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मध्यप्रदेश के दिगम्बर जैन तीर्थं
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खण्डित अंशोंको जोड़ दिया गया। हथौड़ोंको चोटोंसे मूर्तिकी पालिश चटक गयी थी । पं. पन्नालाल शास्त्री साढूमलवालोंने ७२ तोला पन्ना प्राप्त करके इस मूर्तिपर पुनः पालिश करायी । इससे पालिशमें द्वैविध्य आ गया है । हाथ आदिके जोड़के चिह्न पालिशसे छिप नहीं सके, वे स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं ।
इस प्रतिमाकी मुख-छटा देखते ही बनती है । इसके ऊपर जो प्रसन्न गाम्भीर्य, सौम्यता और स्मितके भाव छिटक रहे हैं, वे वस्तुतः अनुपम हैं । कठोर पाषाणमें इतने गाम्भीर्य और वीतराग छविका अंकन आश्चर्यजनक है |
इसकी चरणपीठिकापर एक मूर्तिलेख उत्कीर्ण है। यह लगभग ४ इंच लम्बा और ९ इंच चौड़ा है। मूर्तिलेख अत्यन्त ऐतिहासिक महत्त्वका है । इससे प्रतिष्ठाकारकका वंश-परिचय, प्रतिष्ठा-काल, तत्कालीन शासन, मूर्तिकार आदि महत्त्वपूर्ण बातोंपर प्रकाश पड़ता है । वह लेख इस प्रकार है
ॐ नमो वीतरागाय ॥
गृहपतिवंश सरोरुह - सहस्र रश्मिः सहस्रकूटं यः । वाणपुरे व्यधितासीत् श्रीमानिह देवपाल इति ॥ १॥
श्री रत्नपाल इति तत्तनयो वरेण्यः, पुण्येकमूर्तिरभवत् वसुहाटिकायां । कीर्तिर्जगत्त्रयपरिभ्रमणश्रमार्ता यस्य स्थिराजनि जिनायतनच्छलेन ॥२॥ एकस्तावदनून बुद्धिनिधिना श्री शान्तिचैत्यालयो,
दिष्ट्यानन्दपुरे परः परनरानन्दप्रदः श्रीमता । येन श्री मदनेशसागरपुरे तज्जन्मनो निर्मिमे, . सोऽयं श्रेष्ठिवरिष्ठ गल्हण इति श्री रल्हणाख्यादभूत् ||३|| तस्मादजायत कुलाम्बर पूर्णचन्द्रः श्रीजाहडस्तदनुजोदयचन्द्र नामा | एकः परोपकृतिहेतुकृतावतारो धर्मात्मकः पुनरमोघसुदानसारः ॥४॥ ताभ्यामशेष दुरितौघशमैकहेतुं निर्मार्पितं भुवनभूषणभूतमेतत् ।
श्री शान्ति चैत्यमिति नित्यसुखप्रदानात् मुक्तिश्रियो वदनवीक्षण लोलुपाभ्याम् ॥५॥ संवत् १२३७ मार्गं सुदि ३ शुक्रे श्रीमत्परमर्द्धिदेव विजयराज्ये चन्द्रभास्करसमुद्रतारका यावदत्र जनचित्तहारकाः । धर्मंकारिकृतशुद्धकीर्तनं तावदेव जयतात् सुकीर्तनम् ||६|| वाल्हणस्य सुतः श्रीमान् रूपकारो महामतिः । पापटो वास्तुशास्त्रज्ञस्तेन बिम्बं सुनिर्मितम् ||७|
इस मूर्ति-लेखका आशय यह है कि गृहपति-वंशमें श्रेष्ठी देवपाल हुए, जिन्होंने बानपुर में सहस्रकूट जिनालयका निर्माण कराया। उनके पुत्र रत्नपाल हुए । रत्नपालके पुत्र रल्हण थे । रहण के पुत्र गल्हण हुए, जिन्होंने नन्दपुर तथा मदनेशसागरपुरमें शान्तिनाथ जिनालय बनवाये । गल्हणके दो पुत्र हुए—-जाहड़ और उदयचन्द्र । इन दोनों भाइयोंने शान्तिनाथको मूर्ति बनवायी, जिसकी प्रतिष्ठा महाराज परमर्द्धिके राज्यमें अगहन सुदी ३ शुक्रवार संवत् १२३७ में करायी । इस मूर्तिका निर्माण वाल्हण के पुत्र वास्तुशास्त्रके ज्ञाता पापटने किया ।
इस प्रतिमाके बायें पार्श्वमें भगवान् कुन्थुनाथकी मूर्ति विराजमान है। यह मूर्ति १३ फुट शिलाफलक में १० फुट अवगाहनावाली खड्गासन मुद्रामें उत्कीर्ण है । इस मूर्तिकी भी नासिका,