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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
कुन्थुनाथ, (७) ऋषभदेव, (८) यक्ष-दम्पति, (९) जैन मातृका, (१०) तीसरे तोर्थंकर सम्भवनाथ, (११) पद्मप्रभ भगवान्को शासन- देवी मनोवेगा, (१२) सर्वतोभद्रिका ।
धर्मशालाएँ
खजुराहो विख्यात पर्यटक - केन्द्र है। यहां हजारों व्यक्ति प्राचीन भारतको कलाका दर्शन करने आते हैं । अनेक जैन इस क्षेत्रके दर्शन करने और पूर्वजोंके कला-प्रेम एवं कलाको देखने आते हैं। यों तो यहाँ श्रेणी १ और २ के होटल, रेस्ट हाउस, डाक बंगला, लॉज आदि हैं जिनमें यात्री ठहरते हैं; किन्तु जैन यात्रियोंकी सुविधाके लिए समाज के सहयोग से यहाँ ६ धर्मशालाओं का निर्माण किया गया है । इनमें दो विभाग कर दिये गये हैं । एक तो सामान्य धर्मशाला है जिसमें यात्री निःशुल्क ठहर सकते हैं । दूसरा विश्रान्ति भवन, जिसमें निश्चित शुल्क देकर ठहर सकते हैं । धर्मशालामें ११ कमरे और विश्रान्ति भवनमें ८ कमरे हैं। इनमें कुओं और शौचालयोंकी व्यवस्था है । क्षेत्र पर विद्युत्प्रकाशकी भी व्यवस्था है। यात्रियोंकी सुविधाके लिए बरतन, इन्धन, कोयले, ओढ़ने-बिछानेके वस्त्र आदिकी भी व्यवस्था है ।
मेला
क्षेत्रका वार्षिक मेला चैत्र मासके शुक्ल पक्षमें होता है । इसी अवसरपर विधानानुसार क्षेत्रकी प्रबन्ध समितिका भी चुनाव होता है । यहाँ आश्विन कृष्णा ३ को प्रतिवर्षं पालकी निकाली जाती है । यह उत्सव छतरपुर रियासतके कालसे प्रतिवर्षं मनाया जा रहा है । दोनों ही उत्सवों में जैन जनता बड़ी संख्या में एकत्र होती है ।
द्रोणगिरि
स्थिति और मार्ग
द्रोणगिरि मध्यप्रदेश के छतरपुर जिलेमें विजावर तहसीलमें स्थित है । द्रोणगिरि क्षेत्र पर्वतपर है । वहाँ पहुँचने के लिए २३२ सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। सीढ़ियाँ पक्की बनी हुई हैं । पर्वतकी तलहटीमें सेंधपा नामक एक छोटा-सा गाँव है । यहाँ पहुँचनेके लिए मध्य रेलवेके सागर या हरपालपुर स्टेशनपर उतरना चाहिए। सुविधानुसार मऊ, महोवा या सतना भी उतर सकते हैं । प्रत्येक स्टेशनसे क्षेत्र लगभग १०० कि. मी. पड़ता है। सभी स्थानोंसे पक्की सड़क गयी है । कानपुर-सागर रोड अथवा छतरपुर-सागर रोडपर मलहरा ग्राम है । मलहरासे द्रोणगिरि ७ कि. A. है । वहाँ तक पक्की सड़क है । सागरसे मलहरा तक बसें चलती हैं । बस द्वारा मलहरा पहुँचकर वहाँसे नियमित बस द्वारा क्षेत्र तक जा सकते हैं। बसका टिकट सेंधपाके लिए लेना चाहिए । गाँवका नाम तो सेंधपा है, किन्तु पर्वतका नाम द्रोणगिरि है। सेंधपाके बस अड्डेसे जैन धर्मशाला लगभग १०० गज दूर गाँवके भीतर है। वहीं गांवका मन्दिर और गुरुदत्त संस्कृत विद्यालय है । पा ग्राम काठिन और श्यामली नामक नदियोंके बीच बसा हुआ है । निरन्तर प्रवाहित होनेवाली इन नदियोंने इस स्थानकी प्राकृतिक सुन्दरताको अत्यन्त आह्लाददायक बना दिया है । ग्राममें जाते ही मन में शान्ति अनुभव होने लगती है । ग्रामसे सटा हुआ द्रोणगिरि पर्वत है । यहाँ प्रकृतिने तपोभूमिके उपयुक्त सुषमाका समस्त कोष सुलभ कर दिया है। सघन वृक्षावलि, निर्जन