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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ ... इनके दोनों ओर पार्श्वनाथ भगवान्की ४ फुट ७ इंच ऊँची खड्गासन मूर्तियां विराजमान हैं। पार्श्वनाथके पार्श्वमें एक पद्मासन प्रतिमा पांच फुटकी है। द्वारपर ११ पंक्तियोंका लेख है। इससे ज्ञात होता है कि मन्दिरका निर्माण सन् १६८० में हुआ है। ७. पार्श्वनाथ मन्दिर-यह मन्दिर बड़े पंचभइयोंका कहलाता है। मूलनायक प्रतिमा भगवान् पार्श्वनाथकी है। यह खड्गासन है और इसकी अवगाहना १५ फुट है। इस प्रतिमाके दोनों ओर दो खड्गासन और दो पद्मासन मूर्तियां हैं। मूलनायकके हाथोंसे अधोभागमें गजपर चमरेन्द्र खड़े हैं। सबसे नीचेके भागमें दोनों ओर दो-दो भक्त हाथ जोड़े बैठे हुए हैं। बायीं ओरकी दीवारमें भगवान् चन्द्रप्रभकी १३ फुट ३ इंच तथा भगवान् नेमिनाथकी ८ फुट ऊँची मूर्तियां विराजमान हैं। इसी प्रकार दायों ओरकी दीवारमें भगवान् शान्तिनाथकी ८ फुट और भगवान् महावीरको १३ फुट ३ इंच मूर्तियाँ विराजमान हैं। ये सभी मूर्तियाँ कायोत्सर्गासनमें हैं। भगवान् महावीरकी चरणचौकीपर मूर्तिलेख अंकित है, जिसके अनुसार इसकी प्रतिष्ठा वैशाख शुक्ला ५ संवत् १६७१ को मूलसंघ, बलात्कारगणके भट्टारक धर्मकीतिके उपदेशसे संघपति भवानीदासने बुन्देलवंशी राय मनोहरदासके राज्यमें करायी। मूर्तिलेखमें भट्टारक धर्मकीर्तिकी गुरु-परम्परा इस प्रकार दी गयी है–भट्टारक भुवनकीर्ति, तत्पट्टे भट्टारक सहस्रकीर्ति, तत्पट्टे भट्टारक पद्मनन्दि, तपट्टे भट्टारक यशकीर्ति, तत्पट्टे भट्टारक ललितकीर्ति, तत्पट्टे भट्टारक धर्मकीर्ति। ८. यह गुमटी हनुमान्जीकी है। अनुश्रुति प्रचलित है कि यह मन्दिर सेठ पाड़ाशाहने अपनी वैष्णव पत्नीकी प्रसन्नताके लिए बनवाया था। जैन पुराणोंमें यद्यपि हनुमानजी कामदेव और विद्याधर बताये गये हैं किन्तु जैन धर्मानुयायी सेठने केवल अपनी पत्नीको प्रसन्न करनेके लिए ही हनुमान्जीको वानरमुख और पूंछयुक्त बनवाया। फिर भी सेठने इस वैष्णव आकारमें जैन रंग , भर दिया। पुराणोंमें वर्णन मिलता है कि रामने सीताका पता लगानेके लिए हनुमान्को लंका भेजा। मार्गमें उन्होंने दो मुनियोंको जलते हुए देखा। उन्होंने उनका उपसर्ग दूर किया। हनुमान्जीकी इस मूर्तिके कन्धोंपर दो मुनिराज विराजमान हैं। यह दृश्य जैन पुराणोंके उपर्युक्त उपसर्गनिवारणके प्रसंगका स्मरण दिलाता है। यह मूर्ति ७ फुट ऊंची है। ...९. शासनदेवीकी ५ फुट ३ इंच ऊँची मूर्ति है। शीर्षपर मध्यमें पद्मासन और दोनों पार्योमें खड्गासन तीर्थंकर मूर्तियां हैं। यह किस यक्षीको मूर्ति है, यह स्पष्ट नहीं हो पाया। इसके पार्श्वमें सरस्वतीको ३ फुट ६ इंच अवगाहनावाली भव्य मूर्ति है। देवी अपने वाहन हंसके ऊपर आसीन है और अष्टभुजी है। एक हाथ अक्षमालासहित वरद मुद्रामें है। दूसरे हाथमें कमण्डलु है । शेष भुजाएं खण्डित हैं । देवी वीणा धारण किये हुए है। दायीं-बायीं ओर देवियां खड़ी हुई हैं। दोनों हाथ वरद मुद्रामें हैं। दायीं दीवारके सहारे एक शिलाफलकमें अम्बिकाकी खण्डित मूर्ति है। उसकी गोदमें बालक है । उसके दायीं ओर आम्रगुच्छक लटक रहे हैं । हाथ खण्डित है तथा छातीका भी ऊपरी भाग खण्डित है। इसी गर्भालयमें चार स्तम्भ-खण्ड रखे हुए हैं। इनमें से दोमें तीर्थंकर मूर्तियां हैं तथा दोमें यक्षी-मूर्तियां हैं। गर्भालयके प्रवेशद्वारके ललाट-बिम्बके ऊपर पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा स्थित है। इस मन्दिरके सम्बन्धमें भी अनुश्रुति प्रचलित है कि इसे सेठ पाड़ाशाहने अपनी वैष्णव पत्नीको प्रभावित करनेके लिए बनवाया था।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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