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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थं ९१ I २३. पार्श्वनाथ जिनालय - भगवान् पार्श्वनाथकी मूलनायक प्रतिमा कायोत्सर्गासन में विराजमान है । अवगाहना ६ फुट ३ इंच है । ऊपर दोनों ओर दो पद्मासन प्रतिमाएँ हैं । नीचे चमरवाहक हैं । मन्दिर के निर्माता प्रानपुरा निवासी कोई मोदी हैं । नाम अस्पष्ट है । इस मन्दिरकी प्रतिष्ठा मन्दिर नं. १८ के साथ हुई थी । इस प्रकार मन्दिर नं. १८ से २३ तक ६ मन्दिरोंकी प्रतिष्ठा एक साथ हुई थी । ये मन्दिर एक पंक्ति में हैं । ये मूर्तियाँ विशेष मनोज्ञ नहीं हैं । सम्भवतः सब मूर्तियों का शिल्पकार एक ही व्यक्ति था । I २४. चन्द्रप्रभ जिनालय - यह मन्दिर आधुनिक है। इसका निर्माण किसी उदासीन श्रावकने कराया था । परन्तु मूर्ति विराजमान करानेके पूर्व ही वे स्वर्गवासी हो गये । अतः मन्दिर कुछ वर्षों तक रिक्त पड़ा रहा। फिर अथाईखेड़ा निवासी मदनलाल बुद्धूलाल सर्राफने इसमें वेदी बनवाकर संवत् १९७० के मार्गशीर्ष में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करायी । मूलनायक भगवान् चन्द्रप्रभकी श्वेतवर्णं डेढ़ फुट ऊँची पद्मासन प्रतिमा है । इसके अतिरिक्त इस वेदीपर पाषाण और धातुको १० प्रतिमाएँ हैं । इस मन्दिरके बाहर बरामदे में बाहरसे लायी हुई कुछ प्राचीन मूर्तियां रखी हुई हैं । एक मूर्ति बरौदिया ग्रामसे लायी गयी है, जो ३ फुट ऊँची है। इसकी चौड़ाई ढाई फुट है । यह श्वेतवर्ण है और पद्मासन है । मूर्ति के शीर्ष भागपर कोष्ठक में अर्हन्त विराजमान है । उसके दोनों पावों में पुष्पवर्षा करते हुए आकाशचारी गन्धर्बं हैं । चरणोंके दोनों ओर वस्त्राभूषणोंसे अलंकृत चमरेन्द्र हाथमें चमर लिये हुए खड़े हैं । मूर्तिके शेष भागमें भव्य अलंकरण है । कुछ मूर्तियाँ पुराने थूवन से लाकर यहाँ रखी गयी हैं । सम्भवतः ये मूर्तियाँ वहाँ उत्खननमें या खेतों में प्राप्त हुई थीं । २५. ऋषभदेव जिनालय - भगवान् ऋषभदेवकी १६ फुट उत्तुंग खड्गासन प्रतिमा विराजमान है । छत्रके दोनों ओर दो पद्मासन प्रतिमाएँ हैं । नीचे चमरवाहक खड़े हैं । चरणचौकीपर दोनों ओर हाथी खड़े हैं। मध्यमें वृषभ लांछन अंकित है । इसकी प्रतिष्ठा सभासिंह (सवाई सिंह ) चन्देरीनिवासीने संवत् १८७३ में वैशाख शुक्ला ३ ( अक्षय तृतीया ) के दिन करायी थी । इन्होंने ही इसके बीस वर्ष बाद चन्देरीकी विख्यात चौबीसीकी भी प्रतिष्ठा करायी थी । इस विशाल मूर्ति के पीठासनपर लेख उत्कीर्ण है । इस लेखसे प्रतिष्ठाकारक, प्रतिष्ठाकाल, तत्कालीन राज्यकाल आदि महत्त्वपूर्ण बातोंपर प्रकाश पड़ता है । वह लेख इस प्रकार है 'अथ शुभ संवत्सरे विक्रमादित्य राज्योदयात् १८७३ मासोत्तम मासे वैशाखे शुभे शुक्लपक्षे ३ भौमवासरे श्री मूलसंचे सरस्वती गच्छे बलात्कारगणे कुन्दकुन्दाम्नाये प्रवर्तिते श्री महाराजा - धिराज श्री दौलतराव आलीजा बहादुर राज्ये कर्नल जान वतीस ( वैप्टिस) बहादुर राज्ये चौधरी सवाई राजधर हिरदेशाह चौधरी फतहसिंह वोहरा गोत्रे गुमाश्ता सवाईसिंह, भार्या कमला खण्डेलवाल वंशे बज गोत्रे एते सपरिवारो नित्यं जिनपदे प्रणमति ।' मन्दिर संख्या २४ को छोड़कर सभी मन्दिरोंकी मूर्तियाँ देशी पाषाणकी हैं और अधिकतर मूलनायक प्रतिमाएँ खड्गासन हैं । क्षेत्रस्थ मन्दिरोंका जीर्णोद्धार समय-समयपर होता रहा है । जीर्णोद्धार करानेवालों में अन्यतम दानवीर साहू शान्तिप्रसादजीका नाम उल्लेखयोग्य है ।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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