SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११४ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ १. क्या श्री नामक कोई अन्तिम अवधिज्ञानी मुनि हुए हैं जिन्होंने 'चौबीस कामदेव पुराण' की रचना की हो। यदि हए हैं तो.यह ग्रन्थ कसायपाहड और षट्खण्डांगमसे भी पूर्वका मानना होगा। किन्तु इसमें १२वीं शताब्दीके पाड़ाशाहका भी उल्लेख मिलता है और उस कालमें कोई अवधिज्ञानी मुनि नहीं हुआ। २. क्या वैमानिक देव भी इस पंचम कालमें अतिशय प्रकट करनेके उद्देश्यसे भरतक्षेत्रमें आते हैं ? ३. कामदेव नलराज सिद्धवरकूटसे मुक्त हुए, ऐसा माना जाता है। दूसरी ओर तथाकथित 'कामदेव पुराण' के अनुसार वे अहारसे मुक्त हुए माने जाते हैं। इन दोनों स्थानोंमें से वस्तुतः उन्होंने किस स्थानसे निर्वाण प्राप्त किया, यह निर्णय होना अभी शेष है। ४. इतिहास ग्रन्थोंसे यह सिद्ध होता है कि चन्देल नरेश मदनवर्मनने चेदि-विजयके उपलक्ष्यमें मदनसागरका निर्माण कराया था। इसी सरोवरके नामपर यहाँके गांवका नाम मदनेश सागरपुर पड़ गया। अहारके मूर्ति-लेखोंमें भी ये दोनों नाम मिलते हैं। दूसरी ओर 'कामदेव पुराण' में ऐसा वर्णन बताया जाता है कि मदनसागरका निर्माण कामदेव मदनकुमारने १९वें तीर्थंकर मल्लिनाथके बादमें कराया। राजा मदनवर्मनसे पूर्व किसी ग्रन्थ, शिलालेख अथवा मूर्तिलेखमें इस सागर ( सरोवर ) और नगरका नाम उपलब्ध नहीं होता। ऐसी स्थितिमें क्या यह उचित होगा कि उक्त कथित ग्रन्थका तत्सम्बन्धी विवरण मान्य किया जाये ? ५. निर्वाणकाण्ड, निर्वाणभक्ति, किसी पुराण अथवा कथाकोशमें अहारका उल्लेख निर्वाण क्षेत्रके रूप में नहीं मिलता। ६. 'चौबीस कामदेव पुराण' नामक किसी ग्रन्थका अस्तित्व है, यह भी सन्दिग्ध है। यदि यह ग्रन्थ विद्यमान है तो स्वीकार करना होगा कि यह रचना अति आधुनिक है और रचयिता कोई विद्वान् नहीं है, अन्यथा सिद्धान्त और परम्परा-विरुद्ध बातें उसमें न होतीं। इस ग्रन्थका उल्लेख भी किसी ग्रन्थमें नहीं मिलता। जबतक इन बातोंका सन्तोषजनक समाधान प्राप्त न हो जाये, तबतक अहारको सिद्ध क्षेत्र स्वीकार नहीं किया जा सकता। उसके लिए कल्पित शास्त्रोंके बजाय कुछ ठोस शास्त्रीय आधार ढूँढ़ने होंगे। हमारी विनम्र मान्यता है कि अहार एक ऐतिहासिक अतिशय क्षेत्रमें लगभग एक हजार वर्षों से मान्य रहा है। इस क्षेत्र और यहाँके भगवान् शान्तिनाथके प्रति जनताके मनमें अपार श्रद्धा है । उसे बलात् सिद्ध क्षेत्रका नाम देनेसे जन-श्रद्धामें कोई वृद्धि नहीं होती। इस प्रकारकी प्रवृत्ति अन्य कई अतिशय क्षेत्रोंके सम्बन्धमें भी चल पड़ी है। ठोस शास्त्रीय या अभिलेखीय प्रमाण उपलब्ध होनेपर ही किसी अतिशय क्षेत्रको सिद्ध क्षेत्रके रूपमें मान्यता मिलनी चाहिए। पाड़ाशाह का मन्दिर - पाड़ाशाहने अनेक तीर्थोपर शान्तिनाथ जिनालय बनवाये थे। उन सभी तीर्थोंपर उनके धनके सम्बन्धमें विभिन्न और विचित्र किंवदन्तियां प्रचलित हैं। अहारके शान्तिनाथ जिनालयका निर्माण रांगाके चांदी हो जानेपर उस चांदीके मल्यसे कराया था। अनुश्रति है कि उन्होंने शान्तिनाथको प्रतिष्ठा गजरथ महोत्सवपूर्वक की थी। उसमें इतनो जनता एकत्र हुई थी कि पंक्तिभोजमें ५२ मन पिसी मिर्च भी कम पड़ गयो थीं। किन्तु पाड़ाशाहका मन्दिर और मूर्ति कहाँ हैं, यह ज्ञात नहीं हो सका। क्योंकि मूर्ति-लेखके अनुसार वर्तमान मन्दिर गल्हणने बनवाया और
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy