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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थं १३७ मन्दिर नं. ११ - दायीं ओर ३ फुट ११ इंच ऊंचे शिलाफलकमें दो खड्गासन मूर्तियाँ उकेरी हुई हैं । इसमें ऊपरका कुछ भाग खण्डित है। परिकरमें दो छत्र, दो गज, विमानमें माला लिये हुए दो देव, दो पद्मासन मूर्तियाँ और अनेक भक्त स्त्री-पुरुष हाथ जोड़े हुए बैठे हैं । ४ फुट ४ इंच उन्नत एक शिलाफलकमें भगवान् पार्श्वनाथके यक्ष-यक्षी धरणेन्द्र और पद्मावती की सुन्दर मूर्ति है। दोनों ही अलंकारोंसे विभूषित हैं और ललितासनमें आसीन हैं । देवीके दायें हाथमें बिजोरा फल है और बायें हाथमें एक बालक है । यक्षके दक्षिण हस्तमें फल है और वाम हस्त भग्न है । दोनोंके बायें दायें चमरवाहक हैं । नीचे भक्त हाथ जोड़े हुए खड़े हैं । शीर्ष पर सिंहासनपर भगवान् पार्श्वनाथ आसीन हैं । शीर्षके कोनों में पुष्पमाल लिये हुए देव-देवी हैं । यह मूर्ति अत्यन्त आकर्षक है। भावांकन इसमें उच्च कोटिका है । यद्यपि देवियोंमें अम्बिका वात्सल्य की गरिमासे मण्डित देवी मानी जाती है किन्तु यहाँ कलाकारने यह प्रतिष्ठा पद्मावतीको दी है जो वस्तुतः भक्तों के ऊपर सदा अपनी करुणा बरसाती रहती है और इसलिए यह भक्तवत्सला मानी जाती है । गर्भगृहमें वेदीपर खड्गासन प्रतिमा २ फुट १० इंच अवगाहनाकी है । फलकपर दोनों ओर स्तम्भ बने हुए है । दोनों कोनोंपर गज हैं । चमरवाहक चमर लिये हुए खड़े हैं । 1 वेदीकी जगतीपर सामने पद्मावती देवी उत्कीर्ण है । ऊपर शीषंपर फण है। देवी एक हाथमें श्रीफल और दूसरे हाथमें कमण्डलु लिये हुई हैं। इस मन्दिरके आगे चार खम्भोंपर आधारित मण्डप है । द्वार और मण्डप अलंकृत हैं । द्वारपर मिथुन मूर्तियाँ बनी हुई हैं । मन्दिर नं. १२ – एक छोटे गर्भगृहमें भगवान् शान्तिनाथकी २ फुट ७ इंच ऊँची पद्मासन प्रतिमा है । सिरपर छत्र, सिरके पीछे भामण्डल, छत्रके उभय पार्श्वोमें आकाशगामी गन्धर्व माला लिये हुए हैं । भगवान् के दोनों ओर चमरेन्द्र खड़े हैं । मन्दिर नं. १३ - भगवान् चन्द्रप्रभकी २ फुट ८ इंच उन्नत पद्मासन प्रतिमा है जो संवत् १९६७ में प्रतिष्ठित हुई । वेदीपर बायीं ओर १ फुट २ इंच ऊँचे और १ फुट १ इंच चौड़े शिलाफलकपर पद्मासनासीन तीर्थंकर प्रतिमा है । इसके दोनों पावोंमें इन्द्र-इन्द्राणी हैं । दायीं ओर २ फुट ३ इंच शिलाफलकपर खड्गासन तीर्थंकर प्रतिमा है। परिकरमें छत्र, गन्धवं, गज, सिंह और चमरवाहक हैं । इसके दालान में किसी मूर्तिका पादपीठ रखा हुआ है । मन्दिर नं. १४ – भगवान् पार्श्वनाथ श्वेतवर्णं, पद्मासन मुद्रामें विराजमान हैं । अवगाहना १ फुट ८ इंच है तथा इसकी प्रतिष्ठा संवत् १९२७ में हुई है । इस वेदीके उभय पार्श्वोमें एक-एक वेदी है । इनपर श्वेतवर्णं पार्श्वनाथकी पद्मासन प्रतिमा है । मन्दिर नं. १५ - मन्दिर नं. १३-१४-१५ परस्पर मिले हुए हैं। इनमें एकसे दूसरे मन्दिर में जानेके लिए दरवाजे बने हुए हैं । १४-१५ को विभक्त करनेवाले केवल खम्भे हैं। इन दोनों मन्दिरों में लगभग ३० प्राचीन खण्डित अखण्डित मूर्तियां, स्तम्भ, चरण चौकी आदि रखे हुए हैं । इस मन्दिर में तीन दरकी वेदीमें भगवान् पार्श्वनाथकी ३ फुट १ इंच ऊँची कृष्णवर्णं पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसका प्रतिष्ठा काल संवत् १९२७ है । इसके दोनों ओर कृष्ण पाषाणकी २ पद्मासन प्रतिमाएं हैं । ये सभी मन्दिर शान्तिनाथ मन्दिरके अन्दर ही हैं। एक प्रकारसे इन्हें अलग-अलग गर्भगृह कहा जा सकता है । मन्दिरका नाम शान्तिनाथ मन्दिर है । इसके सभी मन्दिरों अथवा गर्भगृहोंके ३-१८
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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