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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ इस गुफामें १० तीर्थंकर प्रतिमाएं हैं तथा ३ प्रतिमाएं यक्षीको हैं । यक्षी प्रतिमाएं अम्बिकाकी हैं । देवी एक बालकको गोदमें लिये हुए खड़ी है, दूसरा बालक उसकी उँगली पकड़े खड़ा है। तीर्थंकर प्रतिमाओंमें एक प्रतिमा खड्गासन है, शेष सभी पद्मासन मुद्रामें हैं। ये सभी मूर्तियाँ संवत् १२८३ की हैं, इनमें से कुछ मूर्तियाँ संवत् १२८३ में ज्येष्ठ सुदी ३ गुरुवारको अन्तेशाह लम्बकंचुक ( लंवेचू) द्वारा प्रतिष्ठित हुई हैं।
इस क्षेत्रके जीर्णोद्धारका कार्य एवं सड़कका निर्माण दानवीर साहू शान्तिप्रसादजीकी ओरसे किया गया है।
वार्षिक मेला-चन्देरीके वार्षिक विमानोत्सवके दिन भगवान्का विमान खन्दारको आता है। महावीर जयन्तीका चल-समारोह भी यहाँपर आता है। वर्षा ऋतुमें जैन और जैनेतर लोग यहां वन-विहार और वन-भोजके लिए आते हैं। इस ऋतुमें यहाँको प्राकृतिक छटा निराली होती है।
गुरीलागिरि
मार्ग
श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र गुरीलागिरि मध्यप्रदेशके गुना जिलेमें मुंगावली तहसीलमें अवस्थित है। ललितपुर-चन्देरी मार्गपर ललितपुरसे २५ कि. मी. सड़क किनारे प्राणपुर गाँव है। यहाँसे, पगडण्डीसे ४ कि. मी. और चन्देरीसे ६ कि. मी. दूर सिद्धपुरा नामक ग्राम है। यहाँसे पहाड़ीपर ६ फलाँग चलनेपर यह क्षेत्र पड़ता है। प्राणपुरसे ५-६ कि. मी. कच्चे मार्गसे पैदल या बैलगाड़ी द्वारा सिरसौद ग्राम पहुँच सकते हैं। यहाँ जैन धर्मशाला और मन्दिर भी हैं। यहाँसे क्षेत्र एक-डेढ़ कि. मी. है। यहाँका जैन समाज तीर्थयात्रियोंके लिए बैलगाड़ी तथा सुरक्षाके लिए आदमीको भी व्यवस्था कर देता है। यही मार्ग सर्वश्रेष्ठ है। इतिहास
सेठ पाड़ाशाह १२वीं शताब्दीके विख्यात धर्मात्मा थे जिन्होंने अनेक स्थानोंपर भगवान् शान्तिनाथकी विशालकाय प्रतिमाओं और मन्दिरोंकी प्रतिष्ठा करायी। उन्होंने राँगेके व्यापारमें अपार धन अर्जित किया और उसका उपयोग मन्दिर-मूर्तियोंके निर्माणमें किया। जैनधर्मके प्रति उनकी श्रद्धा अगाध थी। अतः उन्होंने जैन मन्दिरों और मूर्तियोंका निर्माण कराया। उनकी धर्मपत्नी वैष्णव थीं। अतः उन्होंने कई स्थानोंपर वैष्णव मन्दिरोंकी प्रतिष्ठा करायी। मन्दिरों और मूर्तियोंके निर्माण तथा प्रतिष्ठाओंमें विपुल धनका व्यय होते देखकर जनतामें यह धारणा व्याप्त हो गयी कि सेठको कहींसे पारसमणि मिल गयी है और उसीसे सोना बनाकर वे मन्दिर आदि बनवाते हैं। कोई यह कहने लगा कि कहीं उन्होंने अपना राँगा सन्ध्याके समय उतारा था और देखा तो वह चाँदी हो गया था जिसे बेचकर सारा धन मन्दिरों-मूर्तियोंमें लगा दिया। इस प्रकार उनकी धर्मरुचिके सम्बन्धमें जनतामें नाना भाँतिकी किंवदन्तियाँ प्रचलित हो गयीं। इतना ही नहीं, उन्होंने जहाँ-जहाँ मन्दिर बनवाये, उनके सम्बन्धमें भी किंवदन्तियाँ फैल गयीं कि वे सभी स्थान अतिशय क्षेत्र बन गये। ___इसी सेठने गुरीलागिरिके ऊपर भी एक मन्दिर बनवाया। इसमें भी भगवान् शान्तिनाथकी भव्य मूर्ति विराजमान है। यहाँ बादमें १०-१२ मन्दिर और भी बने।