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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ ___ इसके मूर्ति-लेखसे ज्ञात होता है कि मूर्तिकी प्रतिष्ठा सुवर्णाचल (सोनागिर) पर हुई थी। लेखमें प्रतिष्ठाकारकको चन्द्रावती नगरका निवासी बताया गया है। चन्देरीको सम्भवतः चन्द्रावती भी कहते थे।
अजितनाथ, सम्भवनाथ और अभिनन्दननाथकी मूर्तियोंकी अवगाहना, वर्ण और गर्भगृहका आकार प्रथम गर्भगृहके समान है।
सुमतिनाथ भगवान्का वर्ण स्वर्ण है और अवगाहना बिना आसनके ३ फुट १ इंच है। गर्भगृहका आकार ६ फुट ६ इंच ४४ फुट ७ इंच है।
पद्मप्रभ भगवान्का वर्ण रक्त है, अवगाहना ३ फुट ७ इंच है। गर्भगृह ६ फुट ४ इंचx ४ फुट ५ इंच है।
पार्श्वनाथ भगवान्का वर्ण हरित है तथा मूर्तिको अवगाहना ४ फुट २ इंच है। शेष मूर्तियाँ और गर्भगृह ऋषभदेवकी मूर्ति और गर्भगृहके समान हैं । केवल वर्णमें अन्तर है । चन्द्रप्रभ और पुष्पदन्त श्वेतवर्णके, मुनि सुव्रतनाथ और नेमिनाथ नील वर्णके, वासुपूज्य और पद्मप्रभ रक्तवर्णके तथा सुपार्श्वनाथ और पार्श्वनाथ हरित वर्णके हैं । शेष तीर्थंकरोंकी मूर्तियां स्वर्ण वर्णकी हैं। प्रत्येक गर्भगृहके ऊपर शिखर है।
___महावीर स्वामीके गर्भगृहके पाश्वमें एक गन्धकुटी बनी हुई है। इसमें अधोभागमें ८, मध्यभागमें ४ और उपरिभागमें ४ एवं शोर्षवेदिकामें ४, इस प्रकार २० कलिकाएं बनी हुई हैं। सम्भवतः निर्माणके पश्चात् इनमें कभी मूर्ति प्रतिष्ठित नहीं की गयी। इसके निर्माणका क्या उद्देश्य था, यह भी किसीको ज्ञात नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है, यह विदेह क्षेत्रके २० तीर्थंकरोंके लिए बनायी गयी होगी। निर्माताकी भावना सम्भवतः यह रही होगी कि इस युगके भरत क्षेत्र सम्बन्धी २४ तीर्थंकरोंकी असाधारण मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हो गयीं, और क्षेत्रके वर्तमान २० तीर्थंकरों (विरहमानों) की मूर्तियां प्रतिष्ठित करके उनकी नवीनता और असाधारणतासे भक्तोंको चमत्कृत और प्रभावित किया जाये। किन्तु किसी कारणवश निर्माताकी भावना पूर्ण नहीं हो सकी। तबसे यह असाधारण रचना उपेक्षित दशामें पड़ी हुई है। हमें आश्चर्य नहीं होगा, यदि यह सुन्दर कृति शीघ्र ही जीर्णशीर्ण होकर बिखर जाये।
चौबीसी चौकके मध्यमें एक स्तम्भ है । इसके ऊपर कोई प्रतिमा नहीं है, किन्तु यह मानस्तम्भ स्थानीय प्रतीत होता है। मन्दिरके द्वितीय चौकके बरामदेमें भूगर्भके लिए जीना बना हुआ है। यह भूगर्भ में बने हुए एक कुएँकी ओर जाता है। पहले मन्दिरके अभिषेक और पूजनके लिए इसी कुएँसे जल लाया जाता था। मन्दिर बहुत विशाल है। उसके बगलमें एक धर्मशाला बनी हुई है, जिसमें त्यागी व्रतीजनोंके ठहरनेकी व्यवस्था है। इसीमें एक पक्का कुआं बना हुआ है। एक पृथक् धर्मशाला भी बनी हुई है, जिसमें कन्या पाठशाला चल रही है। इसीमें यात्रियोंके ठहरनेकी भी व्यवस्था है।
खन्दारगिरि
मार्य
चन्देरीसे पुरानी कचहरी होकर लगभग दो कि. मी. कच्चा मार्ग है । अथवा सड़क कटी घाटीके पाससे मिलती है। इससे क्षेत्र लगभग ३ कि. मी. दूर पड़ता है। यह क्षेत्र चन्देरीके