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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ १५५ विचारणीय प्रश्न ___ इस कथानकमें तीन बातें विचारणीय हैं। एक तो यह कि गुरुदत्त केवली किस स्थानसे मुक्त हुए, कथानकमें इस बातका कोई उल्लेख नहीं है। फिर यह कि इस कथानकमें द्रोणिमान् या द्रोणगिरिको तोणिमान् पर्वत कहा गया है तथा उसका उल्लेख चन्द्रपुरीके सन्दर्भ में इस प्रकार किया गया है लाटदेशाभिधे देशे चारुलोकधनान्विते। पूर्वोत्तरदिशाभागे तोणिमद्भूधरस्य च । आसीच्चन्द्रपुरी रम्या सितप्रासादसंकुला । बहुलोकसमाकीर्णा धनधान्यसमन्विता । -हरिषेण कथाकोश-कथा १३९, श्लोक ४५-४६ इसमें चन्द्रपुरी नगरीका वर्णन करते हुए उसे लाट देशमें और तोणिमान् पर्वतको पूर्वोत्तर दिशा (ईशानकोण) में बताया है। इससे ऐसा आभास होता है कि तोणिमान् पर्वत लाट देशमें था। इस कथानकसे एक नया प्रश्न भी उभरता है कि उनको केवलज्ञान द्रोणिमान् (तोणिमान्) पर्वतपर नहीं हुआ था । वह चन्द्रपुरी नगरीके बाहर खेतोंमें हुआ था। इन तीन प्रश्नोंका समाधान मिलना तथा भगवती आराधनासे उसका सामंजस्य स्थापित होना अत्यन्त आवश्यक है। भगवती आराधनाके अनुसार द्रोणिमान् पर्वतके ऊपर जलते हुए गुरुदत्त मुनिने उत्तमार्थ प्राप्त किया। आराधनासारमें भी इसी आशयकी पुष्टि की गयी है। इसमें भी द्रोणिमान् पर्वतके ऊपर अग्नि लगनेपर उनके आत्म-प्रयोजनकी सिद्धि बतायी गयी है। कथाकोश ग्रन्थोंमें द्रोणिमान पर्वतके ऊपर उपसर्ग होनेका प्रायः उल्लेख नहीं मिलता, किन्तु उस पर्वतके निकट किसी स्थानपर यह भयंकर उपसर्ग हुआ, ऐसा प्रतीत होता है। निर्वाण-काण्डमें द्रोणगिरिके शिखरसे गुरुदत्त मुनिको निर्वाण प्राप्त करनेका उल्लेख है। इसमें उपसर्ग होनेका या उपसर्ग-स्थानका कोई उल्लेख नहीं है। इससे स्पष्ट है कि उपसर्गके तत्काल बाद ही गुरुदत्तको निर्वाण प्राप्त नहीं हुआ। उपसर्ग द्रोणगिरिपर हुआ। भगवती आराधना और आराधनासारमें उपसर्गका उल्लेख करते हुए द्रोणिमान् पर्वतपर जिस आत्मार्थकी प्राप्ति या आत्म-प्रयोजनकी सिद्धिका उल्लेख किया गया है, उससे आचार्योंका अभिप्राय केवलज्ञानकी प्राप्तिसे ही है, जैसा कि कथाकोश ग्रन्थोंसे भी समर्थन होता है। हरिषेण-कथाकोशमें चन्द्रपुरीके निकट जिस स्थानपर यह घटना घटी, वह, लगता है, द्रोणगिरिके निकट ही था। इसलिए उसे द्रोणगिरिकी उपत्यका न लिखकर द्रोणगिरि ही लिख दिया गया। निर्वाण काण्डको स्पष्ट सूचनासे हरिषेण-कथाकोशकी अधूरी सूचनाकी पूर्ति हो जाती है । वह यह कि गुरुदत्तको मुक्ति द्रोणगिरिपर हुई। . अब सबसे अधिक विचारणीय समस्या यह रह जाती है कि द्रोणगिरि कहाँपर था। हरिषेणको सूचनाके अनुसार वह लाट देशमें था। यदि तोणिमान्को चन्द्रपुरीके निकट न मानकर उससे अत्यधिक दूर खींचनेका प्रयत्न करें तो सहज ही प्रश्न उठ सकता है कि फिर द्रोणगिरिका उल्लेख वहाँ करनेकी आवश्यकता क्या थी? और उस स्थिति में भगवती आराधना आदि ग्रन्थोके वर्णनको संगति किस प्रकार बैठायी जा सकेगी। एक कल्पना यह भी हो सकती है कि तोणिमान् पर्वत, द्रोणिमान् या द्रोणगिरिसे भिन्न था। किन्तु इस कल्पनाके माननेपर गुरुदत्त मुनि दो मानने पड़ेंगे। फिर तोणिमान्पर घटित घटनाका उपयोग द्रोणिमान् पर्वतके लिए नहीं हो सकेगा। इसलिए यह माननेमें कोई हानि नहीं है कि द्रोणगिरिके कई नाम थे। उसे द्रोणगिरिके अतिरिक्त द्रोणाचल, द्रोणिमान् और तोणिमान् भी कहते थे। किन्तु कठिनाई यह रह जाती है कि लाट देश ( गुजरात ) में किसी द्रोणगिरिके होनेकी
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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