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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ १०१ वह व्यक्ति इसके पश्चात् पहाड़से गिर पड़ा। वह शिला अब तक वहाँ ही रखी हुई है और लोग अब उसकी भी पूजा करते हैं। दूसरा है वह मार्ग जो पहाड़से नीचे सरोवर तक जाता है। उसका नाम है पड़ाशाह घाट। यह नाम पाड़ाशाहके नामपर ही पड़ा है, जिन्होंने यहाँ मन्दिर और मूर्ति बनवाये और जो इसी मार्गसे पाड़ों ( भैंसों) पर राँगा लादकर लाये थे। जनताने पाड़ाशाहके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करनेके लिए इस मार्गका नाम पाड़ाशाह-घाट रख दिया जो बोलचालकी भाषामें पड़ाशाहघाट कहलाने लगा। क्षेत्र-दर्शन सिद्धपुरा ग्रामसे पहाड़ीकी चढ़ाई लगभग ३ फलांग है। पहाड़ीके ऊपर समतल भूमिपर भी लगभग २-३ फलांग चलना पड़ता है। कहते हैं, पहले यहां हजारों जैन प्रतिमाएं थीं किन्तु उपेक्षा, धर्मोन्माद और निकृष्ट साधनसे धनोपार्जन करनेकी लालसाके कारण उन सभी प्रतिमाओंका विनाश हो गया। आततायियोंने धर्म-द्वेषवश अनेक मूर्तियोंको नष्ट कर दिया। धनके लोभसे मूर्तिचोर यहांकी अनेक मूर्तियोंके सिर काटकर ले गये। जैनोंकी उपेक्षाके कारण इस प्रकारको निन्द्य वृत्तिवालोंको अनुकूल अवसर प्राप्त हुआ। विनष्ट होनेसे जो कुछ बच रहा है, उसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है ___ मन्दिर नं. १-यह शान्तिनाथ मन्दिर है। मन्दिरके द्वारपर ललाटबिम्बपर एक फलकमें पद्मासन मुद्रामें एक तीर्थंकर प्रतिमा उत्कीर्ण है। उसके सिरके दोनों पार्यों में दो गज बने हुए हैं जो ऐरावत प्रतीत होते हैं । वे इन्द्र भगवान्की सेवामें भक्ति-भावसे बैठे हुए हैं। उनके अधोभागमें उनकी इन्द्राणी भी बैठी हुई है। . इस मन्दिरमें भूरा पाषाण काममें लिया गया है। इसकी प्रतिमाएँ भी भूरे पाषाणकी हैं। इस मन्दिरमें गर्भगृह एक ही है। उसमें भगवान् शान्तिनाथकी १६ फुट ऊँची एक प्रतिमा कायोत्सर्गे मुद्रामें ध्यानावस्थित है। यह प्रतिमा एक ही शिलासे उकेरी गयी है। मूर्तिके सिरपर तीन छत्र सुशोभित हैं। छत्रोंके ऊपर दुन्दुभिवादक हैं। भगवान्के चरणोंके दोनों ओर चमरेन्द्र सेवारत हैं। दो श्राविकाएं, जो वस्त्रालंकारोंसे अलंकृत हैं, सामग्री लिये भगवान्के चरणोंमें नमन करती दीख पड़ती हैं। एक शिलाफलकपर भगवान् नेमिनाथकी खड्गासन प्रतिमा है। इसके दोनों पार्यों में दो देवियां हैं। दायीं ओरकी देवी ललितासनमें बैठी हुई है। बायीं ओरकी देवी खड़ी हुई है । उसकी उँगली पकड़े हुए शुभंकर बालक खड़ा है। देवी अपने दूसरे हाथसे बालक प्रीतिकरको गोदमें लिये हुए है। इन देवियोंके दोनों ओर पावंद खड़े हैं। ये देवी-मूर्तियां अम्बिकाकी हैं, जो मातृदेवीका रूप है। एक शिलाफलकमें पाश्वनाथकी पद्मासन प्रतिमा है । फणावली खण्डित हो गयी है। पीठासन धरणेन्द्रपर आधारित है। प्रतिमाके दोनों ओर दो-दो खड्गासन तीर्थंकर प्रतिमाएं बनी हुई हैं। दायीं ओरकी एक प्रतिमा खण्डित कर दी गयी है । यह मूर्ति पंचबालयतिकी है। पार्श्वनाथकी एक पद्मासन प्रतिमाकी केवल फणावलो अवशिष्ट है । भामण्डलके ऊपर दोनों ओर गजका अंकन है। एक फलकमें पंचबालयतिकी प्रतिमा है। मध्यकी मूर्ति पद्मासन मुद्रामें है तथा उसके दोनों पार्यो में दो-दो खड्गासन तीर्थंकर प्रतिमाएँ हैं।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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