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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ यहाँ कायोत्सर्ग मुद्रा में बाहुबली स्वामीको एक अद्भुत मूर्ति है। इसे ग्रामीण लोग 'औघड़ बाबा' भी कहते हैं। उनके गलेमें दो सर्प लिपटे हैं। कटिके दोनों पार्यो में भी सर्प लिपटे हुए हैं। नाभिसे ऊपर दोनों ओर दो चूहे बने हुए हैं। दोनों हाथोंपर दो छिपकली बनी हुई हैं तथा पैरोंमें जंघेपर एक घुमावके साथ सर्प बने हैं। मूर्तियोंके दोनों ओर स्थान कम होनेके कारण दो प्रतिमाओंके बीच एक चमरवाहक बनाकर उसके दोनों हाथोंमें चमर दे दिया गया है जिससे दोनों ओर चमरधारी प्रतीत होते हैं । जहां स्थान अधिक है, वहाँ दोनों ओर पृथक्-पृथक् चमरेन्द्र बनाये गये हैं। - गुफा नं. २-यहाँसे नीचे उतरकर गुफा नं. २ मिलती है । यह सभीके मध्यमें है। यही गुफा यहाँको सर्वाधिक दर्शनीय और लोकप्रिय है। इसमें एक ही चट्टानमें ३५ फुट ऊँची शान्तिनाथ भगवान्की खड्गासन प्रतिमा है । मूर्ति काले पाषाणकी है। मूर्ति खण्डित है। इस मूर्तिके चरणोंके अधोभागमें ६ खड्गासन प्रतिमाएं हैं। उनके भी अधोभागमें ५ पद्मासन प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं । चरणोंके दोनों पार्यो में हाथियोंपर खड़े चमरधारी भगवान्की सेवा कर रहे हैं। बड़ी प्रतिमाके दायीं ओर १६ फुट उत्तुंग कायोत्सर्ग मुद्रामें तीर्थंकर मूर्ति है । बायीं और इतनी ही बड़ी पार्श्वनाथको मूर्ति थी। उसे काटकर निकाल लिया गया है किन्तु सर्पफण अभी तक बने हुए हैं। गुफा नं. ३-गुफा नं. २ से सीढ़ियों द्वारा कुछ ऊपर जानेपर प्रक्षिप्त चट्टानके नीचे पर्वतमें उकेरी हुई तीन प्रतिमाएं हैं। इनमें श्रेयान्सनाथकी प्रतिमा १६ फुटकी है। शेष दो प्रतिमाएं ८-८ फुटकी हैं। ये तीनों १६वीं शताब्दीकी हैं। तीनों प्रतिमाओंके दोनों पार्यों में गजपर चमरवाहक खड़े हुए हैं। यहाँ पाषाण-चरण भी बने हुए हैं। इनपर संवत् १७१७ मार्गशीर्ष सुदी १४ बुधवासरे अंकित है। ____ गुफा नं. ४-गुफा नं. ३ से कुछ ऊपरको नीचे झुकी हुई चट्टानपर एक आलेमें तीन प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं। मध्यमें एक तीर्थंकर प्रतिमा है और उसके दोनों ओर पार्श्वनाथ हैं। ये तीनों पद्मासनमें हैं और इनका आकार लगभग ३ फुट ६ इंच है। इनके दोनों ओर गजपर खड़े हुए चमरधारी हैं। पार्श्वनाथकी दोनों मूर्तियोंके दोनों ओर धरणेन्द्र-पद्मावती हैं तथा सिरपर सर्पफणावली है। यह गुफा १६वीं शताब्दीकी है। गुफा नं. ३ से कुछ ऊपर जानेपर एक बड़ा चबूतरा मिलता है। वहां खड़े होकर इन मूर्तियोंके दर्शन हो सकते हैं। गुफा नं. ५ --गुफा नं. ४ के समान चट्टानमें दो मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। एक तीर्थंकर प्रतिमा है जो पद्मासनमें ध्यानावस्थित है। दूसरी प्रतिमा बाहुबली स्वामीकी है। यह कायोत्सर्ग मुद्रामें है। गलेमें, कटिपर तथा जंघे तक सर्प लिपटे हुए हैं। श्रीवत्सके दोनों ओर नाभि तक दो चूहे बने हुए हैं तथा दोनों भुजाओंपर छिपकलियाँ हैं। कामदेव बाहुबलोके सुघड़ सलोने शरीरपर इन क्षुद्र जन्तुओंके कारण चित्रांकन-जैसा प्रतीत होता है। , गुफा नं. ६-गुफा नं. १ के दायें सिरेपर यह गुफा बनी हुई है। पहले इस गुफामें खड़ा होने योग्य स्थान नहीं था, झुककर दर्शन करने पड़ते थे। किन्तु अब उसकी छतको काटकर खड़ा होने योग्य स्थान बना दिया गया है। यही गुफा यहाँकी सबसे प्राचीन गुफा है। इसके मूर्ति-लेखोंमें संवत् १२८३ उत्कीर्ण है।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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