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________________ १०८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थं है कि इन स्थानों पर ११-१२वीं शताब्दीसे पूर्वके कोई मन्दिर नहीं मिलते। इस सम्भावनाको भी इनकार नहीं किया जा सकता कि १० से १२वीं शताब्दी तक की जो मूर्तियां इन भू-गर्भालयों में उपलब्ध होती हैं, वे उस स्थानकी न हों जहाँ वे वर्तमान हैं, बल्कि अन्यत्रसे लाकर प्रतिष्ठित कर गयी हों । प्राचीन समुच्चय यह यहाँका सबसे प्राचीन स्थान माना जाता है। इस स्थानके बीचमें एक मन्दिर बना हुआ है और उसके चारों ओर पुराने ढंगके बारह मठ हैं। लोग इस स्थानको 'सभा मण्डप' कहते हैं । चौबोसी - मूर्तियोंकी चौबीसी तो कई स्थानोंपर मिलती है किन्तु यहाँ मन्दिरोंकी चौबीसी बनी हुई है। एक मन्दिरके चारों ओर अर्थात् चारों दिशाओंमें छह-छह मन्दिरोंकी पंक्तियाँ हैं । मन्दिरोंकी ऐसी चौबीसी शायद अन्यत्र कहीं नहीं है । क्षेत्रपर अतिशय 1 इस क्षेत्रके अतिशयोंके सम्बन्ध में अनेक किंवदन्तियाँ जनता में प्रचलित हैं । कई किंवदन्तियाँ तो ऐसी भी हैं जो अन्य कई क्षेत्रोंपर भी प्रचलित हैं, जैसे बावड़ी द्वारा बरतनोंका दान, महिलाका सूखे कुएँमें उतरना और उसके ऊपर आनेपर जलका ऊपर आना आदि । इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि इन किंवदन्दियोंमें कितना सत्यांश और कितनी कल्पना है । यदि इनमें कुछ सत्यांश भी है तो ये घटनाएँ वस्तुतः किस क्षेत्रपर घटित हुईं, यह नहीं कहा जा सकता । यहाँ जो किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं १. यहाँ एक पुरानी बावड़ी है। जब किसी यात्रीको बरतनोंकी जरूरत पड़ती थी तो वह एक पर्चीपर बरतनोंके नाम लिखकर उसे उस बावड़ी में डाल देता था। थोड़ी देर में बरतन पानी के ऊपर आ जाते थे । काम पूरा होनेपर वह उन बरतनोंको पुनः पानीमें डाल देता था। एक बार एक यात्रीकी नीयत खराब हो गयी । उसने बरतन पानी में नहीं डाले । तबसे बावड़ीने बरतन देना बन्द कर दिया । २. मन्दिर नं. १ बन रहा था । एक वृद्ध महिला इस मन्दिरका निर्माण करा रही थी । मन्दिरकी नींव भरी जा चुकी थी । भोज होनेवाला था । किन्तु कुएँका पानी सूख गया । वह वृद्धा रस्सोंसे बँधी चौकीपर बैठकर भगवान् के नामकी माला फेरती हुई कुएँ में उतरी। जब वह वापस आने लगी तो जैसे-जैसे वह ऊपर आती गयी, कुएँका पानी चौकोको छूता हुआ ऊपर उठने लगा । वह महिला बाहर निकली तो कुएँका पानी भी कुएँसे बाहर बहने लगा । भोजका काम सानन्द सम्पन्न हुआ। वह कुआँ अब भी मौजूद है और उसका नाम तबसे ही 'पतराखन' हो गया है । ३. अनेक लोग भोंयरे और चन्द्रप्रभ मन्दिर में मनोकामना लेकर आते हैं । स्त्रियाँ सन्तान - की इच्छासे यहाँ मनौती मानती हैं और हाथके छापे लगाती हैं । 1 ऐतिहासिक सामग्री यहाँकी मूर्तियों के पीठासनोंपर लेख उत्कीर्णं हैं । उनमें इतिहासकी प्रचुर सामग्री भरी पड़ी है । उपलब्ध मूर्ति-लेखों का अध्ययन और विश्लेषण करनेपर अनेक बातोंपर प्रकाश पड़ता है, जैसे
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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