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________________ १२७ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ हुआ है । इस लेखमें संवत् ५८८ गलत है। इसके तीन कारण हैं-(१) उस समय यहाँ मदनसागर नहीं था। उसका निर्माण १२वीं शताब्दीमें हुआ था। (२) उस समय गोलापूर्व जाति नहीं थी। (३) इस लेखकी लिपिसे यह लेख १६वीं शताब्दीका लगता है। अतः यह संवत् १५८८ होना चाहिए। दर्शनीय स्थल यहाँ पहली पहा पर छह छोटे-छोटे मन्दिर बने हुए हैं। यहाँसे दूसरी पहाड़ीपर जानेपर एक सरोवर दिखाई पड़ता है जो बड़ा कोटा सरोवर कहलाता है। किवदन्तीके अनुसार इसी सरोवरके किनारे किसी शिलापर पाड़ाशाहका राँगा चाँदी हो गया था। इस पहाड़ीपर तथा आसपास प्राचीन मन्दिरोंके अवशेष बिखरे पड़े हैं। ये अवशेष विशाल भूभागमें बिखरे हुए हैं। इससे ऐसा लगता है कि यहाँ कभी अनेक जिनालय रहे होंगे जो कालक्रमसे क्रूर दाढ़ोंमें फंसकर अथवा धर्मोन्मादियोंके हाथों विनष्ट हो गये। यहाँको पहाड़ियोंमें कुछके नाम हैं मुड़िया, रिछारी वन्दरोंई, सुनाई, मड़गुल्ला आदि । इन नामोंसे ही प्रतीत होता है कि किसी जमानेमें यहां भयंकर जंगल थे, जहाँ रीछ, बन्दर, भेड़िये आदि जंगली जानवर रहते थे। इन सभी स्थानोंपर मन्दिरोंके शेष मिलते हैं। यह बह काल था जब लोगोंका आवागमन यहाँ कम हो गया था। धीरे-धीरे मन्दिर धराशायी हो गये और मूर्तियाँ मलबेमें या झाड़ियोंमें दब गयीं। इसी कालमें शान्तिनाथ भगवान्की विशाल मूर्ति भी खण्डहरोंमें पड़ी रही और लोग मूड़ादेव कहा करते थे। जैन समाज इस जैन केन्द्रको भूल ही चुका था। ग्रामके चरवाहोंसे पता लगनेपर संवत् १८८४ में कुछ उत्साही धर्मप्रेमी बन्धु वहाँके ग्रामवासियोंके सहयोगसे शान्तिनाथ भगवान्की मूर्ति तक पहुंचे। उन्होंने समाजके सहयोगसे वहाँ तक जानेका मार्ग बनवाया और इस क्षेत्रको पुनः प्रकाशमें लाये । यहाँ दर्शनीय वस्तुओंमें मदनसागर और एक बावड़ी है जो मदनवेरके नामसे प्रसिद्ध है।। धर्मशालाएँ यहाँकी धर्मशालाओंमें १०० कमरे बने हुए हैं। धर्मशालाओंमें बिजली है, पक्के कुएंमें मोटर लगी हुई है । क्षेत्र तक पक्की सड़क बनी हुई है। क्षेत्रस्थित संस्थाएँ ... वर्तमानमें क्षेत्रपर निम्नलिखित संस्थाएं हैं-शान्तिनाथ सरस्वती भवन, शान्तिनाथ संस्कृत विद्यालय एवं छात्रावास, शान्तिनाथ व्रती आश्रम, शान्तिनाथ महिलाश्रम, शान्तिनाथ दिगम्बर जैन संग्रहालय । क्षेत्र तथा सभी संस्थाओंको प्रबन्धकारिणी कमेटी एक है किन्तु संग्रहालयकी कमेटी पृथक् है। बन्धा स्थिति और मार्ग __ श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र बन्धा, मध्यप्रदेशके टीकमगढ़ जिलेमें बम्हौरी-बराना नामक ग्रामसे दस किलोमीटर दूर दक्षिणकी ओर सुरम्य पहाड़ियोंके बीचमें स्थित है। टीकमगढ़से निवाड़ी होते हुए झाँसी जाते समय मार्गमें बम्हौरी-बराना पड़ता है। टीकमगढ़से बन्धा ५० कि. मी. दूर है। इसका पोस्ट आफिस बम्हौरी-बराना है।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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