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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ मुगल वंशके संस्थापक बाबरने चन्देरीके राजा मेदिनीराय चौहानपर आक्रमण किया। इस युद्ध में राजाने वीरगति पायी। जब मुसलमानोंने किला जीत लिया तो हजारों वीरांगनाओंने २८ जनवरी सन् १५२८ को हंसते-हंसते जौहर-व्रत किया अर्थात् अपने शीलकी रक्षाके लिए जलती हुई अग्निमें कुदकर अपने प्राण दे दिये। जहाँगीरने ओरछानरेश मधुकरशाहके ज्येष्ठ पुत्र रामशाह बुन्देलाको राजाकी उपाधि देकर सन् १६०५ में चन्देरीका शासक बनाया। बुन्देला वंशके १२ राजाओंने इस नगरपर शासन किया। बुन्देला देवीसिंहने सिंहपुरमें, उनके पुत्र दुर्गासिंहने पंचम नगरमें, उनके पुत्र दुर्जनलालने रामनगरमें महल बनवाये। अन्तिम बुन्देला राजा मरदानसिंहने सन् १८५७ में झाँसीकी रानी लक्ष्मीबाईका साथ दिया। इस कारण अँगरेजोंने उन्हें राज्यच्युत कर दिया। मुगल कालमें चन्देरी राज्यमें १८ परगने थे और २२ लाखकी वार्षिक आय थी। __ बादमें ग्वालियरके सिन्धिया राजाओंका आधिपत्य इस नगरीपर हो गया। १९४८ ई. में ग्वालियर राज्यका विलीनीकरण मध्यभारतमें हो गया और १९५६ ई. में मध्यभारत मध्यप्रदेशमें आ गया । ग्वालियर राज्यमें चन्देरी गुना जिलेमें थी और अब भी है। यहाँकी साड़ियाँ भारतमें आज भो प्रसिद्ध हैं । यहाँ राजपूत राजाओं द्वारा बनवाये हुए महल, मन्दिर और सरोवर आज भी दर्शनीय हैं और मुस्लिम शासकों द्वारा बनवाये हुए मकबरे, मसजिदें, ताल और बावड़ी भी द्रष्टव्य हैं। यह नगर समुद्र-तलसे १७०० फुटकी ऊँचाईपर स्थित है तथा दुर्गका निर्माण नगरसे २०० फीट ऊँची पहाड़ीपर हुआ है। नगरके चारों ओर पर्वतमालाएँ हैं। पहाड़ियोंमें प्राकृतिक सरोवर और झरने हैं । इसके पूर्वमें ८ मीलपर बेतवा और पश्चिममें आठ मीलपर उर्वशी नदी बहती है। जैन संस्कृतिका केन्द्र विन्ध्य भूमि जैन संस्कृतिके लिए उर्वर क्षेत्र रही है। अति प्राचीन कालसे यहाँ जैनधर्मका प्रचार-प्रसार रहा है । चन्देरी भी जैन संस्कृतिका केन्द्र था। इसके चारों ओर प्रसिद्ध तीर्थस्थल हैं-जैसे सिद्धक्षेत्र श्रमणगिरि ( सोनागिर ) एवं अतिशय क्षेत्र देवगढ़, खजुराहो, पवा, पपौरा, सेरौन, अहार, तपोवन (थूवौन ), गोलाकोट, पचराई, भियादांत, भामोन, तूमैन, आमनचार, गुरीलागिरि आदि। क्षेत्र-दर्शन मन्दिरके मुख्य द्वारमें प्रवेश करनेपर एक चौक मिलता है, जिसमें एक ओर पुजारियोंके लिए स्नानघर है । दालानमें स्वाध्याय और सामायिक करनेकी सुविधा है । दालानमें ही प्रवेशद्वार है। इस द्वारमें प्रवेश करनेपर दूसरा चौक मिलता है जिसमें चारों ओर बरामदोंमें १२ वेदियाँ बनी हुई हैं । इनमें ९-१०वीं वेदीमें कुछ प्राचीन मूर्तियां विराजमान हैं। ये कहाँसे आयीं यह ज्ञात नहीं हो सका । ये सभी मूर्तियां अपनी शैली आदिसे १०-११वीं शताब्दीकी प्रतीत होती हैं। यद्यपि एक मूर्तिपर लेख है किन्तु अस्पष्ट होनेके कारण पढ़नेमें नहीं आता। " इसके पश्चात ततीय चौकमें जाते हैं। इसी में चारों ओर २४ गर्भगह बने हए हैं। प्रथम पंक्तिमें ४ गभंगृह हैं । द्वितीय पंक्तिमें ८, तृतीय पंक्तिमें ७ और चतुर्थ पंक्तिमें ५ गर्भगृह हैं। - प्रथम गर्भगृहमें ऋषभदेव भगवान्की स्वर्णवर्ण पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। भूतिकी अवगाहना ३ फुट ५ इंच है। गर्भगृहका आकार ७ फुट ३ इंच: ५ फुट ३ इंचा है। "
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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