________________
मध्यप्रदेश के दिगम्बर जैन तीर्थं
१२५
६. बाहुबली मन्दिर - प्रथम कामदेव बाहुबली स्वामीकी श्वेत मकराने की प्रतिमा कायोत्सर्गासन में विराजमान है । मूर्तिपर पारम्परिक माधवी लताएँ लिपटी हुई हैं । मूर्तिको अवगाहना ७ फुट है तथा इसका कमलासन २ फुट २ इंच ऊंचा है। इसकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत् २०१४ में हुई थी।
७. भूगर्भ जिनालय - नीचे कुछ सीढ़ियाँ उतरकर भूगर्भ में एक चबूतरेपर मूर्तियाँ हैं, जिनमें २० पाषाण की, ५१ धातु की, १ मेरु धातुकी और ४ चरणचिह्न हैं । इनमें से कई मूर्तियाँ जीवराज पापड़ीवाल द्वारा संवत् १५४८ में प्रतिष्ठित की हुई हैं ।
मानस्तम्भ - बाहुबली मन्दिरके सामने लाल पाषाणके दो मानस्तम्भ हैं । ये एक ही शिलासे निर्मित हैं । इनके अभिलेखानुसार इनकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत् १०१३ में हुई थी । सम्भवतः उस कालमें यहाँ एकाधिक मन्दिर रहे होंगे, जिनके सामने ये मानस्तम्भ निर्मित किये गये थे । यह भी सम्भव है कि ये मानस्तम्भ निकटकी पहाड़ीपर निर्मित मन्दिरों के सामने बने हों । मन्दिर ध्वस्त हो गये, तब उन्हें वहाँसे हटाकर भक्त श्रावकोंने संवत् १९५३ में यहाँ लाकर स्थापित कर दिया । इस सम्भावनाकी कल्पनाका तर्कसंगत आधार यह है कि जब यहाँ शान्तिनाथ जिनालयका निर्माण हुआ, उस समय कोई पूर्ववर्ती जिनालय यहाँ नहीं था । जिनालय के अभावमें अकेले मानस्तम्भों की कल्पना नहीं की जा सकती । यहाँ जिनालय न होनेका मुख्य हेतु यह है कि यहाँ उस कालके अवशेष उपलब्ध नहीं होते, न जिनालय ही प्राप्त होते हैं । अवशेष उपलब्ध होते हैं पहाड़ीपर। अतः ये मानस्तम्भ भी वहीं के होने चाहिए। किन्तु जो मूर्तियाँ अब तक प्राप्त हुई हैं, उनमें से कोई मूर्ति संवत् १०१३ की नहीं मिली । सम्भव है, भविष्यमें संवत् १०१३ या उसके पूर्वकालकी कोई मूर्ति यहाँ मिल जाये ।
उत्तर दिशा के मानस्तम्भको आधार-चौकी ६ फुट ९ इंच तथा मानस्तम्भ १२ फुट ऊँचा है । इसके अधोभागमें चारों दिशाओंमें क्रमशः चक्रेश्वरी, अम्बिका, सरस्वती और पद्मावतीकी मूर्तियाँ बनी हुई हैं । इनसे ऊपर एक खड्गासन तीर्थंकर मूर्ति है। इससे कुछ ऊपर चारों दिशाओं में चार पद्मासन अन्त प्रतिमाएँ बनी हुई हैं । शीषं वेदीपर चार तीर्थंकर मूर्तियाँ विराजमान हैं ।
दूसरे मानस्तम्भकी रचना भी प्रायः इसीके समान है । अन्तर इतना है कि इसकी चौकी ७ फुट ऊँची है तथा मानस्तम्भकी ऊँचाई ११ फुट है ।
पहाड़ीके मन्दिर - क्षेत्रके दक्षिण द्वारसे निकलकर लगभग दो फर्लांग कच्चा मार्ग तय करनेपर एक पहाड़ी टीलेपर छह लघु मन्दिर या मन्दरियां मिलती हैं । इनमें से दो मन्दिरोंमें मदनकुमार और विष्कंवल मुनियोंके हलके गुलाबी वर्णके चरण-चिह्न बने हुए हैं। कहा जाता है कि इन दोनोंने इसी स्थानपर निर्वाण प्राप्त किया था । इन चरणोंका आकार १० इंच है। इनकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत् २०२४ में मार्ग शुक्ला १५ को की गयी । शेष चार मन्दिरोंमें भी चरण-चिह्न हैं। ये श्वेतवर्ण हैं और इनकी लम्बाई ७ इंच है ।
सिद्धों की गुफा – क्षेत्र से लगभग २ कि. मी. दूर पर्वतोंके मध्य एक विशाल गुफा है जो सिद्धोंकी गुफा कहलाती है । यहीं झालर की टौरिया है।
संग्रहालय – अहार क्षेत्रपर एक संग्रहालय है । सन् १९९३ में यहाँ खुदाई करायी गयी थी जिसमें सैकड़ों मूर्तियाँ और उनके खण्ड निकले थे । वे सब तथा निकटवर्ती स्थानोंसे उत्खननमें प्राप्त पुरातन सामग्री यहाँ सुरक्षित हैं । इस सामग्री में पुरातत्त्व और कलाकी दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण १२२७ कलाखण्ड सम्मिलित हैं । इन कलाखण्डों में तीर्थंकर मूर्तियाँ, यक्ष-यक्षीकी मूर्तियाँ, स्तम्भ,