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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ - पहले यहाँ कोई बड़ी बस्ती रही होगी। आज भी यहाँपर पाषाणनिर्मित सैकड़ों भवनोंकी चौकियां और अवशेष मन्दिरके चारों ओर बिखरे पड़े हैं। जल और व्यापार आदिकी असुविधा होनेपर यहाँके निवासी शनैः-शनैः इस स्थानको छोड़कर पहाड़की तलहटीमें जा बसे। जैनोंकी अधिकताके कारण इस गांवका नाम सिद्धपुरा हो गया। सन् १५२८ में मुगल बादशाह बाबरने चन्देरीके हिन्दूनरेश मेदिनी रायपर भयानक वेगसे आक्रमण किया | हिन्दू ललनाओंने जौहर किया और वे अपने धर्मकी रक्षा करनेके लिए अग्नि-ज्वालाओंमें हँसते-हँसते कूद पड़ीं। हिन्दू वीरोंने केसरिया बाना पहनकर मुसलमानी सेनाके साथ भयंकर युद्ध किया किन्तु प्राण देकर भी वे मातृभूमिकी रक्षा न कर सके। विजयी मुगल सैनिकोंने लूट, बलात्कार और अपहरणके काण्डों द्वारा बाबरके जिहादको सफल बनाया। मार्गमें उन्हें जो भी मन्दिर और मूर्तियाँ मिलती गयीं, उनका भंजन करते गये। लगता है, गरीलाके मन्दिर और मतियाँ इसी जिहादमें तोडी गयीं। वहाँके मकान भी नष्ट कर दिये गये। गुरीला और सिद्धपुराके निवासी गांव छोड़कर भागनेपर बाध्य हुए। जिहादके इस क्रूर काण्डको औरंगजेबके समयमें भी शायद दुहराया गया। ___यहाँ भग्न भवनों और मन्दिरोंको देखनेपर प्रतीत होता है कि इनमें दो प्रकारके पाषाणोंका प्रयोग किया गया है-भूरे और काले। मन्दिर जिस पाषाणके बनाये गये, उनकी मूर्तियाँ भी उसी पाषाणकी बनायी गयी हैं। मन्दिर बनाने में ईंट-गारेका प्रयोग नहीं किया गया, केवल पाषाण ही काममें लाये गये हैं। अतिशय - इस क्षेत्रके अतिशयोंके प्रति जैन और अजैन दोनोंमें ही गहरी आस्था है। ग्रामीण लोग विभिन्न अवसरोंपर यहां मनौती मानने आते हैं। अगर किसीका पशु खो जाता है तो सिद्धबाबा ( एक शिला ) को चढ़ावा ( नारियल ) चढ़ाता है। उसका पशु मिल जाता है। अतिवृष्टि हो या अनावृष्टि, दोनों ही अवसरोंपर यहाँ आकर ग्रामीण बन्धु कीर्तन करते हैं और उनकी कामना पूर्ण हो जाती है। - इधर एक विचित्र किंवदन्ती प्रचलित है। यदि कोई व्यक्ति इस पहाड़ीपर आकर मार्ग भूल जाता है तो उसे एक बावड़ी दिखाई देती है। उसमें से उसे भोजन और जल मिलता है। तब कोई-न-कोई व्यक्ति आ मिलता है। फिर बाबड़ी अदृश्य हो जाती है। ___ इस क्षेत्रके प्रति इधरकी ग्रामीण जनताके मन में इतनी श्रद्धा है कि प्रचलित प्रथाके अनुसार प्रत्येक नवजात शिशुका मुण्डन-संस्कार यहीं कराया जाता है। उल्लेखनीय स्थान शान्तिनाथ मन्दिरके निकट दो स्थान विशेष उल्लेखनीय हैं, जिनसे १००० वर्षोंसे पहाड़ीपर जैनोंके धार्मिक आधिपत्य और प्रभावका पता चलता है। एक तो सिद्धबब्बा है। यह एक शिला है। यहीं लोग मनौती मानने आते हैं। यहाँके चमत्कारके सम्बन्धमें एक प्रत्यक्षदर्शीने हमें बताया-कई वर्ष पहलेकी घटना है। सिद्धबब्बापर कीर्तन हो रहा था। कीर्तनके पश्चात् प्रसाद बाँटा गया। किसी व्यक्तिने सिद्धबब्बापर ही वह प्रसाद खा लिया। देखते-देखते कहींसे कई फुट लम्बी-चौड़ी एक शिला हवामें उड़ती हुई आयी और उस व्यक्तिके पैरपर आकर गिर पड़ी। उसका सारा पैर बुरी तरह कुचल गया। तब सबने मिलकर पुनः कीर्तन किया और बाबा खुश हो गये। वह शिला जिस आकस्मिक ढंगसे आयो थी, वैसे ही वह उड़ती हुई एक स्थानपर जा गिरी।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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