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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ ऊपर ११ समुन्नत शिखर हैं। इनमें से कितने मन्दिर नवीन निर्मित हुए हैं और कितने अपने मूल रूपको सुरक्षित रखे हुए हैं, यह कहना कठिन है। मन्दिरके द्वारपर विशाल सिंह बैठे हुए हैं। द्वारके ऊपर तिदरीपर दो हाथी बैठे हैं । इस मन्दिरको उत्तरवाली भित्तिपर गोमुख यक्ष, चक्रेश्वरी यक्षी चतुर्भुजी, धरणेन्द्र-पद्मावती तथा कुछ अन्य यक्षियाँ बनी हुई हैं। ... मन्दिर नं. १६-प्रवेश-द्वारके सिरदलपर पार्श्वनाथकी मूर्ति बनी हुई है। इसके सिरपर फण है । सिरदलके दोनों कोनोंपर कोष्ठकोंमें खड्गासन प्रतिमाएँ हैं। मध्यवर्ती भागमें दो हाथियोंपर इन्द्र बैठे हुए हैं। हाथोंमें कलश हैं। उनके पीछे माला लिये हुई देवियाँ प्रमोदसे पूरित हो चल रही हैं, मानो इन्द्र और देवियाँ भगवान्के अभिषेकके लिए जा रही हों। मन्दिरमें मूलनायक भगवान् महावीरकी २ फुट ६ इंच पद्मासन प्रतिमा है। सिरके ऊपर छत्र हैं। उनके बगलमें पुष्पवर्षी गन्धर्व हैं। कोनोंमें दो खड्गासन प्रतिमाएं हैं। नीचे चमरबाहक हैं। इनके बगलमें दो खड्गासन मूर्तियाँ हैं। एक ओर मातंग यक्ष है और दूसरी ओर सिद्धायिका यक्षी है। पादपीठपर सिंह लांछन अंकित है। . मन्दिर नं. १७-भगवान् ऋषभदेवकी पद्मासनासीन प्रतिमा ३ फुट ४ इंच ऊंचे एक प्रस्तर-खण्डपर उत्कीर्ण है । शीर्ष कोनोंपर पद्मासन मूर्तियां हैं। नीचे चमरेन्द्र बने हुए हैं। उनकी पार्श्व-पट्टिकापर दो-दो खड्गासन मूर्तियाँ हैं। उनसे नीचे बायों ओर गोमुख यक्ष तथा दायीं ओर चक्रेश्वरी यक्षी है। ऋषभदेव प्रतिमाके सिरपर उनकी दीर्घ तपस्याको सूचित करनेवाली जटाएँ हैं। उनके स्कन्धपर भी केश राशि शोभित है। ... दीवारपर तीन कोष्ठक बने हुए हैं। मध्य कोष्ठकके शीर्ष भागपर पद्मासन अर्हन्त-प्रतिमा है। मध्यमें अष्ट मातकाएं हैं। दोनों कोनोंके कोष्ठकोंमें विभिन्न देवियां हैं। नीचे इधर-उधर यक्ष-यक्षो अंकित हैं। वेदीके अधिष्ठानपर सामने चक्रेश्वरी देवीका भव्य अंकन है। मन्दिर नं. १८-तीन दरकी वेदीपर मध्यमें एक शिलाफलकपर भगवान् पद्मप्रभकी पद्मासन प्रतिमा है। दोनों ओर स्तम्भ बने हुए हैं। सिरके ऊपर छत्रत्रय हैं। आकाशचारी देव दोनों ओरसे छत्रोंको सहारा दिये हुए हैं। उनके नीचे ऐरावतके प्रतीक गज उत्कीर्ण हैं। उनसे नीचे चमरवाहक हैं। सिंहासनके सिंहोंके दोनों पाश्ों में दो-दो पद्मासन मूर्तियाँ हैं। वेदीके दो दर खाली हैं। बायीं ओरके स्तम्भपर दो पद्मासन और तीन खडगासन मतियां उत्कीर्ण हैं। इसी प्रकार दायीं ओरके स्तम्भपर पार्श्वनाथको एक खड्गासन मूर्ति है। मूर्ति और फण खण्डित हैं। प्रवेश-द्वारके ऊपर ललाट-बिम्बपर पद्मासन जिन-मूर्ति है। उसको ओर पीठ किये भक्त बैठे हैं। कोई हाथ जोड़े हुए हैं और किसीके हाथमें पूजाकी सामग्री है। दोनों चौखटोंपर देवदेवियोंका अंकन है। मन्दिर नं. १९ –इस मन्दिरके आगे चार स्तम्भोंपर एक मण्डप बना हुआ है। मन्दिरका प्रवेश-द्वार अलंकृत है। वेदीपर एक शिलाफलकमें भगवान् विमलनाथकी भव्य प्रतिमा उत्कीणं है। उसका लांछन सूअर चरण-चौकीपर अंकित है। प्रतिमाके दोनों ओर स्तम्भ बने हुए हैं जिनपर मध्यमें पद्मासन और दोनों ओर खड्गासन मूर्तियाँ बनी हैं। भगवान्के सिरपर छत्र हैं। छत्रदण्डको देव थामे हुए हैं। उनके नीचे गज और उनसे नीचे चमरवाहक हैं। पादपीठपर सामने सिंहोंके बगलमें दोनों ओर दो-दो पद्मासन मूर्तियाँ हैं। - मन्दिर नं. २०-वेदी तीन दरकी है। मध्यमें एक शिलाफलकमें भगवान मनिसव्रतनाथको ३ फुट ११ इंच उन्नत प्रतिमा कायोत्सर्गासनमें स्थित है। भगवान्के सिरके पीछे भामण्डल है।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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