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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
१५१ प्रदेश, वन्य पशु, चन्द्रभागा नदी (काठिन नदी), पर्वतसे झरते हुए निझरोंसे बने दो निर्मल कुण्डये सभी मिलकर इसे तपोभूमि बनाते हैं। निर्वाण-भूमि
द्रोणगिरि निर्वाण-क्षेत्र है। प्राकृत निर्वाण-काण्डमें इस सम्बन्धमें निम्नलिखित उल्लेख मिलता है
फलहोडी बड़गामे पच्छिम भायम्मि द्रोणगिरि सिहरे ।
गुरुदत्तादि मुणिन्दा णिव्वाण गया णमो तेसि ॥ अर्थात्, फलहोड़ी बडगांवके पश्चिममें द्रोणगिरि पर्वत है। उसके शिखरसे गुरुदत्त आदि मुनिराज निर्वाणको प्राप्त हुए। उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ।
संस्कृत निर्वाण-भक्तिमें केवल क्षेत्रका नाम द्रोणिमान दिया हुआ है। उसका कोई परिचय अथवा वहाँसे मुक्त होनेवाले मुनिका नाम नहीं दिया गया है।
भट्टारक श्रुतसागरने बोधप्राभूतकी २७वीं गाथाकी टीकामें २७ तीर्थोंका नामोल्लेख किया है और उसमें द्रोणगिरिका भी नाम दिया है। ये भट्टारक मूलसंघ बलात्कारगण सूरतशाखाके सुप्रसिद्ध भट्टारक विद्यानन्दिके शिष्य थे । अतः इनका समय ईसाकी १५वीं शताब्दी है। ..
मराठीके १५वीं शताब्दीके प्रसिद्ध लेखक गुणकीर्तिने अपनी मराठी 'तीर्थवन्दना में लिखा है-'फलहोड़ि ग्रामि आहूठ कोडि सिद्धासि नमस्कार माझा' अर्थात् फलहोड़ी ग्रामसे साढ़े तीन कोटि मुनियोंने मुक्ति प्राप्त की, उनको नमस्कार है। इसमें गुणकीर्तिने न द्रोणगिरिका उल्लेख किया है, न गुरुदत्त मुनिका ही। इसमें तो द्रोणगिरिके निकटवर्ती फलहोड़ी ग्रामको ही सिद्धक्षेत्र मानकर लेखकने वहाँसे मुक्त होनेवाले मुनियोंकी संख्या साढ़े तीन कोटि बतलायी है, जबकि उनकी निश्चित संख्याका कुन्दकुन्द, पूज्यपाद, शिवकोटि आदि किसी पूर्ववर्ती आचार्यने उल्लेख नहीं किया है।
मराठी जैन साहित्यके लेखक और १५वीं-१६वीं शताब्दीकी सन्धिके प्रमुख विद्वान् चिमणा पण्डितने 'तीर्थवन्दना' नामक स्तोत्रमें इस क्षेत्रके सम्बन्धमें लिखा है-"बडग्राम सुनाम पच्छिम दिसा। द्रोणागिरि पर्वत कैलास जैसा ॥ तेथे सिद्ध झाले मुनि गुरुदत्त । ऐसे तीर्थ वंदा तुम्ही एकचित्त ॥१९॥" इसमें कविने द्रोणगिरिको फलहोड़ीके स्थानपर बड़ग्रामकी पश्चिम दिशामें बतलाया है तथा वहाँसे गुरुदत्त मुनिको मुक्त हुआ माना है। किन्तु इससे कोई अन्तर नहीं
ड़ता। फलहोड़ी और बड़ग्राम दोनों एक ही थे, भिन्न नहीं। प्राकृत निर्वाण-काण्डमें फलहोड़ी बड़ग्राम देकर आचार्यने इस तथ्यको स्पष्ट कर दिया है।
निर्वाण-काण्डमें द्रोणगिरिकी पूर्व दिशामें जिस फलहोड़ी बड़गांवका उल्लेख किया गया है, वह गांव आजकल नहीं मिलता। वर्तमान द्रोणगिरिके निकट सेंधपा ग्राम है, जिसका कहीं कोई उल्लेख नहीं है। कल्पना की जाती है कि यहां प्राचीन कालमें फलहोड़ी बड़गांव रहा होगा और वह किसी कारणवश नष्ट हो गया होगा। वास्तवमें सेंधपा गांव विशेष प्राचीन प्रतीत नहीं होता। कहा तो यह जाता है कि जिस भूमिपर यह ग्राम बसा हुआ है, वह पहले निकटवर्ती ग्रामकी श्मशान-भूमि थी। इस गांवके निकट किसी प्राचीन ग्रामके अवशेष प्राप्त होते हैं जो काफी बड़े क्षेत्रमें फैले हुए हैं। पर्वतकी तलहटीमें इन्हीं अवशेषोंके बीच एक भग्न प्राचीन जैन चैत्यालय अब भी खड़ा है, जिसे लोग बँगला कहते हैं। यदि यहाँ खुदाई की जाये तो यहाँपर पुरातत्त्वकी विपुल सामग्री मिलनेकी सम्भावना है।