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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ प्रतीकात्मक भव्य अलंकरणोंसे सज्जित हैं। स्तम्भोंकी चौकियां पत्रावलीसे अलंकृत हैं। अर्धमण्डपकी छत कटोरेके आकारकी है, किन्तु छतका कुछ भाग नष्ट हो गया है। छतमें दिलहे बने हुए हैं और उनमें नृत्य और संगीत-समाजका सुन्दर अंकन किया गया है।
महामण्डपका प्रवेशद्वार दर्शनीय है। उसकी चौखटोंके दोनों ओर यक्ष-दम्पती विभिन्न प्रेमातुर मुद्राओंमें अंकित हैं। चौखटके अधोभागमें शासन-देवियोंकी बड़े आकारकी मूर्तियाँ हैं। पद्मावतीके सिरके ऊपर सर्प-फण है जो खण्डित है। देव-देवियोंके अलंकार अत्यन्त कलात्मक ढंगसे अंकित किये गये हैं। कई देवियोंके स्तन और सिर कटे हुए हैं।
द्वारके सिरदलपर मध्यमें प्रथम तीर्थकर आदिनाथकी गरुड़वाहिनी अष्टभुजी चक्रेश्वरी विराजमान है। देवी अपने हाथोंमें चक्र, वज्र, मातुलिंग फल लिये हुए है और एक हाथ अभयमुद्रामें उठा हुआ है। सिरदलके दोनों सिरोंपर पद्मासन जैन तीर्थंकर-प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं। ऊपरके तोरणमें दक्षिण और वाम कोनोंमें नवग्रह उत्कीर्ण हैं। सिरदलके ऊपर बनी हुई पट्टीमें तीर्थंकर माताके सोलह स्वप्नोंका अंकन किया गया है।
मन्दिर जीर्ण-शीर्ण दशामें हैं। इस मन्दिरकी मूलनायक प्रतिमा भगवान् ऋषभदेवकी रही होगी। इस अनुमानके कई कारण हैं। (१) प्रवेश-द्वारके ललाट-बिम्बपर गरुडारूढ़ा अष्टभुजी चक्रेश्वरीकी मूर्ति उत्कीर्ण है जो ऋषभदेव तीर्थंकरकी यक्षी है। (२) यहाँके सभी जैन मन्दिरोंमें भगवान् ऋषभदेवकी ही प्रतिमा मूलनायकके स्थानपर विराजमान है। यहां तक कि पाश्वनाथ मन्दिरमें भी मूलनायकके रूपमें ऋषभदेवकी ही प्रतिमा विराजमान थी, जिसका चिह्न वृषभ अब भी पार्श्वनाथकी चरण-चौकीपर अंकित है।
यहाँ दो शिलालेख प्राप्त हुए हैं जो अस्पष्ट होनेके कारण पढ़े नहीं जा सके। इनमें से एक लेख एक स्तम्भपर उत्कीर्ण है। इसमें केवल 'नेमिचन्द्र' शब्द पढ़ा जा सका है। अक्षरोंकी शैलीसे यह १०वीं शताब्दीका सिद्ध होता है। इसी प्रकार दूसरे लेखमें 'स्वस्ति श्री साधु पालना' शब्द पढ़े जा सके हैं । सन् १८७६-७७ में यहाँ खुदाईमें १३ जैन मूर्तियाँ उपलब्ध हुई थीं। जैन मन्दिरोंका समूह
___ गांवके दक्षिण-पूर्व में जैन मन्दिरोंका समूह है। वे मन्दिर एक आधुनिक चहारदीवारीसे घिरे हैं। आदिनाथ, पाश्र्वनाथ और शान्तिनाथ मन्दिरोंके अतिरिक्त कई आधुनिक जैन मन्दिर हैं जो प्राचीन मन्दिरके ध्वंसावशेषोंपर बनाये गये हैं। तीर्थंकरोंकी अनेक प्राचीन मूर्तियाँ मन्दिरोंमें तथा अहातेमें खुले संग्रहालयके रूपमें रखी हुई हैं। इनमें से कई मूर्तियोंपर तिथिवाले लेख अंकित हैं।
यहाँके हिन्दू मन्दिरों और जैन मन्दिरोंमें वास्तुकलाकी दृष्टिसे समानता पायी जाती है। इसका कारण सम्भवतः यह है कि दोनों धर्मोके मन्दिर-निर्माता स्थपति एक ही थे। इन दोनों धर्मोके मन्दिरोंमें जो अन्तर है, वह सूक्ष्म दृष्टिसे ही पकड़में आ पाता है। हिन्दू मन्दिरोंमें प्रकाशके लिए खिड़कियोंवाले पक्षावकाश बनाये गये, जबकि जैन मन्दिरोंमें छेदोंवाले झरोखे बनाये गये हैं । यहाँके नवीन जैन मन्दिरोंमें प्राचीन जैन मन्दिरोंकी सामग्रीका उपयोग हुआ है।
(१) शान्तिनाथ मन्दिर-पार्श्वनाथ मन्दिरके निकट ही दक्षिणमें शान्तिनाथ मन्दिर है। इसका निर्माण अनेक प्राचीन जैन मन्दिरोंकी सामग्रीसे किया गया है। किन्तु पुरातत्त्ववेत्ता कनिधमकी मान्यता है कि इस मन्दिरमें शान्तिनाथकी जो मूर्ति विराजमान है, वह अपने मूल स्थानपर ही है । फलतः यह मन्दिर ११वीं शताब्दीमें निर्मित होना चाहिए। इससे लगता है कि