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१९. पार्श्वनाथ भगवान् पद्मासन
२०. चन्द्रप्रभ
२१. ऋषभदेव
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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थं
कृष्णवर्णं श्वेतवर्णं
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२२.,, २३. सुपार्श्वनाथ,, २४. ऋषभदेव
२ फुट ७ इंच
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१०० चन्द्रप्रभ मन्दिर - भगवान् चन्द्रप्रभकी बादामी वर्णकी यह खड्गासन प्रतिमा ६ फुट ११ इंच ऊँची है । संवत् १८६० में इसकी प्रतिष्ठा हुई है । सिरके पीछे प्रभावलय है और सिरके ऊपर तीन छत्र हैं | छत्रके दोनों ओर चमरवाहक हैं । अधोभागमें भगवान् के यक्ष-यक्षी श्याम और ज्वालामालिनी हैं । यक्ष कपोतासीन है और द्विभुजी है । यक्षी अष्टभुजी है और सुखासन में बैठी हुई है। दोनोंके हाथोंमें ७१ नम्बरके मन्दिरके यक्ष-यक्षियोंके समान आयुध आदि हैं।
१०१. चन्द्रप्रभ मन्दिर - इसमें श्वेतवर्ण चन्द्रप्रभकी पद्मासन प्रतिमा आसीन है । इसकी प्रतिष्ठा संवत् १९५५ में की गयी ।
१०२. पार्श्वनाथ मन्दिर - वेदीमें तीन मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं। मूलनायक पार्श्वनाथकी मूर्ति मध्य है । यह मूर्ति ४ फुट ३ इंच उन्नत है, पद्मासन है और कृष्णवर्णकी है । इसकी फणावली में २५ फण हैं । इसकी प्रतिष्ठा संवत् १८३३ में हुई है ।
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२ फुट १० इंच अवगाहना
२ फुट ४ इंच
२ फुट ११ इंच
१ फुट ७ इंच
२ फुट ६ इंच
कृष्णवर्ण श्वेतवर्णं
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मूर्ति दोनों ओर श्वेत पाषाणके ऋषभदेव विराजमान हैं। अवगाहना २ फुट ९ इंच है । १०३. पार्श्वनाथ मन्दिर - चार फुट ऊंची पार्श्वनाथकी कृष्णवर्णं पद्मासन मूर्ति ऊँची वेदपर प्रतिष्ठित है । संवत् १८८३ में इसकी प्रतिष्ठा हुई है।
१०४. पार्श्वनाथ मन्दिर - पार्श्वनाथ भगवान्की ३ फुट ऊँची श्वेत पाषाणकी यह पद्मासन प्रतिमा संवत् १८९७ की प्रतिष्ठित है । सिरके पृष्ठ भागमें सुन्दर भामण्डल है । इसके अतिरिक्त मामरसे आयी हुई धातुकी ४५ और पाषाणकी २ प्रतिमाएँ रखी हुई हैं ।
१०५. ऋषभदेव मन्दिर - कृष्ण पाषाणकी २ फुट ७ इंच उन्नत यह पद्मासन प्रतिमा संवत् १८९३ में प्रतिष्ठित हुई ।
१०६. ऋषभदेव मन्दिर - इस प्रतिमाका वर्णं बादामी है और खड्गासन है । संवत् १८९२ में इसकी प्रतिष्ठा हुई ।
१०७. नेमिनाथ मन्दिर - भगवान् नेमिनाथकी यह पद्मासन प्रतिमा ३ फुट ९ इंच उन्नत है । इसका वर्णं कृष्ण है तथा इसकी प्रतिष्ठा संवत् १९१६ में हुई ।
मानस्तम्भ
क्षेत्रपर चार मानस्तम्भ बने हुए हैं । प्रथम मानस्तम्भका निर्माण श्री वंशीधर सिधगुवाँवालोंकी ओरसे संवत् १९९९ में हुआ । द्वितीय मानस्तम्भ सिं. सुन्दरलाल मडावरा - निवासीने संवत् २००६ में बनवाया। तीसरा मानस्तम्भ संवत् २०१३ में श्री मूलचन्द जावनसकरारनिवासी की ओरसे तैयार हुआ । चौथा मानस्तम्भ बरखेड़ा निवासी चौधरी रघुनाथप्रसाद जीवनलालकी ओरसे संवत् २०१५ में निर्मित हुआ ।
धर्मशालाएँ
क्षेत्रपर ५ धर्मशालाएँ हैं, जिनमें १२५ कमरे हैं तथा ५ हॉल हैं । विद्यालय और छात्रावासके २५ कमरे इनसे पृथक् हैं । जलके लिए कुएँ में मोटर लगाकर नल लगाये गये हैं । यों भी क्षेत्रपर