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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ नामक जिस श्रेष्ठीने निर्मित कराया था, सम्भवनाथकी इस मूर्तिको प्रतिष्ठा उसी पाहिल्लके वंशधर साल्ह और उसके पुत्रोंने करायी।
इस मन्दिरके मण्डपमें अनेक प्राचीन मूर्तियां, स्तम्भ खण्ड, तोरण-खण्ड रखे हुए हैं।
इस मन्दिरको शिखर-संयोजना अनूठी है। इसको शिखर-संयोजनामें उरुशृंग और कर्णश्रृंगको स्थान नहीं मिला है। इसका शिखर ऊंचे अधिष्ठानपर सीधा खडा है। उसमें उठान क नहीं है। किन्तु वह अत्यन्त अलंकृत है। इस मन्दिरमें न प्रदक्षिणा-पथ है, न इसकी भीतरी भित्तियोंपर मूर्तियोंका अंकन किया गया है। मूर्तियोंका अंकन बाह्य भित्तियों, जंघा और शिखरपर किया गया है। पार्श्वनाथ मन्दिरसे इसकी मूर्तियां यद्यपि आकारमें छोटी हैं किन्तु हैं अत्यन्त भावपूर्ण, सुडौल एवं सुघड़। इसकी जंघामें भी तीन समानान्तर रूप-पट्टिकाएं बनी हुई हैं। ऊपरकी पट्टिकामें विद्याधर, किन्नर और गन्धर्व हैं। शेष दो पट्टिकाओंमें शासन-देवता, यक्ष-मिथुन और सुरसुन्दरियोंका अंकन है। मध्य पट्टिकापर कोष्ठकोंमें १६ देवियोंका अंकन किया गया है। देवियां ललितासनसे बैठी हुई हैं । देवियां अपने वाहनोंपर अपने समस्त आयुधोंको लेकर अवस्थित हैं। इनमें से दो मूर्तियां अपने स्थानसे गायब हैं। लगता है, ये १६ विद्यादेवियाँ हैं जिनका जैन शास्त्रोंमें वर्णन मिलता है। ये जैन शास्त्रानुकूल तो निर्मित हुई ही हैं, इनमें जो लावण्य, शिल्पसौष्ठव और भावाभिव्यंजना है, ऐसा अन्यत्र कहीं १६ विद्यादेवियोंकी मूर्तियोंमें देखनेमें नहीं आया।
इस मन्दिरके एक वैशिष्ट्यकी ओर दर्शकका ध्यान बरबस खिंच जाता है। इन पट्टिकाओंके कोनोंपर आदिनाथके सेवक यक्ष गोमुखका भव्य अंकन मिलता है। यह मन्दिरके चारों कोनोंपर अंकित है । यह चतुर्भुज है, खड़ी हुई मुद्रा है और मनुष्याकार है। इसके आयुध, अलंकार, यज्ञोपवीत स्पष्ट पहचाने जा सकते हैं।
___ सुरसुन्दरियोंका अंकन तो बड़ा ही सजीव बन पड़ा है। इनके मुखपर मोहन रूपराशि और भाव-भंगिमा, इनको विलास और शृंगारप्रियता, इनको सुकुमार देहको गठन और लोच, इनके यौवनका उभार और त्रिभंग मुद्राका मनभावन रूप सभी कुछ जैसे साँचेमें ढाला गया हो । आरसी देखती हुई सीमन्तमें सिन्दूर भर रही सौभाग्यवती, आरसीके सामने नयनोंमें काजल लगाती हुई शृंगारिका और नृत्यांगनाओंकी नृत्यमुद्राकी नाना छवियाँ-इन सब रूपोंमें नारीसौन्दर्यका जो सरस रूप उजागर हुआ है, वही नारीका सर्वस्व नहीं है, यही प्रदर्शित करनेके लिए ममतामयी माके उस रूपका भी अंकन किया गया है, जिसमें माता अपने शिशुका चुम्बन लेती हुई प्रदर्शित है । नारीको चरम और परम सार्थकता मातृत्वके इस वात्सल्यमें ही है।
___ मध्य पंक्तिमें चपल पगोंसे नृत्य करती हुई एक नृत्यांगनाका अंकन है। सम्भवतः यह नृत्यांगना पुराणप्रसिद्ध नीलांजना ही होगी।
इस मन्दिरका शिखर और उसकी चूड़ापर बना आमलक, सूचिका और कलश अत्यन्त भव्य लगते हैं। मध्यप्रदेश में ५वीं-ठी शताब्दीमें शिखर-शैलीका विकास प्रारम्भ हुआ और ८वीं शताब्दीमें यहाँ नागर शैली उजागर हुई। मध्यप्रदेशकी भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि उसपर पूर्व और पश्चिम दोनोंका ही प्रभाव पड़ सकता है। सम्भवतः प्रस्तुत मन्दिरकी शिखर-शैलीपर पूर्वका, विशेषतः उड़ीसाका प्रभाव पड़ा प्रतीत होता है।
___ मन्दिर न. २८-आदिनाथ मन्दिरमें-से इस मन्दिरके लिए मार्ग है । ६ फुट ८ इंच ऊँचे शिलाफलकमें ऋषभदेव भगवान्की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। प्रतिमाका केश-विन्यास मनोहर है । इसके परिकरमें भामण्डल, छत्र, माला लिये गन्धर्व, गजपर आरूढ़ इन्द्र, चमरवाहक,