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________________ भारतके विगम्बर जैन तीर्थ टाड (राजस्थान) ने चन्देरीको ही चेदि माना है। आईने अकबरीके अनुसार प्राचीन कालमें चन्देरी बहुत बड़ा शहर था। कुछ इतिहासकारोंकी मान्यता है कि महाभारत कालमें चेदि जनपदकी राजधानी शुक्तिमती थी और गुप्त-कालमें कालिंजर था। अनघं राघवके अनुसार कलचुरि कालमें चेदि मण्डलकी राजधानी माहिष्मती थी। चन्देरीका नामकरण चन्देरी नगर बहुत प्राचीन नहीं प्रतीत होता । चन्देरीका नामकरण किस प्रकार हुआ, इस सम्बन्धमें प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता एम. वी. गर्दे ने 'ए गाइड टु चन्देरी' नामक पुस्तकमें तीन विकल्प दिये हैं १. चेदिसे चन्देरी बन गया हो। २. चन्द्रगिरिसे चन्देरी नाम पड़ा हो। वर्तमान चन्देरीमें जिस पहाड़ोपर किला है, वह चन्द्रगिरि माना गया है। ३. चन्देलोंकी राजधानी होनेसे इस नगरका नाम चन्देली पड़ा। चन्देलीसे चन्देरी हो गया । कुछ शिलालेखोंमें 'चन्देली' शब्द भी मिला है। ऐतिहासिक महत्त्व वर्तमान चन्देरीसे १४ कि. मी. उत्तर-पश्चिममें प्राचीन चन्देरीके भग्नावशेष हैं। गजेटियर और गाइडमें प्राचीन चन्देरीके लिए अंगरेजीमें 'ओल्ड चन्देरी' लिखा जाता रहा है, जिसका अनुवाद हिन्दीमें पुरानी न करके बूढ़ी कर दिया। इस प्रकार 'बूढ़ी चन्देरी' शब्द अधिक पुराना नहीं है। बूढ़ी चन्देरी वह स्थान कहलाता है जहां ऐतिहासिक और प्राचीन चन्देरी नगर आबाद था और वर्तमानमें जहाँपर उस प्राचीन नगरके भग्नावशेष बिखरे पड़े हैं। ग्वालियरके गूजरी महलमें पुरातत्त्व संग्रहालय है। वहाँ चन्देरीसे प्राप्त एक शिलालेखमें प्रतिहारवंशी १३ राजाओंके नाम हैं । इनमें से सातवें राजा कीर्तिपाल देवने प्राचीन नगरके दक्षिणपूर्वमें एक दुर्ग बनाया और अपनी राजधानी वहीं ले गये। दुर्गका नाम राजाने अपने नामपर कीर्तिगढ़ रखा तथा दुर्गके पीछे एक सरोवर और मन्दिर बनवाया जो राजाके नामपर 'कोतिनारायणका मन्दिर' कहलाया। किला और तालाब तो अभी हैं, पर मन्दिर नहीं है। सम्भवतः वह टूट गया। शिलालेखमें कीर्तिपालका समय अंकित नहीं है । नवीन चन्देरी बसानेकी यह घटना सम्भवतः ग्यारहवीं शताब्दीके प्रथम चरणमें हुई । सम्भवतः यह वही कीर्तिपाल अथवा कीर्तिराज था, जिसने महमूद गजनवीके समक्ष सन् १०२१ में आत्मसमर्पण किया था। इसके पश्चात् यहाँ मुसलमानोंके जितने भी आक्रमण हए. सभी वर्तमान चन्देरीपर ही हए। मुस्लिम इतिहासकारोंमें चन्देरीका सर्वप्रथम उल्लेख अलबेरुनीने किया है। यह विद्वान् महमूद गजनवीके आश्रयमें रहता था। यह महमूद गजनवीके साथ भारत आया था और यहाँसे लौटकर उसने 'किताबुल हिन्द' लिखी थी। मुस्लिम सल्तनत-कालमें अनेक बार चन्देरी दुर्गपर आक्रमण हुए। तेरहवीं शताब्दीमें चन्देरी चन्देलनरेश चाहड़देवके अधिकारमें चली गयी। सन् १२५१ में नासिरुद्दीन महमूदके प्रधानमन्त्री बलवनने चन्देरीपर आक्रमण किया और इसे हस्तगत कर लिया। किन्तु थोड़े दिनों बाद यह नगरी फिर चन्देल राजाओंके अधिकारमें चली गयी। सन् १३०४ में अलाउद्दीन खिलजीके सेनापति आइनुलमुल्कने इसपर आक्रमण किया। इसके बाद फीरोजशाह तुगलक और सिकन्दर लोदीने आक्रमण किये।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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