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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थं
किलेके दूसरे-तीसरे दरवाजेके बीचमें पड़ता है । क्षेत्रकी मूर्तियाँ और गुफाएँ यहाँको चट्टानों में से बनायी गयी हैं । इसके निकट ही बुढ़िया खोह, भड़ियाखोह आदि गुफाएँ हैं । बुढ़िया खोह के निकट संवत् ११३२ का एक शिलालेख और मन्दिरोंके भग्नावशेष मिलते हैं ।
इतिहास
वर्तमान चन्देरीमें कुछ शताब्दी पूर्व बलात्कारगणकी जेरहट शाखाका अत्यधिक प्रभाव था । लगता है, कुछ भट्टारकोंने यहाँ अपना उपपीठ भी बना रखा था । वे समय-समयपर यहाँ आकर ठहरते थे और लोगोंको मन्दिर निर्माण और मूर्ति प्रतिष्ठाके लिए प्रेरित करते रहते थे । पपौराके एक मूर्तिलेख में उल्लेख है - " संवत् १७१८ वर्षे फाल्गुने मासे कृष्णपक्षे श्री मूलसंघे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भ. श्री ६ धर्मकीर्ति तत्पट्टे भ. श्री ६ पद्मकीर्ति तत्पट्टे भ. श्री ६ सकलकीर्ति उपदेशेनेयं प्रतिष्ठा कृता....।” इसी प्रकार अहारके एक मूर्तिलेख में 'श्री धर्मकीर्ति उपदेशात्' तथा अहारके ही एक अन्य मूर्तिलेखमें 'भ. श्री सकलकीर्तिउपदेशात्' ऐसे उल्लेख उपलब्ध होते हैं । इनसे इस बातकी पुष्टि होती है कि बलात्कारगणकी जेरहट शाखाके भट्टारकोंने पपौरा अहार आदि क्षेत्रोंपर अनेक मन्दिरों और मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा करायी थी । इन्हीं भट्टारकोंके उपदेशसे चन्देरी नगरके निकट एक पहाड़ी में गुहा - मन्दिरोंका निर्माण किया गया । कन्दराओंके कारण ही इस स्थानको बोलचालमें कन्दराजी कहा जाता है जो बिगड़ते-बिगड़ते अब खन्दारजी कहलाने लगा है। इन भट्टारकोंमें से कुछकी छतरी और चबूतरे यहाँ पहाड़की तलहटीमें बने हुए हैं । इनमें सबसे विशाल स्मारक भट्टारक पद्मकीर्तिका है । एक पाषाण चरणपर संवत् १७१७ मार्गशीषं सुदी १४ बुधवासरे अंकित है । उपर्युक्त भट्टारकोंका भट्टारकीय काल क्रमशः धर्मकीर्ति संवत् १६४५-१६८३, पद्मकीर्ति संवत् १६८३ - १७११, सकलकीर्तिं संवत् १७११-१७२० है ।
क्षेत्र-दर्शन
पहाड़ के नीचे तलहटीमें भट्टारकोंकी छतरी और चबूतरोंके पास एक पाषाणशिलामें क्षेत्रपाल उकेरे हुए हैं । उसके सामने सड़क के दूसरी ओर मानस्तम्भ बना हुआ है, जिसमें चतुमुंखी तीर्थंकर प्रतिमा विराजमान है। इसके निकट ही धर्मशाला, कुआँ तथा पूजनादिके लिए मण्डप बना हुआ है । मानस्तम्भ के निकट ऊपर पहाड़ीपर गुहा-मन्दिरों तक जाने के लिए सीढ़ियाँ नी हुई हैं । यद्यपि यहाँ मुख्य दो गुफाएं हैं- एक तो मुख्य मूर्तिके दायीं ओर और दूसरी उसके बायीं ओर - किन्तु कुल गुफाओं की संख्या ६ है । इनमें से पाँच गुफाएँ १६वीं शताब्दीमें निर्मित हुई हैं और मात्र एक गुफा १३वीं शताब्दीकी है ।
गुफा नं. १ - यह गुफा बायीं ओरकी पहाड़ीपर है । इस ओर अन्य कोई गुफा नहीं है । इसके लिए पृथक् सीढ़ियाँ बनायी गयी हैं । गुफा-द्वार बहुत ही छोटा है तथा भीतर भी खड़े होने लायक ही ऊँचाई है । यह गुफा १६वीं शताब्दीकी है। इसमें मूलनायक भगवान् सम्भवनाथ की प्रतिमा पद्मासन मुद्रामें ध्यानावस्थित है और ३ फुट ६ इंच ऊँची है । इसके परिकरमें गजपर खड़े हुए चमरवाहक इन्द्र हैं जो प्रतिमाके दोनों ओर बने हुए हैं। इसके दोनों ओर तीर्थंकर प्रतिमाएँ विराजमान हैं जो ऊँचाईमें क्रमशः छोटी होती गयी हैं । मूलनायकके दायीं ओर चन्द्रप्रभ, शान्तिनाथ ( दोनों संवत् १९९१), कुन्थुनाथ ( संवत् १९९० ) और पुष्पदन्त ( संवत् १६९० ) की प्रतिमाएँ है । इसी प्रकार बायीं ओर मूलनायकसे आगे अनन्तनाथ, महावीर, पार्श्वनाथ, पद्मप्रभ और सम्भवनाथको मूर्तियाँ हैं । ये भी क्रमशः छोटी होती गयी हैं ।
३-१३