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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ भट्टारक-परम्परा, राजाओंके नाम, प्रतिष्ठाकारकोंके परिवार, उनकी जाति, गोत्र, वंश आदि । यहाँ विस्तृत विवेचन न करके उनके केवल नाम ही दिये जा रहे है भट्टारक-धर्मकीर्ति तत्पट्टे पद्मकीर्ति तत्पट्टे सकलकीर्ति, चन्द्रपुरी पट्टे भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति । ललितकीर्ति तत्पट्टे रत्नकीर्ति । ओरछा-नरेश-(महाराजकुमार महेन्द्र बहादुर महाराजाधिराज यह पदवी सभी राजाओं: के साथ है) विक्रमाजीत, धर्मपाल, तेजसिंह, सुजानसिंह, हमीरसिंह, उद्योतसिंह। ___ नगरोंके नाम-टेहरी, पपौरा, टीकमगढ़, छत्रपुर, चन्देरी, भोपाल, परतापगंज, सुनवारा, भामोन। जाति-परवार, गोलालारे, गोलापूर्व, पौरपट्ट।। गोत्र-कोछल्ल, वासल्ल, भारल्ल, गोइल्ल, गोहिल्ल, कासिल्ल, वाछल्ल, वेरिया, कासिय, वाझल्ल, पडेले, श्वान बिहार । मूर-ओछल्लि, बहुरिया, भारु, वैशाखिया, मागेर, नारद, देवा, गोदू, रकिया, डेरिया। क्षेत्र-दर्शन मुख्य सड़कसे थोड़ा चलकर विशाल गोपुर ( मुख्य द्वार ) मिलता है। इस द्वारके ऊपर ही रथाकार जिनालय बना हुआ है। द्वारसे प्रवेश करते ही दोनों ओर दो-दो मानस्तम्भ दिखाई पड़ते हैं जिनकी वेदीमें चार-चार प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं। दायीं ओर वीर विद्यालय भवन और छात्रावास है तथा बायीं ओर विशाल हॉल और व्रती भवन है। आगे बढ़नेपर दोनों ओर प्राचीन और नवीन क्षेत्र-कार्यालय हैं। पुराने कार्यालयके निकट ही पतराखन कुआँ है और आगे भोजनशाला। सामने मैदान पार करके धर्मशाला है। नवीन कार्यालयके निकट ही मन्दिरोंकी तालिका प्रारम्भ हो जाती है। प्रत्येक मन्दिरपर क्रम-संख्या लिखी हुई है। इससे यात्रीको दर्शन करनेमें असुविधा नहीं होती। इन मन्दिरोंका क्रमशः परिचय इस प्रकार है १. आदिनाथ मन्दिर-भगवान् ऋषभदेवकी १० फुट ऊँची स्वर्णवर्ण खड्गासन प्रतिमा विराजमान है। सिरपर छत्र और पीछे भामण्डल हैं। सिरके दोनों ओर गगनविहारी देवियाँ पूष्पवर्षा कर रही हैं। चरणोंके दोनों ओर चमरेन्द्र खड़े हैं। उनसे नीचे चतुर्भुजी गोमेद यक्ष और अष्टभुजी चक्रेश्वरी यक्षी हैं। बिलकुल अधोभागमें दोनों ओर भक्तगण हैं। इसके अतिरिक्त पाषाणकी २ तथा धातुको १० प्रतिमाएँ हैं। प्रतिष्ठा-संवत् १८७२ है। २. सुपाश्वनाथ मन्दिर-एक गन्धकुटीमें भगवान् चन्द्रप्रभकी श्वेतवर्ण पद्मासन मूर्ति विराजमान है । अवगाहना डेढ़ फुट है । एक धातु-मूर्ति भी इसके आगे आसीन है। ___ मुख्य वेदीमें सुपाश्वनाथकी कृष्ण पाषाणको सवा दो फुट ऊँची पद्मासन मूर्ति विराजमान है। प्रतिष्ठाका संवत् मिट गया है । वह संवत् १८८३ प्रतीत होता है। ३. चन्द्रप्रभ मन्दिर-भगवान् चन्द्रप्रभकी २ फुट उत्तुंग कृष्णवर्ण पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। प्रतिष्ठाका संवत् १८९२ है।। ४. श्रेयान्सनाथ मन्दिर-भगवान् श्रेयान्सनाथकी ३ फुट ७ इंच उत्तुंग कृष्णवर्ण पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। प्रतिष्ठा-काल संवत् १८८२ है। इसके आगे श्वेत पाषाणको चन्द्रप्रभप्रतिमा विराजमान है जो २ फुट २ इंच ऊँची है। ५. महावीर मन्दिर-एक वेदीमें मूलनायक भगवान् महावीरकी श्वेत पाषाणकी पद्मासन
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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