्वनाथ मन्दिरमें प्रतिमाके हाथोंके बीचमें लाठी फंसाकर उसे खण्डित कर दिया था। दूसरी घटना वीर संवत् २४५७ के लगभग हई। उस समय किसीने पार्श्वनाथ स्वामीकी मूर्तिको नासिकासे खण्डित कर दिया था। अपराधी बादमें पकड़ा गया था और उसे दण्ड भी दिया गया था। ये घटनाएं अपराधियोंकी अज्ञानतासे हुई थीं।
रेशन्दीगिरि
निर्वाण-क्षेत्र
श्री रेशन्दीगिरि निर्वाण-क्षेत्र है। इस क्षेत्रका दूसरा नाम नैनागिरि भी है। प्राकृत निर्वाणकाण्डमें इस क्षेत्रके विषयमें निम्नलिखित उल्लेख आया है।
___ 'पासस्स समवसरणे सहिया वरदत्त मुणिवरा पंच।
रिस्सिदे गिरिसिहरे णिवाण गया णमो तेसिं ॥१९॥ ___ अर्थात्, भगवान् पाश्वनाथके समवसरणमें स्वहितके इच्छुक वरदत्त आदि पांच मुनिराज रेशन्दीगिरिके शिखरसे मोक्ष गये। उन्हें नमस्कार है।
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