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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ इन युगल सरिताओंके मध्य स्थित क्षेत्रको प्राकृतिक सुषमा अवर्णनीय है । ये नदियां कलकल ध्वनि करती हुई पर्वत-शिलाओंसे टकराती, उछलती, मचलती, बहती अत्यन्त लुभावनी लगती हैं । एक ओर पर्वतमालाएँ, उनपर छितराये हुए सघन वनकी हरीतिमा और उसके बीच सिर उठाकर झांकते हुए जिनालयोंके उत्तुंग शिखर तथा उनके शीर्षपर फहराती हुई धर्म-ध्वजाएँ-ये सब मिलकर इस सारे अंचलको, सारे वातावरणको एक स्वप्नलोक-सा बना देते हैं। और भक्त-हृदय आध्यात्मिक साधनाके उपयुक्त इस प्रशान्त पावन लोकमें आकर सारे भौतिक अवसादोंको भूल जाता है। उसका मन अध्यात्मको रंगोनियोम डूब जाता है। क्षेत्रके नामकी व्युत्पत्ति जिस प्रकार बौद्ध साहित्यमें 'तुम्बवन' का नाम आता है जो अब 'तूमैन' कहलाता है, उसी प्रकार प्राचीन कालमें इस क्षेत्रका नाम 'तपोवन' रहा होगा। तपोवन शब्द विकृत होकर 'थोवन' हो गया। कुछ लोग इसे थूवौन भी कहते हैं। क्षेत्र-दर्शन क्षेत्रपर मन्दिरोंकी कुल संख्या २५ है । दर्शनार्थियोंकी सुविधाके लिए मन्दिरोंपर जो क्रमांक लिखे हुए हैं, उनके अनुसार इन मन्दिरोंका विवरण इस प्रकार है चन्देरी-अशोकनगर सड़कके किनारे ही क्षेत्र अवस्थित है। बस क्षेत्रके प्रवेशद्वारपर रुकती है। प्रवेशद्वारमें प्रवेश करते ही क्षेत्रका कार्यालय है। यह धर्मशाला है। इसमें कुल २६ कमरे हैं। धर्मशालामें बिजलीकी व्यवस्था है। जलके लिए कुआँ है। इस धर्मशालासे मिली हुई एक पुरानी और कच्ची धर्मशाला है । इसमें कमरोंके ऊपर खपरैल पड़ी हुई है। धर्मशालाके पृष्ठभागमें मन्दिरों तक जानेका मार्ग है। मन्दिर नं. १. पार्श्वनाथ जिनालय-इसमें भगवान् पाश्वनाथकी मूलनायक प्रतिमा लगभग १५ फुट ऊँची खड्गासन है । निकटवर्ती थूवौन ग्रामके निवासी लछमन मोदी और पंचम सिंघईने संवत् १८६४ में वैशाख शुक्ला पूर्णमासीके दिन इसकी प्रतिष्ठा करायी। मूलनायकके दोनों ओर दो खड्गासन और उनसे नीचे दो पद्मासन प्रतिमाएं हैं तथा मन्दिरके ऊपर तीन शिखर बने हुए हैं, जिनमें तीन मूर्तियां विराजमान हैं। मूलनायकके सिरके ऊपर सर्पफण-मण्डप बना है। इसमें फणावली पृथक्-पृथक् सोके द्वारा अति कलापूर्ण ढंगसे बनायी गयी है। ये सर्प प्रतिमाके कन्धोंके दोनों पावों में स्पष्ट परिलक्षित होते हैं। प्रतिमाके चरणोंके दोनों पार्यो में चमरेन्द्र खडे हैं। गर्भगृहका आकार ११ फुट ३ इंच ४१० फुट १० इंच है। २. पाश्र्वनाथ जिनालय-इसमें भगवान् पार्श्वनाथकी कायोत्सर्गासनमें मूलनायक प्रतिमा है। इसकी अवगाहना १२ फुट है। इसके दोनों ओर दो खड्गासन और दो पद्मासन बिम्ब हैं । इस मन्दिरका निर्माण थूवौननिवासी श्री खुशालराय मोदीने कराया और संवत् १८६९ में माघ शुक्ला त्रयोदशीको प्रतिष्ठा करायी । गर्भगृहका आकार ११ फुट २ इंच x १० फुट १० इंच है। ३. नेमिनाथ जिनालय-इसमें मूलनायक भगवान् नेमिनाथकी खड्गासन मूर्ति विराजमान है। यह पांच फुट ऊँची है। मूर्ति अत्यन्त मनोज्ञ है। छत्रके बगल में दो पद्मासन बिम्ब बने हुए हैं। मूलनायककी नाक, हाथकी अंगुली और छोटी मूर्तियोंके मुख खण्डित हैं। मन्दिरके निर्माता मोहरी ग्रामनिवासी कल्ले सिंघई थे जिनके वंशज अभी पिपरई गांवमें हैं। प्रतिष्ठा संवत् १८७२
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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