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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ शान्तिनाथ मन्दिर प्राचीन है। वह जीर्ण-शीर्ण हो गया था। १९वीं शताब्दीमें प्राचीन जैन मन्दिरोंकी सामग्रीका उपयोग करके इसका जीर्णोद्धार किया गया। किन्तु चूना-सफेदीके कारण मन्दिरकी प्राचीनता दब गयी और यह आम धारणा बन गयो कि मन्दिर १९वीं शताब्दीमें निर्मित हुआ है। इसमें तीन गर्भगृह तो अभी तक अपने मूल रूपमें सुरक्षित हैं। __इस मन्दिरमें मूलनायक सोलहवें तीर्थंकर भगवान् शान्तिनाथकी १६ इंच ऊंची भव्य प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा कायोत्सर्गासनमें बादामी वर्णकी है। इसकी चरण-चौकीपर एक पंक्तिका लेख है, जिसके अनुसार इस मूर्तिकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत् १०८५ में आचक्षके पुत्र श्रिय ठाकुर और देवधरके पुत्र श्री शिवि एवं श्री चन्दयदेवने करायी थी। चरण-चौकीके मध्यमें हरिण लांछन है। प्रतिमाके सिरके ऊपर छत्रत्रय विभूषित है। सिरके दोनों पाश्ॉमें हाथीपर कलश लिये हुए इन्द्र स्थित हैं। इनके अतिरिक्त दोनों ओर पांच-पांच पद्मासन और एक-एक खड्गासन प्रतिमाएं बनी हुई हैं। चमरेन्द्र हाथमें चमर लिये हुए भगवान्की सेवामें रत हैं। चरणोंके दोनों पार्यों में भक्त श्रावक-श्राविका जो सम्भवतः प्रतिष्ठाकारक दम्पती हैं, हाथ जोड़े बैठे हैं। किन्तु उनके सिर खण्डित हैं। मूर्तिका अभिषेक करनेके लिए लोहेकी सीढ़ियाँ दोनों ओर रखी हुई हैं। मूलनायकके दोनों पार्यों में पद्मासन और खड्गासन मुद्रामें अनेक छोटी मूर्तियां हैं। गर्भगृहमें बायीं और दायीं ओरकी दीवारमें ६-६ पैनल बने हुए हैं, जिनमें तीर्थंकर-मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। मूलनायकके परिकरमें दो मूर्तियाँ हमारा ध्यान बरबस अपनी ओर आकृष्ट कर लेती हैं। एक तो है पाश्वनाथकी छोटी पद्मासन प्रतिमा। इसमें आसनसे लेकर फणावलि तक सर्पका गुंजलक बड़ा मनोरम है। दूसरी मूर्ति है आदिनाथकी। इसमें भगवान्के भव्य रूपको जटाओंने अत्यधिक निखार दिया है। इसके पीठासनपर नवग्रहोंका अंकन मिलता है। मन्दिर नं. २-एक शिलाफलकमें ४ फुट २ इंच उन्नत महावीरकी पद्मासन प्रतिमा है। परिकरमें पुष्पवर्षी गन्धर्व, हाथीपर कलश लिये हुए इन्द्र, चमरवाहक, यक्ष और यक्षी हैं । पीठिकापर सिंह लांछन है । अधोभागमें सिद्धायिका ( महावीर भगवान्की यक्षी ) अंकित है। _मन्दिर नं. ३-खड्गासन दो तीर्थंकर-मूर्तियाँ ३ फुट ७ इंच आकारको हैं। शीर्षपर ३ खड्गासन और इधर-उधर ६-६ तीर्थंकर-मूर्तियां हैं। दोनों मूर्तियोंके परिकरमें छत्र, गन्धर्व, गजारूढ इन्द्र कलश लिये हए. चमरेन्द्र, दो-दो श्रावक-श्राविकाएं हैं। एक मतिमें एक श्रावक नहीं है तथा एक श्रावकका सिर खण्डित है। इस गर्भगृहमें और भी कई मूर्तियाँ हैं। इसका शिखर अत्यन्त कलापूर्ण है। मन्दिर नं. ४-कृष्ण पाषाणकी ३ फुट ६ इंच ऊँची पार्श्वनाथकी पद्मासन प्रतिमा है। बायीं ओर एक खण्डित स्तम्भमें १७ मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । सम्भवतः इसमें २४ तीर्थंकरोंकी मूर्तियाँ रही होंगी। दायीं ओर १ फुट ५ इंच ऊँचे पाषाण-फलकमें मूर्तियां बनी हुई हैं। ___ मन्दिर नं. ५–पाँच फुटके शिलाफलकमें पार्श्वनाथकी खड्गासन प्रतिमा उत्कीर्ण है । फण खण्डित है। दोनों कोनोंमें ऊपरकी ओर ३-३ गन्धर्व पुष्पमाला लिये हुए और हाथीपर कलश लिये हुए इन्द्र हैं। दोनों ओर २-२ खड्गासन मूर्तियां और चमरेन्द्र हैं तथा चरणोंके पास दोनों ओर हाथ जोड़े हुई श्राविकाएँ प्रतिमाके परिकरमें हैं। १. संवत् १०८५ श्रीमदाचार्य पुत्र श्री ठाकुर श्री देवधर सुत श्री शिवि श्री चन्द्रयदेवः श्रीशान्तिनाथस्य प्रतिमाकारि।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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