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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ मार्ग सेण्ट्रल रेलवेके ललितपुर स्टेशनपर उतरकर वहाँसे सड़क-मार्गसे ३४ कि. मी. चन्देरी है। चन्देरी-अशोकनगर सड़क-मार्गपर चन्देरीसे १४ कि. मी. और अशोकनगरसे लगभग ५०कि.मी. दूर पिपरौल ग्राम है। वहाँसे ८ कि. मी. कच्चे मार्ग द्वारा थवौन क्षेत्र है। दूसरा मार्ग अशोकनगरसे सीधा २६ कि. मी. है। इस मार्गपर आठ महीने मोटरका आवागमन रहता है। पश्चिमी रेलवेकी कोटा-बीना लाइनपर मुंगावली स्टेशन उतरकर वहाँसे भी चन्देरी जा सकते हैं। इस प्रकार ललितपुर, अशोकनगर, मुंगावली तीनों ही स्थानोंसे क्षेत्रपर जा सकते हैं और मार्गकी दूरी भी लगभग समान पड़ती है। चन्देरी... चौबीसी मन्दिर चन्देरी चौबीसी अर्थात् चौबीस तीर्थंकरोंकी अत्यन्त कलापूर्ण और तीर्थंकरोंके ही वर्णकी मूर्तियोंके कारण बुन्देलखण्डके तीर्थक्षेत्रोंको पंक्तिमें अपना एक विशिष्ट स्थान रखती है। चौबीस तीर्थंकरोंकी ये मूर्तियाँ यहाँके बड़े मन्दिर में विराजमान हैं। यहाँके एक स्तम्भ-लेखमें संवत् १३५० अंकित होनेसे यह मन्दिर इतना या इससे भी प्राचीन प्रतीत होता है। इसी मन्दिरमें चौबीस शिखरयुक्त कोठरियोंमें २४ तीर्थंकरोंकी पद्मासन मूर्तियाँ हैं। मूर्तियोंका वर्ण वही है जो शास्त्रोंमें विभिन्न तीर्थंकरोंका बताया गया है, अर्थात् १६ स्वर्ण वर्णका । वर्णकी, २ श्याम वर्णकी, २ हरित वर्णकी और २ रक्त वर्ण की। सभी मूर्तियोंकी रचना-शैली एकसी है। ये मूर्तियाँ जयपुरसे बनवाकर मँगायी गयी हैं। इनकी कला अनुपम है। ऐसी सुन्दर और शास्त्रोक्त वर्णकी चौबीसी अन्यत्र नहीं है। उत्तर भारत और दक्षिणमें अनेक चौबीसी मन्दिर हैं जहाँ चौबीस तीर्थंकरोंकी मूर्तियाँ एक साथ मिलेंगी अथवा विभिन्न वेदियोंपर होंगी। बहुधा सभी मूर्तियाँ श्वेत या श्याम वर्णको मिलती हैं किन्तु यथावर्ण नहीं। चन्देरीको चौबीसीके निर्माणमें कलाकारने कलाको पराकाष्ठापर पहुंचा दिया है। ___ इस विख्यात चौबीसीके निर्माता संघाधिपति सवाईसिंह वजगोत्री खण्डेलवाल थे, जो सवाई चौधरी हिरदेशाह फतहसिंह फौजदारके गुमाश्ता थे। सवाईसिंहकी भार्याका नाम कमला था। इस चौबीसीकी प्रतिष्ठा संवत् १८९३ फाल्गुन कृष्णा ११ को हुई। सोनागिरिके भट्टारक चन्द्रभूषण इसके प्रतिष्ठाचार्य थे। मूर्तियोंकी चरण-चौकीपर निम्नलिखित लेख उत्कीर्ण है जिससे मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा, प्रतिष्ठाकाल, प्रतिष्ठाकारक और प्रतिष्ठाचार्यके सम्बन्धमें पूरा प्रकाश पड़ता है- “संवत् १८९३ फाल्गुन कृष्णा ११ भृगौ सुवर्णाचले भट्टारक चन्द्रभूषणस्योपदेशात् चन्द्रावत्यां सवाई सिंघई राजधर हिरदेशाह चौधरी मर्दनसिंहस्य शुभचिंतक संघरधिपति लाला सवाईसिंह नित्यं प्रणमन्ति प्रतिष्ठा कारपिता गजरथ सहित ।” इस मन्दिरके अतिरिक्त नगरमें एक दिगम्बर जैन मन्दिर, एक दिगम्बर जैन चैत्यालय और एक श्वेताम्बर जैन मन्दिर है।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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