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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
१३१ खजुराहो मार्ग और अवस्थिति
खजुराहो मध्यप्रदेशके छतरपुर जिले में स्थित है और अत्यन्त कलापूर्ण भव्य मन्दिरोंके कारण विश्व-भरमें प्रसिद्ध पर्यटन-केन्द्र है । एक हजार वर्ष पूर्व यह चन्देलोंकी राजधानी था, किन्तु आज तो यह एक छोटा-सा गाँव है जो खजुराहो सागर अपरनाम निनौरा तालनामक झोलसे दक्षिण-पूर्वी कोनेमें बसा है। यह स्थान महोबासे ५५ कि. मी. दक्षिणकी ओर, हरपालपुरसे ९८ कि. मी. तथा छतरपुरसे ४६ कि. मी. पूर्वकी ओर, सतनासे १२० कि. मी. व पन्नासे ४३ कि. मी. पश्चिमोत्तर दिशामें है। इन सभी स्थानोंसे खजुराहो तक पक्की सड़क है और नियमित बस-सेवा है। रेलसे यात्रा करनेवालोंके लिए हावडा-बम्बई लाइनपर सतना स्टेशनसे तथा झांसीमानिकपुर लाइनपर हरपालपुर और महोबासे यहाँके लिए बसें नियमित चलती हैं। इसी प्रकार इलाहाबाद, कानपुर, झांसी, ग्वालियर, बीना, सागर, भोपाल, जबलपुर आदिसे बस द्वारा छतरपुर होते हुए खजुराहो पहुँच सकते हैं।
इण्डियन एयर लाइन्स कारपोरेशनकी हवाई सेवा दिल्ली-आगरा होते हुए खजुराहो जानेके लिए प्रतिदिन उपलब्ध है । जैन बन्धुओंके ठहरनेके लिए बस-अड्डेसे ३ कि. मी. दूर क्षेत्रपर धर्मशालाएं हैं । पर्यटकोंके लिए पर्यटक बँगला (श्रेणी १), विश्राम-भवन, पर्यटक बँगला (श्रेणी २) तथा होटल आदिमें ठहरनेकी सुविधा है। यहाँका बस अड्डा खजुराहो सागर (निनौरा ताल) के किनारे अवस्थित है। इसके सामने ही शैव-वैष्णव मन्दिरोंका पश्चिमी समूह, संग्रहालय, होटल और छोटा-मोटा बाजार हैं। नामकरण
भारतीय वास्तु और शिल्पकलाके क्षेत्रमें खजुराहोका विशिष्ट स्थान है। चन्देलकालीन उत्कृष्ट शिल्पकलाका निदर्शन यहाँ मिलता है । खजुराहो नामके सम्बन्धमें एक किंवदन्ती प्रचलित है कि प्राचीनकालमें इस नगरके चारों ओर पक्की दीवार थी और इसके मुख्य द्वारपर सोनेके दो खजूरके पेड़ लगाये हुए थे। इस किंवदन्तीका क्या आधार है, यह ज्ञात नहीं हो सका है । सम्भव है, यह नगर कभी खजूरके वृक्षोंके बीच में बसा हो और इन वृक्षोंके बाहुल्यके कारण नगरका नाम खर्जूरपुर पड़ गया हो । वर्तमानमें तो यहाँ खजूरके पेड़ बहुत विरल हैं। शिलालेखों और प्राचीन इतिहास-ग्रन्थोंमें इस नगरके कई नाम उपलब्ध होते हैं जैसे खजूरवाटिका, खजूरपुर, खजुरा, खजुराहा । वि. सं. १०५६ (सन् ९९९) के गण्डदेवके एक शिलालेखमें संवत्के पश्चात् निम्न वाक्य उल्लिखित है-'श्री खजूरवाटिका राजा धंगदेव राज्ये ।। ___ अबू रिहान नामक मुस्लिम इतिहासकारने सन् १०३१ में इसका नाम खजूरपुर और इसे जेजाहुतिको राजधानी लिखा है। इसका समर्थन दो शिलालेखोंसे भी होता है। इनमें से एक है कोतिवर्माके कालका और दूसरा परमर्दिके कालका है। पहला शिलालेख महोबामें उपलब्ध हुआ था, जिसमें इस प्रदेशका नाम जेजाख्य अथवा जेजाभुक्ति लिखा है। दूसरेमें इसका नाम जेजाकभुक्ति दिया हुआ है। इसीका अपभ्रंश होते-होते जेजाकहुति और जेजाहुति बन गये । इब्न बतूताने इसे खजुरा लिखा है और लिखा है-'वहाँ एक मील लम्बी झील है, जिसके चारों ओर मन्दिर बने हुए हैं। उनमें मूर्तियां रखी हुई हैं।' बतूताने सन् १३३५ में यहाँकी यात्रा की थी। उस समय खजुराहो और अजयगढ़पर चन्देल राजाओंका अधिकार था, जबकि कालिंजर और महोबापर मुसलमानोंका अधिकार हो चुका था।