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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
१३३ मन्दिर नौवींसे बारहवीं शताब्दी तक निर्मित हुए थे, यह बात विश्वनाथ मन्दिरके मण्डपकी दीवारमें लगे हुए एक शिलालेखसे प्रमाणित होती है। पार्वती मन्दिर, विश्वनाथ मन्दिरके दक्षिणपश्चिममें निकट ही स्थित है। इसके निकट छतरपुर महाराज द्वारा बनवाया हुआ लगभग सौ वर्ष प्राचीन एक मन्दिर है। लक्ष्मण मन्दिर पार्वती मन्दिरके दक्षिणमें है और आयाममें विश्वनाथ मन्दिरके समान है। एक लेखके अनुसार यह मन्दिर यशोवर्मन ( अपरनाम लक्ष्मवर्मन ) ने बनवाया था। यह लेख मण्डपकी दीवारमें एक शिलापर उत्कीर्ण है। यह लेख सन् ९५३-५४ का सिद्ध होता है। लक्ष्मण मन्दिरके पास ही मातंगेश्वर मन्दिर है। इस मन्दिरमें ३ फुट ८ इंच व्यासका और ८ फुट ४ इंच ऊँचा अत्यन्त चमकीला विशालकाय लिंग स्थापित है। खजुराहोके हिन्दू मन्दिरोंमें यह मन्दिर सर्वाधिक पूज्य माना जाता है। मातंगेश्वर मन्दिरके सामने वराह मन्दिर बना हुआ है। इस मन्दिरमें ८ फुट ९ इंच लम्बी और ५ फुट ९ इंच ऊँची एक वराह मूर्ति है जो एक ही पाषाणसे निर्मित है । पूर्वी समूह
इस समूहमें हनुमान मन्दिर, ब्रह्मा मन्दिर, वामन मन्दिर, जवारी मन्दिर ये तो हिन्दू मन्दिर हैं और घण्टई मन्दिर, आदिनाथ मन्दिर, पार्श्वनाथ मन्दिर और शान्तिनाथ मन्दिर ये चार जैन मन्दिर हैं। दक्षिणी समूह __ मन्दिरोंके दक्षिणी समूहमें दुलादेओ मन्दिर और चतुर्भुज मन्दिर हैं।
यहाँ जैन मन्दिरोंके सम्बन्धमें कुछ प्रकाश डालना उपयोगी होगा।
घण्टई मन्दिर-यह मन्दिर गाँवके दक्षिणमें है। इस मन्दिरका यह नाम सम्भवतः इसलिए पडा है कि इसके खम्भोंपर घण्टा और जंजीरके अलंकरण उत्कीणं हैं। यह मन्दिर द शताब्दीमें निर्मित हुआ था। यहाँके संग्रहालयमें इसी कालकी कुछ मूर्तियां रखी हुई हैं, जिनके अभिलेखमें 'घण्टई' शब्द अंकित है। इससे प्रतीत होता है कि इस मन्दिरका 'घण्टई' नाम प्रारम्भसे प्रचलित रहा है। यह मन्दिर ४२ फुट १० इंच पूर्वसे पश्चिमकी ओर और २१ फुट ६ इंच उत्तरसे दक्षिणकी ओर था। इसका द्वार पूर्वाभिमुखी है। जैन समूहके मन्दिरोंसे यह १ कि. मी. की दूरीपर है । प्रारम्भमें इस मन्दिरमें अर्धमण्डप, महामण्डप, अन्तराल और गर्भगृह समाविष्ट थे। एक प्रदक्षिणापथ भी था। किन्तु अब तो उसको बाहरी दीवार नष्ट हो चुकी है। केवल अर्धमण्डप और महामण्डप ही अवशिष्ट हैं। इसकी रचना-शैली पार्श्वनाथ मन्दिरसे बहुत कुछ मिलती-जुलती है। पहले इस मन्दिरमें २४ स्तम्भ थे और प्रत्येकमें एक-एक दीवारगीर बनी हुई थी। सम्भवतः इनके निर्माणका उद्देश्य प्रत्येकमें एक-एक तीर्थंकर-मूर्ति स्थापित करना हो। किन्तु अब तो इसमें २० स्तम्भ हो अवशिष्ट हैं । ये १४ फुट ६ इंच ऊंचे हैं।
इन स्तम्भोंकी अलंकरण-सज्जा और शिल्प-सौन्दर्य अनठा है। इन स्तम्भोंपर कीर्तिमखोंसे किंकणीजाल और मुक्तामालाएं झूल रही हैं। इनका अंकन विविध रूपोंमें हुआ है-कहीं क्षुद्र घण्टिकाएँ मालाओं में उलझ रही हैं, कहीं मालाएँ परस्पर गुंथ रही हैं । वृत्ता!में साधुओं, विद्याधरों और मिथुनोंकी मूर्तियाँ बनी हुई हैं। घण्टई मन्दिरके स्तम्भोंकी इस अलंकरण-कलाकी उपमा सम्भवतः अन्यत्र कहीं नहीं है।
इन स्तम्भोंको चौकियाँ अठपहलू और शीर्ष गोलाकार हैं। अर्धमण्डपके चारों स्तम्भ