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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ १५३ पौराणिक आख्यान - भगवती-आराधना और आराधनासार नामक शास्त्रोंमें द्रोणगिरि पर्वतपर गुरुदत्त मुनिराजके ऊपर हुए जिस उपसर्गकी ओर संकेत किया गया है, उसके सम्बन्धमें हरिषेणकृत कथाकोशमें विस्तृत कथानक दिया गया है, जो इस प्रकार है श्रावस्ती नगरीका शासक उपरिचर पद्मावती, अमितप्रभा, सुप्रभा और प्रभावती नामक चारों रानियोंके साथ प्रमदवनमें विहारके लिए गया। वे जब सुदर्शना बावड़ीमें क्रीड़ा कर रहे थे, तभी विद्यदृष्ट्र नामक एक विद्याधर अपनी पत्नी मदनवेगाके साथ विमानसे आकाशमें जा रहा था। विद्याधरी जल-क्रीड़ा करते हुए राजा और रानियोंको देखकर बोली-“धन्य हैं ये रानियाँ जो अपने पतिके साथ जल-क्रीड़ामें आसक्त हैं।" पत्नीके मुखसे अन्य पुरुषकी प्रशंसा सुनकर विद्याधरको बड़ा बुरा लगा। गुस्सेके मारे वह विमानको लौटा ले गया और अपनी पत्नीको अपने घर छोड़कर वह पुनः उसी बावड़ीके पास आया और एक बड़ी भारी शिलासे बावड़ीको ढक दिया। इससे दम घुटकर पांचों प्राणी मर गये। राजा क्रोधमें भरकर सांप बना तथा चारों रानियाँ सम्यग्दर्शनके प्रभावसे स्वर्गमें देवियां बनीं। वहाँ अवधिज्ञानसे पूर्वभवका वृत्तान्त जानकर एक दिन वे अपने पूर्वभवके पतिके जीवको सम्बोधन करने आयीं। उसी समय उस राजाका पुत्र अनन्तवीर्य उस वनमें विहार करने आया। वहां उसने एक शिला-तलपर विराजमान अवधिज्ञानी सागरसेन नामक मुनिराजको देखा। राजा अनन्तवीयं उनके निकट आया और दर्शनवन्दना करके उनके पास बैठ गया। उसने मुनिराजसे प्रश्न किया-"भगवन् ! मेरे पिता मरकर किस गतिमें उत्पन्न हुए हैं ?" मुनिराज बोले-“वापीमें तेरा पिता रानियोंके साथ जब जलक्रीड़ा कर रहा था, तभी विद्युदंष्ट्र विद्याधरने शिलासे वापीको ढक दिया, जिससे मरकर वह यहीं निकट ही साँप हुआ है। तू जा और उससे कहना 'उपरिचर! तू साधुके निकट जा।' तेरी बात सुनकर वह बिलसे निकलकर धर्मग्रहण करेगा।" ___मुनिराजके वचन सुनकर राजा अनन्तवीर्य बिलके निकट जाकर मुनिराजके आदेशके अनुसार बोला । उसकी बात सुनकर वह सर्प मुनिराजके समीप गया। मुनिने उसे उपदेश दिया। उपदेश सुनकर सर्पको जाति-स्मरण ज्ञान हो गया। उसने अपनी आयु अल्प जानकर हृदयसे धर्म ग्रहण कर लिया और कुछ दिनों बाद अनशन करते हुए उसकी मृत्यु हो गयो। शुभ भावोंसे मरकर वह नागकुमार-जातिका देव हुआ। अवधिज्ञानसे अपने पूर्वभव जानकर वह देव अनन्त पास आया और अपने पूर्व-जन्मका वृत्तान्त बताया। देवके वचन सुनकर अनन्तवीर्यको वैराग्य हो गया। उसने अपने सुवासु नामक पुत्रको राज्य देकर सागरसेन मुनिके समीप जाकर निग्रन्थ मुनि-दीक्षा धारण कर ली और घोर तप द्वारा कर्मोंका नाश करके मुक्त परमात्मस्वरूपको प्राप्त किया। ___ नागकुमार सुमेरु पर्वत आदिपर जाकर जिनालयोंकी वन्दना किया करता था। एक दिन विमानमें जाते हुए उसे विद्युदंष्ट्र विद्याधर दिखाई पड़ा। पूर्व-जन्मकी घटनाका स्मरण आते ही उसे भयानक क्रोध आया और उसे स्त्री सहित ले जाकर समुद्रमें डुबा दिया। विद्युद्देष्ट्र अशुभ परिणामोंसे मरकर प्रथम नरकमें नारकी बना । वहाँसे आयु पूर्ण होनेपर वह द्रोणगिरिपर सिंह हुआ। . नागकुमार मरकर हस्तिनापुरनरेश विजयदत्तकी विजयारानीसे गुरुदत्त नामक पुत्र हुआ। जब गुरुदत्त यौवनावस्थाको प्राप्त हुआ तो उसके पिता उसका राज्याभिषेक करके मुनि हो गये। गुरुदत्त आनन्दपूर्वक राज्य-शासन करने लगा। एक बार उसने लाट देशमें द्रोणगिरिकी पूर्वोत्तर ३-२०
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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