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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ एवं शिल्पका सूक्ष्मांकन है। शिखरका शीर्ष भाग खजुराहोकी तत्कालीन कलाका सुन्दर निदर्शन है।
__ मन्दिर नं. २४-तीन दरकी वेदीमें २ फुट ७ इंच x १ फुट ७ इंच चौड़े शिलाफलकमें खड्गासन तीर्थंकर-प्रतिमा है। सिरके ऊपर छत्र हैं। उसके बायें पाश्वमें पुष्पवर्षा करती हुई देवियाँ हैं और दायीं ओरका भाग खण्डित है। दायीं ओरका गज है और बायीं ओरका गज खण्डित है। उसके नीचे दोनों पार्यों में चार-चार खड्गासन तथा बगलमें तीन-तीन खड्गासन और चार-चार पद्मासन जिन-प्रतिमाएं बनी हुई हैं। भगवान्के दोनों बाजुओंमें चमरवाहक खड़े हुए हैं। उनके बराबरमें दो भक्त श्राविका हाथ जोड़े हुई हैं। अधोभागमें यक्ष-यक्षी (भगवान् श्रेयान्समायके सेवक कुमार और गौरी ) अंकित हैं।
"बेदीके दो दर खाली हैं। मन्दिरके आगे अर्धमण्डप बना हआ है। तोरण और चौखटोंपर मिथुन-मूर्तियों और यक्षी-मूर्तियोंका भव्य अंकन है। चौखटोंके अधोभागमें सर्पफणमण्डित पद्मावती देवी तथा अन्य देवियाँ हैं।
मन्दिर नं. २५-खजुराहोके वर्तमान जैन मन्दिरोंमें पार्श्वनाथ मन्दिर सबसे विशाल और सबसे सुन्दर है । वह ६८ फुट २ इंच लम्बा और ३४ फुट ११ इंच चौड़ा है । यह मन्दिर पूर्वाभिमुख है । खजुराहोके समस्त हिन्दू और जैन मन्दिरोंमें भी कला-सौष्ठव और शिल्पको दृष्टिसे यह अन्यतम माना जाता है। खजुराहोका कन्दारिया मन्दिर अपनी विशालता एवं लक्ष्मण मन्दिर उत्कीर्णमूर्ति-सम्पदाको दृष्टिसे विख्यात हैं। किन्तु पाश्वनाथ मन्दिरके कलागत वैशिष्ट्य एवं अद्भुत शिखर-संयोजनाकी समानता वे मन्दिर नहीं कर सकते। प्रसिद्ध विद्वान् फेर्गुसनने इस मन्दिरके सम्बन्धमें जो उद्गार प्रकट किये हैं, उनसे वास्तविक स्थितिपर प्रकाश पड़ता है।
'वास्तवमें समूचे मन्दिरका निर्माण इस दक्षताके साथ हुआ है कि सम्भवतः हिन्दू स्थापत्यमें इसके जोड़की कोई रचना नहीं है जो इसकी जगतोकी तीन पंक्तियोंकी मूर्तियोंके सौन्दर्य, उत्कृष्ट कोटिकी कला-संयोजना और शिखरके सूक्ष्मांकनमें इसकी समानता कर सके।' ___कन्दारिया महादेव मन्दिरके साथ पाश्र्वनाथ मन्दिरकी तुलना करते हुए फर्गुसन आगे लिखते हैं-.
..'कन्दारिया महादेव मन्दिरके साथ पार्श्वनाथ मन्दिरकी तुलना करें तो हम यह स्वीकार किये बिना नहीं रह सकते कि पार्श्वनाथ मन्दिर कहीं अत्यधिक श्रेष्ठ है।'
इसी प्रकार पाश्वनाथ मन्दिरके साथ लक्ष्मण मन्दिरको तुलना करते हुए खजुराहोके कलाविशेषज्ञ श्री रामाश्रय अवस्थीने लिखा है
8. In fact, the entire temple is so exquisitely wrought that there is nothing
probably in Hindu Architecture that surpasses the richness of its threestoreyed base combined with the extreme elegance outline and delicate detail of the upperpart.
Fergusson in the Khajuraho, by Kanwarlal, p. 66. 8. If we compare the Parshwanath with Kandariya Mahadeo, we can not but admit that the former is by far the most elegant.
Ibid, p. 66. ३. खजुराहोकी देव-प्रतिमाएँ, प्रथम खण्ड, पृ. १५ ।