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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
१४७ चक्रेश्वरीके दोनों ओर दो चतुर्भुज देवियाँ अंकित हैं। उनके हाथोंमें कमल, कमण्डलु तथा एक हाथ वरदमुद्रामें अंकित हैं। देवियां ललितासनसे बैठी हैं। ये अर्ध-स्तम्भोंसे निर्मित रथिकाओंमें आसीन हैं।
___ द्वार-शाखाओंके ऊपर बायीं ओर चार-चार देवी-मूर्तियां अंकित हैं। इसी प्रकार चौखटके दोनों कोनोंपर चतुर्भुज देव-मूर्तियाँ बनी हुई हैं। बायीं ओर देव-मूर्तिकी बगलमें एक रथिकामें गजलक्ष्मीको चतुर्भुजी देवी-मूर्ति दिखाई पड़ती है। देवीका वाहन कूर्म प्रदर्शित है तथा सिरके ऊपर तीन सर्पफणोंका घटाटोप दीख पड़ता है। द्वार-शाखाओंके नीचे गंगा और यमुनाका अंकन मिलता है, जो खजराहोको कलाका अभिन्न अंग मालम पड़ता है। यहाँ गंगा और यम चतुर्भुजी बनी हैं। उनके पीछे उनके वाहन मकर और कच्छप दीख पड़ते हैं।
सिरदलके ऊपरी भागमें तीर्थंकर माता द्वारा देखे गये १६ मंगल स्वप्नोंका अंकन किया गया है। खजुराहोके सभी जैन मन्दिरोंमें १६ स्वप्नोंका अंकन मिलता है। यहाँ जो स्वप्नोंका चित्रण किया गया है, वह अत्यन्त स्पष्ट है। सभी स्वप्नोंको इतनी स्पष्टताके साथ अंकित किया गया है कि उनको पहचानने में कोई बाधा नहीं होती। स्वप्न-दर्शनसे पूर्व तीर्थंकर माता शय्यापर लेटी हुई हैं और देवियाँ उनकी सेवा कर रही हैं । एक पुरुष और एक स्त्रीको वार्तालाप करते हुए दिखाया गया है जो इन्द्र और इन्द्राणी प्रतीत होते हैं । फिर गज, वृषभ, सिंह, कमलासीन चतुर्भुजी लक्ष्मी, पुष्पमाल, चन्द्र, द्विभुज सूर्य, मत्स्य-युगल, दो क्लश, दिव्य सरोवर, कूर्म-मत्स्य आदिसे पूर्ण समुद्र, दो सिंहोंपर आधारित और मध्यमें धर्मचक्रसे युक्त सिंहासन, विमानमें देव, नागेन्द्र-भवनमें सर्प-फणसे युक्त द्विभुज नाग-नागी, धन-राशि और अग्नि-शिखाओंके भामण्डलसे युक्त अग्निकी श्मश्रुयुक्त आकृति इस प्रकार १६ स्वप्नोंका अंकन है।
गर्भगृहमें वेदीपर एक ४ फुट ६ इंच ऊंचे शिलाफलकमें भगवान् ऋषभदेवकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसके सिरपर छत्र तथा पीछे भामण्डल सुशोभित हैं। छत्रके दोनों पावोंमें पुष्पमाल लिये हुए गन्धर्व, गजारूढ़ इन्द्र, उनके अधोभागमें दो खड्गासन मूर्तियां और चमरवाहक हैं । पीठिकापर नृत्य-गानमें निरत देव-समाज अंकित है। इस मूर्तिके दोनों पार्यों में २ फुट ३ इंच उन्नत एक-एक खड्गासन प्रतिमा है।
एक अन्य वेदीमें कृष्ण पाषाणकी ४ फुट १० इंच ऊँची सम्भवनाथ भगवान्की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। चरण-चौकीपर लांछन है। उसपर उत्कीर्ण मूर्ति-लेख इस भाँति है
'ओं संवत् १२१५ माघ सुदि ५ श्रीमान् मदन वर्मदेव-प्रवर्धमान-विजय-राज्ये गृहपतिवंशे श्रेष्ठी देदु तत्पुत्र पाहिल्ल: पाहिल्लांग रुह साधु साल्हेनेदं प्रतिमा कारापिता तत्पुत्राः महागण महाचन्द्र सनिचन्द्र जिनचन्द्र उदयचन्द्र प्रभृति संभवनाथं प्रणमति नित्यम् । मंगल
महाश्री रूपकार रामदेव ॥ इस मूर्ति-लेखसे ज्ञात होता है कि सम्भवनाथकी इस मूर्तिकी प्रतिष्ठा चन्देल नरेश मदनवर्माके राज्य-कालमें माघ सुदी ५ संवत् १२१५ को हुई थी। प्रतिष्ठाकारक थे गृहपति-वंशके सेठ देदु, उनके पुत्र पाहिल्ल और उनके वंशज साल्ह। साल्हके पुत्रोंके नाम थे महागण, महाचन्द्र, शनिचन्द्र, जिनचन्द्र, उदयचन्द्र आदि । मूर्तिकारका नाम रामदेव था। पाश्वनाथ मन्दिर पाहिल्ल