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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
११३ मूलनायकका है। चन्द्रप्रभ भगवान्की श्वेतवर्ण एक पद्मासन प्रतिमा संवत् १९११ की प्रतिष्ठित है । मूलनायक चन्द्रप्रभको प्रतिमा अत्यन्त मनोज्ञ और अतिशयसम्पन्न है। अनेक स्त्री-पुरुष इसके
मनौतियों मानने आते हैं।
. मन्दिरके बाहर चार स्तम्भोंपर आधारित मण्डप है। मन्दिरके प्रवेश-द्वार, तोरण और आधार-स्तम्भोंमें नृत्य-मुद्रामें मिथुन, संगीत-समाज और मोहक भंगिमामें नर्तकियोंका भव्य अंकन किया गया है। यह दृश्यांकन खजुराहोकी कलाके अनुकरणपर किया गया लगता है।
__४३. पद्मावती मन्दिर-यहाँ देवी पद्मावती सुखासनमें आसीन है। देवी चतुर्भुजी है। ऊपरके हाथोंमें अंकुश और कमल हैं तथा नीचेके हाथोंमें माला और बिजौरा हैं। नीचे उसका वाहन हंस खड़ा है। देवी अलंकारमण्डित है। कानोंमें कण्डल. भजाओंमें भजबन्द, हाथों तथा पैरोंमें कड़े और गले में गलहार हैं। देवीके ऊपर नागकुमार देवोंकी इन्द्राणीका सूचक सप्त फणच्छद है । उसके ऊपर सिंहासनपर भगवान् पार्श्वनाथ विराजमान हैं। यह देवी-मूर्ति पालिशदार श्वेत पाषाणकी है। इसके चारों ओर पाषाणका चौखटा बना हुआ है, जिसमें चार तीर्थंकर मूर्तियां बनी हुई हैं। पार्श्वनाथ और देवी दोनोंके दोनों पार्यों में चमरवाहक खड़े हुए हैं। अधोभागमें दोनों ओर कुत्तेपर आरूढ़ भैरव क्षेत्रपाल हैं। वे एक हाथमें गदा उठाये हुए हैं। दायें हाथमें त्रिशूल है जो कन्धेपर रखा हुआ है तथा बायें हाथमें सम्भवतः कन्दुक है जो कुत्तेके मुखपर रखा हुआ है। मूर्तिके शिलाफलककी माप २ फुट १० इंच है।
४४. मुनिसुव्रतनाथ मन्दिर-मुनिसुव्रतनाथकी २ फुट ६ इंच ऊँची कृष्णवर्ण पद्मासन प्रतिमा संवत् १८९२ में प्रतिष्ठित हुई है। मन्दिरमें परिक्रमा-पथ बना हुआ है।
४५. चन्द्रप्रभ मन्दिर-आसनसहित इस मूर्तिकी ऊँचाई ८ फुट है। यह स्वर्णवर्णवाली खड्गासन मूर्ति संवत् १८७६ में प्रतिष्ठित की गयो। प्रतिमाके सिरके पीछे भामण्डल और ऊपर छत्रत्रयी सुशोभित है । शीर्षके दोनों ओर गज बने हुए हैं। भगवान्के चरणोंके दोनों ओर चमरेन्द्र और नृत्यमुद्रामें देवियाँ प्रदर्शित हैं। अधोभागमें अरहनाथ और शीतलनाथकी खड्गासन मूर्तियां हैं। बायीं ओर चन्द्रप्रभ भगवान्का यक्ष श्याम कपोतपर आसीन है। उसके एक हाथमें माला है और दूसरे हाथमें कमलपुष्प है। उसके बगलमें भगवान्का चमरवाहक खड़ा है। दायीं ओर अष्टभुजी ज्वालामालिनो यक्षी है। वह महिषपर आरूढ़ है। दो दायें हाथोंमें त्रिशूल और एकमें बाण हैं तथा एक हाथ महिषके मुखपर है। एक बायें हाथमें नागपाश और दूसरेमें धनुष है, तीसरा हाथ वक्षपर रखा है और चौथा मुट्ठी बाँधे लटका हुआ है। इनके अधोभागमें हाथ जोड़े हुए स्त्रियाँ और सिंहपीठके सिंह बैठे हैं । इस मन्दिरमें परिक्रमा-पथ बना हुआ है।
४६. बाहुबली मन्दिर- यह अभी निर्माणाधीन है । संवत् २०२५ में इसकी प्रतिष्ठा हो चुकी है। बाहुबली स्वामीको मकरानाकी श्वेत मूर्ति लगभग ८ फुट ऊंची है। मुखपर पारम्परिक विरागरंजित मुसकान । भुजाओं और जंघोंपर माधवी लताएं लिपटी हुई हैं।
मन्दिर गोलाकार बना हुआ है और वह ३८ स्तम्भोंपर आधारित है। मन्दिरके चबतरेपर चारों ओर घेरेमें २४ मन्दरियाँ बनी हुई हैं। इनमें २४ तीर्थंकरोंकी २४ पद्मासन प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं। प्रतिमाओंका वर्ण वही है जो तीर्थंकरोंका है। प्रत्येक प्रतिमाका आकार २ फुट २ इंच है। इन २४ मन्दरियोंको स्वतन्त्र मन्दिर मानकर इस मन्दिरको संख्या ४६ से ७० तक लिख दी गयी है।
७१. चन्द्रप्रभ मन्दिर-यह मूर्ति स्वर्णवणं और खड्गासन है। अवगाहना ८ फुट १० इंच है । इसकी प्रतिष्ठा संवत् १८६५ में हुई। मूर्तिके सिरपर तीन छत्र हैं। गजलक्ष्मी भगवान्का
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