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मध्यप्रदेश के दिगम्बर जैन तीर्थं
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'लक्ष्मणकी अपेक्षा पार्श्वनाथकी वास्तुकला अधिक विकसित है । लक्ष्मण मन्दिरके विपरीत, जिसके शिखरमें उरःशृंगों की मात्र एक पंक्ति और वर्णशृंगोंकी दो पंक्तियाँ हैं । इस मन्दिरमें उरः शृंगों की दो और कर्णशृंगों की तीन पंक्तियाँ देखनेको मिलती हैं । इसके अतिरिक्त लक्ष्मण मन्दिरकी जंघा में दो मूर्ति पंक्तियाँ हैं किन्तु इसमें तीन पंक्तियाँ हैं और सबसे ऊपरी पंक्ति में विद्याधरों और उनके युग्मोंके चित्रण हैं । ऊर्ध्वं पंक्ति में विद्याधरोंका चित्रण परवर्ती खजुराहो मन्दिरों की एक विशिष्टता है जिसका श्रीगणेश इसी मन्दिरसे हुआ है ।'
इस प्रकार हम देखते हैं कि पार्श्वनाथ मन्दिर खजुराहो के मन्दिर - समूहमें सर्वश्रेष्ठ और अद्वितीय है।
पार्श्वनाथ मन्दिरका निर्माण-काल प्रायः सभी विद्वान् १०वीं शताब्दी मानते हैं । द्वारके बायें खम्भेपर १२ पंक्तियोंका एक लेख है, जिसमें प्रतिष्ठा काल संवत् १०११ दिया गया है । लिपिके आधारपर यह लेख किसी प्राचीनतर लेखकी उत्तरकालीन प्रतिलिपि माना जाता है । यह प्रतिलिपि लुप्त मूल अभिलेखके एक शती बाद लिखी गयी ऐसा माना जाता है । लक्ष्मण मन्दिरके अभिलेखका संवत् भी १०११ ही है, किन्तु लक्ष्मण और पार्श्वनाथ के एक ही संवत् के अभिलेखोंकी लिपिमें अवश्य अन्तर है । अभिलेख चन्देल नरेश धंगके शासन कालमें लिखे गये थे । द्वार-अभिलेखके अतिरिक्त कुछ पूर्ववर्ती तीर्थयात्री - लेख भी इस मन्दिरमें कई स्थानोंमें अंकित हैं । लिपिके आधारपर उन्हें दसवीं शताब्दी के मध्यका माना जा सकता है । द्वार-अभिलेख १२ पंक्तियों का है । वह अभिलेख इस प्रकार है
"ओं संवत् १०११ समये । निजकुल धवलोयं दि व्यमूर्तिः स्वशीलसमदमगुणयुक्त सव्वंसत्वानुकंपी स्वजनजनिततोषो धांगराजेन मान्यः प्रणमति जिननाथोयं भव्य पाहिल नामा ॥ १ ॥ पाहिल वाटिका १ चन्द्रवाटिका २ लघुचन्द्रवाटिका ३ संकरवाटिका ४ पंचाई तलवाटिका ५ आम्रवाटिका ६ धंगवाड़ी पाहिलवंसे तु क्षये क्षीणे अपरवंसोयः कोपि तिष्ठति तस्य दासस्य दासोयं मम दत्ति तु पाल येत् महाराजगुरु स्रीबासवचन्द्र
७ सोमदिने ॥
अर्थात्, संवत् १०११ । भव्य पाहिल जिननाथको नमस्कार करता है, जो अपने कुलमें श्रेष्ठ है, दिव्य मूर्ति है, शीलवान् है, समता और इन्द्रियदमनके गुणोंसे युक्त है, सब जीवों पर दया करनेवाला है, अपने परिवारके सभी स्वजनोंको सन्तुष्ट कर दिया है और धंग नरेश द्वारा मान्य है । ( इस मन्दिर के लिए ) पाहिलवाटिका, चन्द्रवाटिका, लघुचन्द्रवाटिका, संकरवाटिका, पंचाईतलवाटिका, आम्रवाटिका और धंगवाड़ी ( इन सात वाटिकाओंका दान करता हूँ । ) पाहिलवंश के क्षीण होनेपर जो भी अन्य वंश (इस मन्दिरको व्यवस्था करेगा) में उसका दासानुदास हूँ । वह मेरे .. दिये हुए दानकी रक्षा करे । महाराजगुरु श्री वासवचन्द्र (के आशीर्वादसे) वैशाख सुदी ७ सोमवार । इस अभिलेख से कई आवश्यक बातोंकी जानकारी मिलती है । वह यह कि इस मन्दिरका निर्माण पाहिल श्रेष्ठोने चन्देल नरेश धंगके शासन काल में कराया था । वह राजमान्य व्यक्ति था । .