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________________ १९२ 'भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ २७. भोयरा-भगवान् नेमिनाथकी कृष्णवर्णकी २ फुट २ इंच ऊँची पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। मूर्ति-लेखमें संवत् १७७९ अंकित लगता है। इसके बायीं ओर रक्ताभ-वर्ण सम्भवनाथकी ७ इंचको मूर्ति है। दायीं ओर २. फुट १.इंच ऊँची मूर्ति है। पादपीठपर कोई लांछन नहीं है। संवत् भी अस्पष्ट है। एक १ फुट ७ इंच ऊँचे स्तम्भमें दो खड्गासन मूर्तियाँ बनी हुई हैं। एक अन्य १ फुट ६ इंच ऊंचे स्तम्भमें ६ मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। एक शिलाफलकमें १ फुट १० इंच ऊंची पार्श्वनाथ मूर्ति बनी हुई है। नेमिनाथकी एक छोटी मूर्ति अन्य मूर्तियोंके आगे रखी हुई है। २८. चन्द्रप्रभ जिनालय-भगवान् चन्द्रप्रभको कृष्ण पाषाणकी १ फुट ६ इंच अवगाहनावाली पद्मासन प्रतिमा है । मूर्ति-लेख नहीं है। २९ से ३५. तक सात गुमटियां बनी हुई हैं, जिसमें क्रमशः आचार्य पुष्पदन्त, भूतबलि, कुन्दकुन्द, उमास्वामी, समन्तभद्र, पूज्यपाद, शिवसागर और श्रुतसागरके श्वेत पाषाणके चरणचिह्न बने हुए हैं। ३६. पार्श्वनाथ मन्दिर-इसको वेदी ३ फुट ४ इंच ऊंची है। इसपर भगवान्की श्यामवर्ण पद्मासन मूर्ति विराजमान है। इसकी अवगाहना ३ फुट ३ इंच है। इसका प्रतिष्ठा-काल संवत् १८८८ है। ___३७. पुष्पदन्त मन्दिर-भगवान् पुष्पदन्तको ८ फुट उत्तुंग स्वर्ण वर्णवाली प्रतिमा कायोत्सर्गासनमें विराजमान है. जिसकी प्रतिष्ठा संवत १८६९ में हुई है। प्रतिमाके सिरके दोनों पाश्ॉमें चमरेन्द्र खड़े हैं तथा चरणोंके दोनों ओर भगवान्के सेवक अजित यक्ष और महाकाली (भृकुटि) यक्षी भगवान्की सेवामें उपस्थित हैं। ये दोनों ही चतुर्भुजी हैं। ३८. पार्श्वनाथ मन्दिर-यह मन्दिर ऊपरकी मंजिलपर है। पार्श्वनाथ भगवान्की कृष्णवर्ण ४ फुट अवगाहनावाली पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसकी प्रतिष्ठा संवत् १८९४ में की गयी। फणावलीमें ९ फण हैं। . ३९. चन्द्रप्रभ मन्दिर-७ फुट ऊंचे एक शिलाफलकमें चन्द्रप्रभ तीर्थंकरको खड्गासन प्रतिमा है । शीर्षभागके दोनों पार्यों में पुष्पमाल लिये नभचारी देव दिखाई पड़ते हैं। चरणोंके दोनों ओर चमरवाहक खड़े हैं। अधोभागमें भक्तयुगल सम्भवतः प्रतिष्ठाकारक और उनकी धर्मपत्नी करबद्ध मुद्रामें अवस्थित हैं। इसकी प्रतिष्ठा संवत् १६८४ में की गयी। मन्दिरमें परिक्रमा-पथ भी बना हुआ है। ४०. पार्श्वनाथ मन्दिर-२ फुट १० इंच उत्तुंग श्वेतवर्ण और संवत् १८९३ में प्रतिष्ठित पद्मासन मुद्रामें पाश्वनाथ-मूर्ति विराजमान है । इसका पीठासन २ फुट १० इंच ऊंचा है। ४१. पार्श्वनाथ मन्दिर-पाश्र्वनाथकी यह पद्मासन प्रतिमा श्वेत पाषाणकी है और संवत् १५४२ में इसकी प्रतिष्ठा हुई है। .. ४२. चन्द्रप्रभ मन्दिर-यह ७ फुट ३ इंच उत्तुग बादामी वर्णकी खड्गासन प्रतिमा संवत् १५२४ में प्रतिष्ठित हुई है । सिरपर छत्रत्रय सुशोभित है। उसके दोनों ओर गजलक्ष्मी और पुष्पवर्षा करते हुए गन्धर्व प्रदर्शित किये गये हैं। चरणोंके दोनों ओर चमरधारी इन्द्र खड़े हैं। अधोभागमें भक्त-श्राविका हाथ जोड़े हुए बैठी है। - इस मूलनायक प्रतिमाके अतिरिक्त इस गर्भगृहमें ९ मूर्तियां और हैं, जिनमें ६ मूर्तियाँ मूलनायकके दोनों ओर विराजमान हैं तथा ३ मूर्तियाँ बायीं ओर आलोंमें रखी हुई हैं। इन ९ मूर्तियोंमें ८ मूर्तियाँ मूलनायकके समकालीन लगती हैं। उनका पाषाण भी वही है जो
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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