SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ १४३ मण्डपके चेहरेके तोरणपर देवियां, यक्ष-मिथुन, नाग-नागी, मंगल-कलश लिये हुई देवियां, हाथी और सिंहके युद्ध आदिके दृश्य अंकित हैं। ' मन्दिरके तीन आन्तरिक भाग हैं-महामण्डप, अन्तराल और गर्भगृह । इन तीनोंके चारों ओर एक साझा प्रदक्षिणा-पथ है। उसके चारों ओर दीवार है। प्रदक्षिणा-पथपर प्रकाशके लिए छेददार झरोखोंका प्रयोग किया गया है। इनसे प्रकाश और वायुका संचार होता है। इन झरोखोंसे न तो पूर्ण प्रकाश ही हो पाता है और न अन्धकार ही पूर्णतः नष्ट हो पाता है। इससे मण्डप और प्रदक्षिणा-पथमें एक अद्भुत रहस्यमय और पवित्र वातावरणकी सृष्टि हो जाती है। ___महामण्डप भी चार स्तम्भोंपर आधारित है। इसकी छत पद्मशिलासे अलंकृत है । स्तम्भों और छतोंपर यक्ष-यक्षियों तथा देवियोंका अंकन है। महामण्डपमें सात प्राचीन मूर्तियां या तोरणके भाग रखे हुए हैं। एकमें गोमेद और अम्बिकाकी मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। कई मूर्तियोंके सिर काट लिये गये हैं। इस महामण्डपकी छतपर बना पद्मपुष्प कलाका सुन्दर उदाहरण कहा जा सकता है। ___ अर्ध-मण्डप, महामण्डप और अन्तराल, तीनोंके ऊपर शिखर बने हुए हैं। इससे इस मन्दिरको शिखर-संयोजना अद्भुत, अनुपम और अधिक सुन्दर हो गयी है। कलाको इस अद्भुत विधाने सौन्दर्यको नये आयाम प्रदान किये हैं। अन्तरालसे बढ़नेपर गभंगृहका प्रवेश-द्वार मिलता है। द्वार अत्यन्त अलंकृत है। द्वारके दोनों स्तम्भों ( चौखटों) पर गंगा, यमुना, यक्ष, मिथुन और द्वारपालका अंकन है। बायीं ओर एक चतुर्भुज देवीका अंकन है। उसके हाथोंमें सनाल कमल, अभय-मुद्रा और कमण्डलु प्रदर्शित हैं। कमलोंके ऊपर गज अंकित हैं। कमल और गजसे इसकी पहचान लक्ष्मीके रूपमें की जाती है। द्वारके दायीं ओर सरस्वतीकी चतुर्भुजी मूर्ति बनी हुई है। देवीके हाथोंमें सनाल कमल, पुस्तक और वीणा हैं। इसके उत्तरांगपर दो रूप-पट्टिकाएं बनी हुई हैं । अधःपट्टिकाके ललाट-बिम्बपर भगवान् चन्द्रप्रभको मनोज्ञ पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। पट्टिकाके दोनों कोनोंपर कायोत्सर्गासनमें तीर्थंकर प्रतिमाएं अंकित हैं। उनके दोनों ओर चामरधारिणी यक्षियाँ हैं। ऊपरी पट्टिकामें ५ पद्मासन, ६ कायोत्सर्गासन तीर्थंकर-मूर्तियाँ और नवग्रह बने हुए हैं। गर्भगृह अत्यन्त सादा है। आकुल मनको वहाँ पहुंचते ही शान्तिका अनुभव होता है। गर्भगृहका आकार ७ फुट ४८ फुट है। वेदीके माथेपर वृषभ लांछन बना हुआ है। इससे लगता है कि यह मन्दिर मूलतः आदिनाथ मन्दिर था। किसी कारणवश आदिनाथ भगवान्की प्रतिमा खण्डित हो गयी। तब उसके स्थानपर पार्श्वनाथकी यह मूर्ति (संवत् १९१७ की) प्रतिष्ठित कर दी गयी। मूर्तिके सिरके पीछे भामण्डल, छत्र, छत्रके ऊपर दुन्दुभिवादक, उसके ऊपर कोष्ठकोंमें, उनके बगल में, ऊपर तथा नीचे ३९ तीर्थकर-मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। दोनों ओर पाश्वनाथकी खडगासन प्रतिमाएँ हैं। परिकरमें गज, मालाधारिणी देवियां और चमरेन्द्र हैं। गोमख यक्ष और चक्रेश्वरी देवीका भव्य अंकन है। इससे भी इस बातका समर्थन होता है कि इस वेदीपर मूलनायक भगवान् आदिनाथकी प्रतिमा विराजमान थी। जब पार्श्वनाथकी मूर्ति मूलनायकके रूपमें यहाँ विराजमान कर दी गयी, तबसे यह मन्दिर पार्श्वनाथ मन्दिर कहा जाने लगा। गर्भगृहसे निकलकर प्रदक्षिणा-पथपर जाते हुए प्रदक्षिणा-पथकी भित्तियोंपर शासन-देवदेवियों और गन्धर्वोकी मूर्तियाँ बनी हुई हैं। उनके मध्य ८ मनोज्ञ जिन-प्रतिमाएं विराजमान हैं। बाहुबली स्वामीकी तपस्यारत एक सुन्दर प्रतिमा दर्शकका ध्यान बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं। प्रतिमाकी टांगोंसे लिपटे भयानक विषधरों और शरीरपर रेंगते हुए खतरनाक
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy