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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ १२९ क्षेत्रपर अतिशय इस क्षेत्रके अतिशयोंके बारेमें जनतामें अनेक प्रकारको किंवदन्तियां प्रचलित हैं। मन्दिरसे लगभग १०० मीटर दूर एक बावड़ी है। उसके पास ही एक खेत है। कुछ वर्ष पूर्व इस खेतके मालिकको हल जोतते समय एक जैन मूर्ति मिली थी। खेतके बीचमें एक पाषाण-खण्ड पड़ा हुआ है। जब भी खेतका मालिक इस पाषाणको वहाँसे हटाकर अन्यत्र डाल देता है, तभी उसका परिवार बीमार पड़ जाता है। जनतामें धारणा है कि उस स्थानके नीचे कोई गर्भगृह है और यह वहांको मूर्तियों या किसी मूर्तिका अतिशय है। इस प्रदेशकी जनतामें एक अनुश्रुति यह भी प्रचलित है कि एक बार मुगल बादशाहकी आज्ञासे कुछ धर्मान्ध सैनिकोंने यहाँको मूर्तियोंको तोड़नेके लिए हथियार उठाये। तभी क्षेत्ररक्षक देवने उन्हें कोलित कर दिया। उनको छुटकारा तभी मिला, जब उन्होंने इस प्रकारके दुष्कृत्य करनेसे तोबा की। कहते हैं, सैनिक यहाँ बंधे थे, इसलिए तबसे इस स्थानका नाम भी बन्धा पड़ गया। संवत् १८९० में एक बार एक मूर्तिकार एक मूर्ति बेचनेके लिए बम्हौरी होकर जा रहा था। जब वह बम्हौरीमें बड़े पीपलके निकट पहुंचा तो उसकी गाड़ी अचल हो गयी। गाड़ी अनेक प्रयत्न करनेपर भी नहीं चली। किसीने बम्हौरीके सवाई सिंघईजीसे वह मूर्ति खरीदकर बेचारे मूर्तिकारका संकट दूर करनेका आग्रह किया। सवाई सिंघईजी मूर्ति खरीदनेको तो राजी हो गये किन्तु एक ही शर्तपर कि मूर्ति बन्धाजी पहुँच जाये। आश्चर्यकी बात कि गाड़ी बन्धाजोकी ओर मोड़ो गयो तो मजेसे चलने लगी और बन्धाजी पहुंच गयी। वह मूर्ति आज भी बड़े मन्दिरमें विराजमान है। सन् १९५३ में आचार्य महावीरकीर्तिजी महाराजका संघके साथ यहां पदार्पण हुआ। उस समय यहाँका कुआँ सूखा हुआ था। इससे बड़ी असुविधा हो रही थी। क्षेत्रके अधिकारियोंने आचार्यश्रीसे इस सम्बन्धमें निवेदन किया। तब आचार्यश्रीने भगवान् अजितनाथका अभिषेक कराया और गन्धोदक लेकर कुएं में डाल दिया। देखते-देखते कुएंमें जल भर गया। इस घटनाके प्रत्यक्षदर्शी अनेक लोग आज भी विद्यमान हैं। यहाँ अनेक जैन और जैनेतर व्यक्ति अब भी अपनी मनोकामनाओंकी पूर्तिके लिए आते रहते हैं। झाँसीवालोंकी धर्मशाला सेठानीकी मनोकामना पूर्ण होनेपर ही यहां निर्मित करायी गयी। इस प्रकार यहाँ अनेक चमत्कारपूर्ण घटनाएं होती रहती हैं जिनके कारण इस प्रदेशकी जनता इस क्षेत्रके प्रति अत्यधिक श्रद्धा रखती है और इसे अतिशय क्षेत्र मानती है । पुरातत्व यह क्षेत्र तथा इसके आसपासका समूचा प्रदेश पुरातत्त्वको दृष्टिसे अत्यन्त समृद्ध है। इस प्रदेशमें खेतोंमें, सरोवरोंमें और प्राचीन भवनों या देवायतनोंके अवशेषोंमें पुरातत्त्वकी जैन सामग्री विपुल परिमाणमें बिखरी हुई है। इस क्षेत्रके निकट ही एक टीला है, जिसे लोग 'धर्मटीला' कहते हैं । निकटवर्ती ग्रामोंके कुछ उत्साही लोगोंने कुछ वर्ष पूर्व इस टीलेकी खुदाई की। परिणामस्वरूप इसमें से कुछ प्राचीन जैन मूर्तियाँ निकलीं। वे क्षेत्रपर स्थित संग्रहालयमें रख दी गयीं। यदि इस टीलेकी पूरी तरह खुदाई की जाये तो अब भी इसमें से जैन सामग्री मिलनेकी पर्याप्त सम्भावना है। ३-१७
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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