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________________ मध्यप्रदेशके विवम्बर जैन तीर्थ में वैशाख शुक्ला पंचमीको हुई। मूर्तिके अधोभागमें हाथीपर चमरवाहक खड़े हैं। मन्दिर-द्वारके ललाट-बिम्बपर १ पद्मासन और २ खड्गासन प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं। इस मन्दिरसे संलग्न दो कोठरियोंमें कुछ खण्डित-अखण्डित मूर्तियाँ वरौं ग्रामसे लाकर रखी गयी हैं। दायीं ओरकी कोठरीमें तीन खड्गासन मूर्तियां हैं जिनमें मध्यकी मूर्ति भगवान् सम्भवनाथकी ७ फुट ४ इंच है। मूर्तिलेखके अनुसार इसकी प्रतिष्ठा संवत् १६९४ में हुई थी। बायीं ओर भगवान् ऋषभदेवकी ४ फुट ९ इंच तथा दायीं ओर भगवान् महावीरकी ४ फुट ४ इंच ऊँची मूर्ति है। बायीं ओरको कोठरीमें चार मूर्तियाँ रखी हैं। भगवान् चन्द्रप्रभकी मूर्ति ६ फुट ८ इंच, भगवान् सम्भवनाथकी ४ फुट ९ इंच तथा भगवान् अरनाथकी ४ फुट ६ इंच है। इन सबके पीठासनपर लांछन अंकित है। एक अन्य मूर्ति १ फुट ३ इंच की है। इसमें लांछन नहीं है। इनके अतिरिक्त तीन खण्डित मूर्तियां हैं। इस मन्दिरके पीछे चबूतरेपर कुछ प्राचीन प्रतिमाएं रखी हैं जो इधर-उधरसे एकत्रित की गयी हैं। इनमें चतुर्मुखी ( सर्वतोभद्रिका ), शासनदेवता, कुबेर और तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं। . ४-एक हॉलमें संग्रहालय बनाया जा रहा है। इसमें कुछ प्राचीन मूर्तियाँ संग्रहीत हो चुकी हैं। इनमें एक मूर्ति कायोत्सर्गासनमें है और १२ फुट ऊँची है। इसका भामण्डल अति भव्य है। मूर्तिके दोनों ओर यक्ष-यक्षी बने हुए हैं। यह मूर्ति भामौनसे लायी गयी है। संग्रहालयके बाहर लाल पाषाणकी ५ फुट ४ इंच अवगाहनावाली पद्मासन मूर्ति रखी हुई है, जो अति भव्य है। ये मूर्तियाँ भामौन, वरौं, पाटखेड़ा आदि ग्रामोंसे संग्रहीत की गयी हैं। ५. शान्तिनाथ जिनालय-मूलनायक भगवान् शान्तिनाथकी खड्गासन प्रतिमा है जो १८ फुट ऊँची और ६ फुट ७ इंच चौड़ी ( कन्धे से कन्धे तक ) है। शीर्षके दोनों पार्यों में पुष्पमाल लिये हुए गन्धर्व हैं। उनसे नीचे दो खड्गासन तीर्थंकर मूर्तियां हैं। दोनों ही मूर्तियोंके दोनों पार्यों में चमरवाहक हैं। मूतिके अधोभागमें बायीं ओर पद्मावती देवी है और दायीं ओर अम्बिका। इनकी अवगाहना साढ़े पांच फुट है । अम्बिकाकी गोदमें एक बालक है, दूसरा बालक उँगली पकड़े हुए खड़ा है। शीर्षपर आम्रस्तबक है और मध्यमें नेमिनाथ भगवान् विराजमान हैं। पद्मावती चतुर्भुजी है। उसके दो हाथोंमें कमल हैं, शेष दो भुजाएँ खण्डित हैं। देवी चूड़ियां, कड़े, गलहार, मेखला आदि रत्नाभरणोंसे सज्जित है। देवीके सिरपर सर्पफण-मण्डप है जो उसके नागकुमार जातिको इन्द्राणी होनेका सूचक है। फणके ऊपर भगवान् पार्श्वनाथ विराजमान हैं। उनके दोनों ओर किन्नर नृत्यमुद्रामें अंकित हैं। शान्तिनाथ भगवान्की मूर्ति समचतुरस्र संस्थानवाली है। उसके प्रत्येक अवयवमें समानुपातिक उभार और सौन्दर्य है। सिरके कुन्तल मोहक हैं। कणं स्कन्धचम्बी हैं। मखका लावण्य और रूपच्छटा मोहक है। इस मूर्तिके प्रतिष्ठाकारक और इस मन्दिरके निर्माता सेठ पाड़ाशाह कहे जाते हैं। इनके द्वारा प्रतिष्ठित मन्दिर-मूर्तियोंपर कहीं भी मूर्तिलेख, निर्माता और प्रतिष्ठाकारकके नाम आदि उत्कीर्ण हुए नहीं मिलते। केवल अनुश्रुतिके आधारपर ही विभिन्न स्थानोंके समान यहां भी उन्हें इस मन्दिर और मूर्तिका प्रतिष्ठाकारक मान लिया गया है। . ... ___ इस मन्दिरके सामने सभामण्डप था जो मन्दिरके साथ ही बनाया गया होगा। उसे चारों ओरसे बन्द करके हॉलका रूप दे दिया गया है और उसमें संग्रहालय बनाया जा रहा है। ६. छोटे पंचभइयोंका मन्दिर-भगवान् आदिनाथकी कायोत्सर्ग मुद्रावाली ६ फुट ऊंची मूर्ति है । इनकी जटाएं अद्भुत हैं और पादचुम्बी हैं । ऐसी पादचुम्बी जटाएं अन्यत्र दुर्लभ हैं।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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