________________
मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
१३९ सिरके ऊपर छत्र है, जिसके दण्डको देव पकड़े हुए हैं। गज हैं। बायीं ओर पद्मासन जिन-मूर्ति है। दायीं ओर शार्दूलमुख व्याल बना हुआ है। उसके नीचे एक मनुष्य और भैंसा है। व्याल मूर्तियां प्रतीकात्मक होती हैं। यह मूर्ति इस बातका प्रतीक है कि मनुष्यका आसुरी और तामसिक प्रवृत्तियोंपर साहसके द्वारा विजय प्राप्त की जा सकती है। अधोभागमें छह पंक्तियोंमें दो-दो भक हाथ जोड़े बैठे हैं । बायीं ओर एक भक्त श्राविका है। दायीं ओरका भाग खण्डित है।
वेदीके दो दर खाली हैं।
प्रवेश-द्वारके सिरदलपर पद्मासन जिन-मूर्ति विराजमान है। दोनों ओर भक्त हाथ जोड़े हुए बैठे हैं । दोनों कोनोंपर यक्ष-यक्षी हैं । चौखटोंपर युगल मूर्तियाँ प्रेम-क्रीड़ाओंमें मग्न हैं। अधोभागमें यक्ष-यक्षी हैं। यक्षी अंशतः खण्डित है किन्तु यक्ष तो नष्ट कर दिया गया है। द्वारके आगे मण्डप है।
__ मन्दिर नं. २१- शिलाफलकमें भगवान् सुमतिनाथकी खड्गासन प्रतिमा उत्कीर्ण है। भामण्डल, छत्र, हाथी छत्रोंको सूंड़ द्वारा आधार दिये हुए हैं। नीचे पद्मासन और खड्गासन मूर्तियाँ हैं। उनसे नीचे चमरवाहक, एक पार्श्वमें श्रावक और दूसरे पार्श्वमें श्राविका हैं।
प्रवेश-द्वारपर मध्यमें और कोनोंपर यक्षियाँ उत्कीर्ण हैं । चौखट एकल और युगल मूर्तियोंसे अलंकृत है। चौखटके अधोभागमें बायीं ओर तीन नाग-पुरुष और स्त्रियाँ हैं तथा दायीं ओर २ नाग-पुरुष और ४ नाग-कन्याएं हैं।
द्वारके आगे अर्धमण्डप है। इसमें भी विविध अलंकरण हैं।
मन्दिर नं. २२-३ फुट ५ इंच उन्नत एक शिलाफलकमें भगवान् आदिनाथकी पद्मासन प्रतिमा उकेरी हुई है। प्रतिमाके सिरपर जटाएँ हैं। सिरके पीछे भामण्डल और ऊपर छत्र हैं। छत्रोंके ऊपर पद्मासन और उसके पार्श्वके कोनोंमें खड्गासन जिन-मूर्तियाँ हैं। कई मूर्तियों के सिर खण्डित हैं। छत्रोंके दोनों पावोंमें मालाधारी गन्धर्व, गज, उनके नीचे दो-दो खड्गासन मूर्तियाँ और चमरवाहक हैं। उनके बगलकी पट्टीपर दो-दो शार्दूल व्याल, नीचे हाथी, उनसे नीचे चार कोष्ठकोंमें दो-दो खड्गासन मूर्तियां हैं। इनमें से एक खण्डित है। सबसे नीचे यक्ष और यक्षीका अंकन है।
प्रवेश-द्वारपर ऊपर पांच कोष्ठकोंमें और दोनों ओर चौखटोंपर तीन-तीन कोष्ठकोंमें यक्षीमूर्तियाँ बनी हुई हैं। अनेक देवियाँ नृत्य-मुद्रामें दर्शित हैं। चौखटोंके अधोभागमें दोनों ओर पद्मावती देवीकी खड़ी मूर्तियाँ हैं जिनके सिरपर सर्प-फण है । बगल में मंगल-कलश लिये हुई देवी और परिचारिका हैं । इसके आगे अलंकृत मण्डप है।
___मन्दिर नं. २३-३ फुट ५ इंच ऊंचे एक शिलाफलकमें आदिनाथको कृष्ण वर्णकी पद्मासन प्रतिमा उत्कीर्ण है। कहीं-कहींसे पालिश उखड़ गयी है। इसके पीठासनपर संवत् १२१५ का महत्त्वपूर्ण मूर्ति-लेख है। गर्भगृहकी छत पद्मशिलासे अलंकृत है। इसके प्रवेश-द्वारके उत्तरंगपर पाँच बड़े एवं चार मध्यवर्ती कोष्ठकोंमें तथा दोनों ओरकी बाहरी चौखटोंपर ४-४ कोष्ठकोंमें यक्षी-मूर्तियां हैं तथा उनके इधर-उधर नृत्यमुद्रामें हाथ जोड़े हुई देवियाँ हैं। नीचे दोनों ओर भी यक्षी-मूर्तियाँ हैं । कई मूर्तियोंके सिर कटे हुए हैं। उनसे नीचे दोनों ओर मंगल-कलश लिये हुए चार व्यक्ति हैं तथा दो-दो कोष्ठकोंमें यक्षी हैं। आगे मण्डप है।
____मन्दिरके बाह्य भागमें जंघापर रूप-पट्टिका है। उसमें भिन्न-भिन्न रथिकाओंमें कई तीर्थंकरोंकी यक्षी-मूर्तियाँ और विद्या-देवताओंकी मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। शिखरके शेष भागमें वास्तु