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________________ १०२ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ एक शिक्षाफलकमें छह तीर्थंकरोंका अंकन है। तीर्थंकर कायोत्सर्ग मुद्रामें ध्यानमग्न हैं। २-३ प्रतिमाएं ऐसी हैं जो अधिक क्षतिग्रस्त हैं। अतः उन्हें पहचानना कठिन है। मन्दिर नं. २-यह चौबीसी मन्दिर कहलाता है। यह काले पाषाणका बना हुआ है। मूर्तियां भी काले पाषाणको बनी हुई हैं । इनकी अवगाहना ४ फुट है । इसी आकारकी भूरे पाषाणकी बाहुबली स्वामीकी प्रतिमा भी यहां विराजमान है। सभी प्रतिमाओंके सिर कटे हुए हैं । कुछ सिर यहीं विद्यमान हैं। इन प्रतिमाओंके दोनों ओर एक-एक सेविकादेवी बनी हुई है। इसके गलेमें अक्षमाला और तिराना तथा कटिमें मेखला सुशोभित है। मन्दिरके स्तम्भोंपर नत्य-मद्रामें पुरुष और स्त्रियाँ प्रदर्शित हैं । मन्दिरके द्वारकी चौखटपर मध्यमें पद्मासन और दोनों कोनोंपर खड्गासन तीर्थंकर मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। दो पद्मासन तीर्थंकर मूर्तियाँ ४८ दलवाले कमलपर विराजमान हैं। इनके भी सिर कटे हुए हैं। मन्दिरकी धरनपर मध्य में पद्मासन और उसके दोनों कोनोंपर कायोत्सर्गासन तीर्थंकर प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं। इन दोनों मन्दिरोंके अतिरिक्त कुछ मन्दिर भग्न बशामें पड़े हुए हैं। इनकी लगभग ६०० मूर्तियां मन्दिरके परकोटेकी दीवारोंसे टिकाकर रखी हुई हैं। एक शिलाफलकपर चौबीस तीर्थंकरोंकी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं और अखण्डित दशामें हैं। कुछ वर्ष पूर्व उसे सिरसौद गाँवके मन्दिरमें प्रतिष्ठित कर दिया गया है। इस फलकमें दो पंक्तियोंमें १२-१२ प्रतिमाएं हैं। सभी खड्गासन हैं और २ इंच अवगाहना की हैं। यहाँ मन्दिरोंके सामने एक मानस्तम्भ है जो गिर चुका है। उसमें पद्मासनमें पद्मप्रभकी प्रतिमा बनी हुई है। यहाँकी सभी मूर्तियोंके शारीरिक अवयव समानुपातिक हैं और उनकी गठन भरावदार है। बूढ़ी चन्देरी मार्ग बूढ़ी चन्देरी या प्राचीन चन्देरी वर्तमान चन्देरीसे उत्तर और उत्तर-पश्चिमकी ओर १४ कि. मी. दूर है । मार्ग इस प्रकार है-चन्देरीसे खनियाधाना-शिवपुरीकी तरफ जानेवाली सड़कपर ९ कि. मी. दूर मोहनपुरसे ५ कि. मी. कच्चा मार्ग है। साथ ही चन्देरी-ईसागढ़-रोडपर चन्देरीसे १३ कि. मि. दूर भाण्डरीसे भियादात होते हुए ८ कि. मी. कच्चा रास्ता है। बेतवा नदीपर बने हुए रानीघाटसे भी पश्चिम और उत्तर-पश्चिममें लगभग इतनी ही दूर यह स्थान पड़ता है। बूढ़ी चन्देरी जंगलोंसे घिरी है। मीलों तक बस्ती नहीं है। एक पहाड़ीपर कोट और गढ़ीके भग्नावशेष हैं। सारी पहाड़ी इन अवशेषोंसे पटी पड़ी है। चन्देरीसे बूढ़ी चन्देरीके लिए पक्की सड़क बन चुकी है। इतिहास शताब्दियोंसे यहाँ भग्नावशेष पड़े हुए हैं। इस विनाशको देखकर मनमें सहज ही यह प्रश्न उठता है कि ऐसा निर्मम विनाश किन हाथों द्वारा किया गया, किन्तु कोई समाधान नहीं मिलता। इतिहास-ग्रन्थोंको देखनेसे पता चलता है कि मालवापर जब मुसलमानोंने अधिकार किया, तभी
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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