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________________ १२४ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ उपस्थ, इन्द्रिय तथा पैरोंके अंगूठे खण्डित हैं। बायाँ हाथ पुनः जोड़ा हुआ है। मूर्ति-लेखका बहुभाग खण्डित है। इस मूर्तिपर बकरेका लांछन है। पालिश मटियाले रंग या स्वर्णकी है। इसके पाठपीठपर जो लेख उत्कीर्ण है, उसका आशय इस प्रकार है श्री रल्हणकी नवविवाहिता पत्नीका नाम गंगा था। उसके तीन पुत्र उत्पन्न हुए। उनमें से दो छोटे भाइयोंके स्वर्गवासके कारण बड़े भाईके मनमें संसारसे निर्वेद हो गया। धन, जीवन और यौवनको क्षणभंगुर समझकर उसने अपना सम्पूर्ण धन आत्म-हितके लिए व्यय किया। उसने ही इस मूर्तिका निर्माण कराया। इसकी प्रतिष्ठा भगवान् शान्तिनाथ-मूर्तिके साथ ही संवत् १२३७ में हुई थी। भगवान् शान्तिनाथके दायें पार्श्वमें भगवान् अरहनाथको मकराना पाषाणकी १० फुट ऊंची श्यामवर्ण प्रतिमा विराजमान है। संवत १२३७ में शान्तिनाथ भगवानके साथ जो मति प्रतिष्ठित की गयी थी, उसे आततायियोंने खण्डित कर दिया। तब सन् १९५८ में प्रान्तके जैन समाजने यह मूर्ति मंगवाकर प्रतिष्ठित की। ___इस गर्भगृहके बाहर चार वेदियोंमें चार प्राचीन प्रतिमाएं हैं। मन्दिरके हॉलमें चारों ओर बरामदे हैं और दीवारोंमें वेदियाँ बनी हुई हैं। इनमें तीन चौबीसीकी ७२ मूर्तियाँ और विदेह क्षेत्रके २० तीर्थंकरोंकी मूर्तियां हैं। इस प्रकार कुल ९२ मूर्तियाँ हैं। सभी मूर्तियाँ पद्मासन हैं और प्रत्येककी अवगाहना १ फुट ७ इंच है। इस मन्दिरके शिखरको शुकनासिकापर एक रथिकामें ५ फुट ऊंची खड्गासन मूर्ति बनी २. महावीर मन्दिर-संग्रहालयके ऊपर यह मन्दिर बना हुआ है। इसमें भगवान् महावीरकी श्वेतवर्ण १ फुट १० इंच (मय आसन ) अवगाहनावाली पद्मासन मूर्ति मूलनायकके रूपमें विराजमान है। इसकी प्रतिष्ठा संवत् २५०० में की गयी। यहाँ ३ पाषाण और १ धातुकी मूर्तियां हैं। इनमें से एक मूर्ति संवत् १७१३ की है। ३. पार्श्वनाथ मन्दिर-इसमें भगवान् पाश्वनाथकी सिलहटी वर्णकी २ फुट २ इंच ऊंची पद्मासन मूर्ति विराजमान है। इसके अतिरिक्त दो वेदियां और हैं। बायीं ओरकी वेदीमें पाश्वनाथ भगवान्की सिलहटी वर्णकी १ फुट ८ इंच ऊंची पद्मासन प्रतिमा है। फणके ऊपर दोनों पाश्र्वोमें पुष्पवर्षा करते हुए नभचारी देव दिखाई पड़ते हैं। उनसे नीचे एक-एक गज बना हुआ है। नीचे एक-एक पद्मासन मूर्ति है । अधोभागमें भगवान्के दोनों ओर चमरवाहक इन्द्र खड़े हैं । ___ इसके आगे भगवान् नेमिनाथकी श्वेतवर्ण १ फुट २ इंचकी मूर्ति रखी हुई है। दायों वेदीमें कत्थई वर्णकी १ फुट ६ इंच ऊँची पार्श्वनाथकी पद्मासन मूर्ति है। प्रतिष्ठा-काल संवत् १८६९ है। इसके आगे पार्श्वनाथकी श्वेत मूर्ति है। ४. मेरु-मन्दिर-संग्रहालयके बगलमें यह मन्दिर स्थित है। तीन परिक्रमावाली कटनियाँ बनी हुई हैं। वेदीमें कृष्ण पाषाणकी १ फुट ७ इंच अवगाहनावाली पद्मासन मूर्ति है। मूर्तिके पादपीठपर लेख या लांछन कुछ भी नहीं है। उसके आगे १ फुट ऊँची पुष्पदन्त भगवान्की श्वेतवर्ण पद्मासन मूर्ति विराजमान है । यह संवत् १५४८ में प्रतिष्ठित की गयी। ५. नया मन्दिर कहा जाता है कि शान्तिनाथकी प्रतिष्ठाके समय इसमें हवनकुण्ड था। यह आठ खम्भोंका मठ था। बादमें इसे मन्दिरका रूप दे दिया गया।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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