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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ मन्दिरकी प्रतिष्ठा संवत् १०११ (ई. सन् ९५४ ) में वैशाख सुदी ७ सोमवारको हुई। पाहिल श्रेष्ठीने अभिलेखमें अत्यन्त विनम्रता और निरभिमान वृत्तिका परिचय यह कहकर दिया है कि जो व्यक्ति या वंश भविष्यमें मन्दिर और वाटिकाओंको व्यवस्था करेंगे, मैं उनका दासानुदास हूँ।
इस द्वारको बायीं चौखटपर एक छोटा-सा अभिलेख है-"श्री हाटपुत्र श्रीमाहुल श्री आचार्य श्री देवचन्द्र शिष्यः कुमुदचन्द्र । हाटपुत्र श्री गोलल।"
इसी प्रकार दायीं चौखटपर अभिलेख है-"हाटपुत्र श्री देवसम्मंसिरि जयतु।"
इस अभिलेखके ऊपर बायीं ओर एक चौंतीसा यन्त्र बना हुआ है। इसमें १६ अंक बने हुए हैं। इसे चाहे जिधरसे भी जोड़ा जाये, अंकोंका योग ३४ ही आता है। ऐसी जनश्रुति इसके सम्बन्धमें प्रचलित है कि यदि किसी स्त्रीको प्रसव-वेदना हो तो इस यन्त्रको केशरसे काँसेकी थालीमें लिखकर शुद्ध जलसे उसे घोलकर पिला देनेसे प्रसव बिना कष्टके हो जाता है। बालकोंके उदर-शूलमें भी यह लाभकारी है।
वह यन्त्र इस प्रकार है
द्वारके बायीं ओर मकरवाहिनी गंगा और दाहिनी ओर कूर्मवाहिनी यमुनाके साथ चतुर्भुज द्वारपाल स्थित हैं। गंगा-यमुनाके पार्यों में विभिन्न वाद्य-यन्त्र बजाते गन्धर्व और यक्ष-मिथुन अंकित किये गये हैं। ऊपर तोरणके ललाट-बिम्बपर दसभुजी चक्रेश्वरी गरुड़पर आसीन अंकित है। खजुराहोमें दसभुजीके रूपमें चक्रेश्वरीका अंकन केवलमात्र यही है। देवीकी दक्षिण भुजाओंमें सम्भवतः पद्म, चक्र, गदा, खड्ग और वरद मुद्रा प्रदर्शित हैं। तथा वाम भुजाओंमें चक्र, धनुष, खेटक, गदा और शंख हैं। तोरणपर वाम पार्श्वमें चतुर्भुजी त्रिमुख ब्रह्माणीकी मूर्ति उत्कीर्ण है। देवी हंसपर आरूढ़ है। दक्षिण पार्श्वमें भी इसी प्रकारको ब्रह्माणोकी मूर्तिका अंकन है। इसमें उसका वाहन हँस उसके निकट ही अंकित है। ये देवी-प्रतिमाएँ दोनों ओर नवग्रहोंसे आवेष्टित हैं। - इसके ऊपरी तोरणके मध्य ललाट-बिम्बपर आदिनाथकी तथा उनके दोनों पाश्ॉमें एकएक तीर्थकर प्रतिमा बनी हुई है। इस तोरणके दोनों कोनोंमें ६-६ दिगम्बर मुनि तीर्थंकरोंकी वन्दना करते दिखाई पड़ते हैं।
___ इस द्वारके बाहर चबूतरेपर एक अर्धमण्डप बना हुआ है। यह चार स्तम्भोंपर आधारित है। इसकी छत उलटे कमलपुष्प अथवा कटोरीके आकारकी है। इस छतके केन्द्रसे एक डण्डीमें झूमती हुई शृंखलाएँ और पुष्पवल्लरियाँ अंकित हैं। इनके नीचे दो विद्याधर-मूर्तियाँ बनी हुई हैं।