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________________ ११६ __ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ ११ कुएँ और २ बावड़ी हैं। २ बगीचे भी हैं। यात्रियोंके लिए निवास, जल, रोशनी आदिको समुचित व्यवस्था है। संस्थाएँ ' क्षेत्रपर निम्नलिखित संस्थाएं हैं श्री दिगम्बर जैन वीर विद्यालय, श्री ऋषभ दिगम्बर जैन उदासीनाश्रम और श्री मोतीलाल वर्णी सरस्वती सदन। वाषिक मेला - क्षेत्रपर प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ला १३ से १५ तक वार्षिक मेला लगता है। अहार स्थिति .. श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र अहारजी मध्यप्रदेशके अन्तगत जिला टीकमगढ़से पूर्वकी ओर स्थित है। टीकमगढ़ बलदेवगढ़ रोडपर टीकमगढ़से १९ कि. मी. पर अहार तिगोलकी पुलिया है। यहाँसे मदन सागर सरोवरके बाँधको पार कर पर्वतमालाओं और वनोंके बीच ५ कि. मी. दूर यह क्षेत्र स्थित है । टीकमगढ़से क्षेत्र तक पक्की सड़क है । बसें क्षेत्र तक जाती हैं। छतरपुरसे.भी सीधी सड़क क्षेत्र तक है। अतिशय क्षेत्र ___ यह क्षेत्र अतिशय क्षेत्रके रूपमें प्रसिद्ध है। किंवदन्तीके अनुसार प्रख्यात व्यापारी पाडाशाह लासपुर नगरसे पाड़ोंपर राँगा लादकर ला रहे थे। विश्रामके लिए उन्होंने इस स्थानकी एक शिलापर अपना सामान उतारा। किन्तु पाड़ाशाहने बड़े आश्चर्यके साथ देखा कि उनका राँगा चांदी हो गया है। निर्लोभी वृत्तिवाले श्रावक पाड़ाशाहको यह भ्रम हुआ कि लासपुरके व्यापारीने भूलसे राँगाके स्थानपर चांदी दे दी है। यह विचारकर उन्होंने विश्रामका विचार त्याग दिया और राँगाको पुनः पाड़ोंपर लादकर वे लासपुर पहुँचे । जिस व्यापारीसे उन्होंने रांगा खरीदा था, उससे जाकर बोले-"बन्धुवर ! आपने भूलसे राँगाके स्थानपर चांदी दे दी थी। मैंने तो आपसे राँगा मांगा था और मूल्य भी राँगाका ही दिया था। अतः मैं आपका माल वापस करने आया हूँ। कृपा करके आप मुझे राँगा दे दीजिए।" पाड़ाशाहकी बात सुनकर व्यापारीको बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोला--"आर्य! मैंने तो आपको राँगा ही दिया था। मेरे यहाँ चाँदीका व्यापार भी नहीं होता। आपके पुण्योदयसे ही राँगा चाँदी हो गया है। इस मालपर मेरा कोई अधिकार नहीं है। माल आपका ही है। सम्भव है, आपने यह माल कहीं उतारा हो और वहाँ किसी पारस पत्थरके संसर्गसे आपका रांगा चांदी हो गया हो।" पाड़ाशाहको समझमें यह बात आ गयी। वे फिर अहार लौटे और उन्होंने अपना माल पुनः उसी शिलापर उतारा जिसपर पहले उतारा था। वहां पुनः पूर्ववत् चमत्कार हुआ। पुनः उनका राँगा चाँदी हो गया। तब उन्होंने उस चांदीके मूल्यसे वहाँपर शान्तिनाथ भगवान्का मन्दिर बनवाया और उसमें भगवान् शान्तिनाथकी अत्यन्त मनोज्ञ मूर्ति स्थापित की।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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